मित्रभेद - कथा १९

पंचतंत्र मतलब उच्चस्तरीय तात्पर्य कथा संग्रह।


किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रुप में रहता था । वह राजा का बहुत विश्वास-पात्र और भक्त था । अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक जा सकता था ।

एक दिन जब राजा सो रहा था और बन्दर पङखा झल रहा था तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठ जाती थी । पंखे से बार-बार हटाने पर भी वह मानती नहीं थी, उड़कर फिर वहीं बैठी जाती थी ।

बन्दर को क्रोध आ गया । उसने पंखा छोड़ कर हाथ में तलवार ले ली; और इस बार जब मक्खी राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया । मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की छाती तलवार की चोट से दो टुकडे़ हो गई । राजा मर गया ।

कथा सुना कर करटक ने कहा----"इसीलिए मैं मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान्‌ शत्रु को अच्छा समझता हूँ ।"

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इधर दमनक करटक बात-चीत कर रहे थे, उधर शेर और बैल का संग्राम चल रहा था । शेर ने थोड़ी देर बाद बैल को इतना घायल कर दिया कि वह जमीन पर गिर कर मर गया ।

मित्र-हत्या के बाद पिंगलक को बड़ा पश्चात्ताप हुआ, किन्तु दमनक ने आकर पिंगलक को फिर राजनीति का उपदेश दिया । पिंगलक ने दमनक को फिर अपना प्रधानमन्त्री बना लिया । दमनक की इच्छा पूरी हुई । पिंगलक दमनक की सहायता से राज्य-कार्य करने लगा ।

॥प्रथम तन्त्र समाप्त॥

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Last Updated : February 20, 2008

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