भजन - ब्रज -सम और कोउ नहिं ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


ब्रज-सम और कोउ नहिं धाम ।

या ब्रजमें परमेसुरहूके सुधरे सुंदर नाम ॥

कृष्ण नाँव यह सुन्यो गर्गतें, कान्ह-कान्ह कहि बोलैं ।

बालकेलि रस मगन भये सब, आनँदसिंधु कलोलैं ॥

जसुदानंदन, दामोदर, नवनीत प्रिय, दधिचोर ।

चीरचोर, चितचोर, चिकनियाँ चातुर नवलकिसोर ॥

राधा-चंद-चकोर, साँवरौ, गोकुलचंद, दधिदानी ।

श्रीबृंदाबनचंद, चतुर चित, प्रेम-रुप-अभिमानी ॥

राधारमन, सु राधाबल्लभ, राधाकान्त, रसाल ।

बल्लभ-सुत, गोपीजन, बल्लभ गिरिवर-धर छबिजाल ॥

रासबिहारी, रसिकबिहारी, कुंजबिहारी स्याम ।

बिपिनबिहारी, बंकबिहारी, अटल बिहारऽभिराम ॥

छैलबिहारी, लालबिहारी, बनवारी, रसकंद ।

गोपीनाथ, मदनमोहन, पुनि बंसीधर, गोबिंद ॥

ब्रजलोचन, ब्रजरमन, मनोहर, ब्रजउत्सव, ब्रजनाथ ।

ब्रजजीवन, ब्रजबल्लभ सबके, ब्रजकिसोर, सुभगाथ ॥

ब्रजमोहन, ब्रजभूषन, सोहन, ब्रजनायक, ब्रजचंद ।

ब्रजनागर, ब्रजछैल, छबीले, ब्रजवर, श्रीनँदनंद ॥

ब्रज आनँद, ब्रजदूलह नितहीं, अति सुंदर ब्रजलाल ।

ब्रज गउवनके पाछे आछे, सोहत ब्रजगोपाल ॥

ब्रज संबंधी नाम लेते ये, ब्रजकी लीला गावै ।

नागरिदासहि मुरलीवारो, ब्रजको ठाकुर भावै ॥

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Last Updated : December 22, 2007

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