भजन - मेरे गति तुमहीं अनेक ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मेरे गति तुमहीं अनेक तोष पाऊँ ।

चरन-कमल-नख-मनिपर बिषै-सुख बहाऊँ ।

घर घर जो डोलौं तौ हरि तुम्हैं लजाऊँ ॥१॥

तुम्हरौ कहाइ कहौ कौन कौ कहाऊँ ।

तुमसे प्रभु छाँड़ि कहा दीननकौं धाऊँ ॥२॥

सीस तुम्हैं नाय कहौ कौनकौ नवाऊँ ।

कंचन उर हार छाँड़ि काच क्यों बनाऊँ ॥३॥

सोभा सब हानि करुँ जगतकौं हसाऊँ ।

हाथीतें उतरि कहा गदहा चढ़ि धाऊँ ॥४॥

कुमकुमकौ लेप छाँड़ि काजर मुँह लाऊँ ।

कामधेनु घरमें तज अजा क्यों दुहाऊँ ॥५॥

कनकमहल छाँड़ि क्योंऽब परन कुटी छाऊँ ।

पाइन जो पेलौ प्रभु तौ न अनत जाऊँ ॥६॥

सूरदास मदनमोहन जनम जनम गाऊँ ।

संतनकी पनहीकौ रच्छक कहाऊँ ॥७॥

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Last Updated : December 21, 2007

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