भजन - नंदजू मेरे मन आनंद भयो, ह...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


नंदजू मेरे मन आनंद भयो, हौं गोबरधन तें आयौ ।

तुम्हरे पुत्र भयो, हौं सुनिकै अति आतुर उठि धायौ ॥

बंदीजन अरु भिच्छुक सुनि सुनि देस-देस तें आये ।

इक पहले ही आसा लागे बहुत दिनन तें छाये ॥

ते पहिरैं कंचन मनि मुकता नाना बसन अनूप ।

मोहि मिले मारगमें मानो जात कहूके भूप ॥

तुम तौ परम उदार नंदजू जोइ माँग्या सोइ दीनौं ।

ऐसौ और कौन त्रिभुवनमें तुम सरि साकौ कीनौं ॥

लच्छ हेतु तौ पर्‌यौ रहौं हौं बिनु देखे नहिं जैहौं ।

नंदराइ सुनि बिनती मेरी तबै बिदा भलि ह्वैहौं ॥

दीजै मोहि कृपा करि साईं जो हौं आयौ माँगन ॥

जसुमति सुत अपने पाइनि चलि खेलत आवै आँगन ॥

जब तुम मदनमोहन कहि टेरौ यह सुनि हौं घर जाउँ ।

हौं तौ तेरो घरकौ ढाढ़ी सूरदास मो नाउँ ॥

प्रगट भई सोभा त्रिभुवनकी भानु गोपके आइ ।

अदभुत रुप देखि ब्रजबनिता रीझीं लेत बलाइ ॥

नहिं कमला, नहिं सची, नहीं रति उपमाहू न समाइ ।

जा हित प्रगट भये ब्रजभूषन धन्य पिता धन माइ ॥

जुग जुग राज करो दोऊ जन इत तुव उत नँदराइ ।

उनके मदनमोहन तेरे स्यामा सूरदास बलि जाइ ॥

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Last Updated : December 21, 2007

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