भजन - झूलत नागरि नागर लाल ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


झूलत नागरि नागर लाल ।

मंद मंद सब सखी झुलावति गावति गीत रसाल ॥

फरहराति पट पीत नीलके अंचल चंचल चाल ।

मनहुँ परसपर उमँगि ध्यान छबि, प्रगट भई तिहि काल ॥

सिलसिलात अति प्रिया सीस तें, लटकति बेनी नाल ।

जनु पिय मुकुट बरहि भ्रम बसतहँ, ब्याली बिकल बिहाल ॥

मल्ली माल प्रियाकी उरझी, पिय तुलसी दल माल ।

जनु सुरसरि रबितनया मिलिकै, सोभित स्त्रेनि मराल ॥

स्यामल गौर परसपर प्रति छबि, सोभा बिसद बिसाल ।

निरखि गदाधर रसिक कुँवरि मन, पर्‌यो सुरस जंजाल ॥

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Last Updated : December 21, 2007

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