भजन - हरि हरि हरि हरि रट र...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


हरि हरि हरि हरि रट रसना मम ।

पीवति खाति रहति निधरक भई होत कहा तो को स्त्रम ॥

तैं तो सुनी कथा नहिं मोसे, उधरे अमित महाधम ।

ग्यान ध्यान जप तप तीरथ ब्रत, जोग जाग बिनु संजम ॥

हेमहरन द्विजद्रोह मान मद, अरु पर गुरु दारागम ।

नामप्रताप प्रबल पावकके, होत जात सलभा सम ॥

इहि कलिकाल कराल ब्याल, बिषज्वाल बिषम भोये हम ।

बिनु इहि मंत्र गदाधरके क्यों, मिटिहै मोह महातम ॥

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Last Updated : December 21, 2007

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