भजन - प्रेमनगरके माहिं होरी होय...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


प्रेमनगरके माहिं होरी होय रही ।

जब सों खेली हमहूँ चित दैं, आपनहूँ को खोय रही ॥

बहुतन कुल अरु लाज गँवाई, रहौ न कोई काम ।

नाचि उठैं, कभी गावन लागैं, भूले तन-धन-धाम ॥

बहुतनकी मति रंग रँगी है, जिनकौ लागौ प्रेम ।

बहुतनकों अपनी सुधि नाहीं कौन करै अस नेम ॥

बहुतनकी गदगद ही बानी, नैनन नीर ढराय ।

बहुतनको बौरापन लागो, ह्वाँकी कही न जाय ॥

प्रेमीकी गति प्रेमी जानै, जाके लागी होय ।

चरनदास उस नेहनगरकी सुकदेवा कहि सोय ॥

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Last Updated : December 20, 2007

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