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बिरहणिकौं सिंगार न भावै ।...

भजन - बिरहणिकौं सिंगार न भावै ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


बिरहणिकौं सिंगार न भावै ।

है कोइ ऐसा राम मिलावै ॥टेक॥

बिसरे अंजन-मंजन, चीरा ।

बिरह-बिथा यह ब्यापै पीरा ॥१॥

नौ-सत थाके सकल सिंगारा ।

है कोइ पीड़ मिटावनहारा ॥२॥

देह-गेह नहिं सुद्धि सरीरा ।

निसदिन चितवत चातक नीरा ॥३॥

दादू ताहि न भावत आना ।

राम बिना भई मृतक समाना ॥४॥

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Last Updated : September 28, 2008

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