कृष्णपक्ष की एकादशी

ज्येष्‍ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहते है ।


ज्येष्‍ठ : कृष्ण पक्ष

अर्जुन बोले - "हे भगवान् ! ज्येष्‍ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है ? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है तथा इस व्रत को करने की क्या विधि है ? कृपा करके यह सब मुझसे विस्तार से कहिए ।"

श्री कृष्ण भगवान् बोले - "हे पार्थ ! ज्येष्‍ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है । क्योंकि यह अपार धन और पुण्यों को देने वाली तथा सभी पापों को नष्‍ट करने वाली है । जो मनुष्य इसका व्रत करते हैं, उनकी लोक में प्रसिद्धि होती है । अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्महत्या, भूत योनि, दूसरे की निन्दा आदि से उत्पन्न पाप नष्‍ट हो जाते हैं । इतना ही नहीं, स्त्रीगमन, झूठी गवाही, असत्य भाषण, झूठा वेद पढ़ना, झूठा शास्त्र बनाना, ज्योतिष द्वारा किसी को भरमाना, झूठा वैद्य बनकर लोगों को ठगना आदि सब पाप अपरा एकादशी के व्रत से नष्‍ट हो जाते हैं ।

जो क्षत्रिय युद्ध क्षेत्र से भाग जाय तो वह नरक को जाता है परन्तु अपरा एकादशी का व्रत करने से उसे भी स्वर्ग की प्राप्‍ति होती है ।

जो शिष्य गुरु से विद्या ग्रहण करते हैं, परन्तु बाद में उनकी निन्दा करते हैं तो वह अवश्य ही नरक में जाते हैं । वह भी अपरा एकादशी का व्रत करने से स्वर्ग को चले जाते हैं ।

जो फल तीनों पुष्करों में स्नान करने से या कार्तिक मास में स्नान करने से अथवा गंगाजी के तट पर पितरों को पिंडदान करने से मिलता है, वह अपरा एकादशी का व्रत करने से मिलता है ।

सिंह राशि वालों को बृहस्पति के दिन गोमती में स्नान करने से, कुम्भ में श्रीकेदारनाथजी के दर्शन करने से तथा बद्रिकाश्रम में रहने से तथा सूर्य-चन्द्र ग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो फल मिलता है, वह फल अपरा एकादशी के व्रत के बराबर है ।

हाथी-घोड़े के दान से तथा यज्ञ में स्वर्ण दान से जो फल मिलता है, वह फल अपरा के व्रत के फल के बराबर है ।

गौ व भूमि या स्वर्ण के दान का फल भी इसके फल के बराबर होता है ।

यह व्रत पापरुपी वृक्षों के काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान है । पापरुपी अन्धकार के लिए सूर्य के समान है ।

अतः मनुष्य को इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । यह व्रत सब व्रतों में श्रेष्‍ठ है । अपरा एकादशी के दिन भक्‍तिपूर्वक विष्णु भगवान् का पूजन करना चाहिए । जिससे अन्त में विष्णु पद की प्राप्‍ति होती है । हे राजन् ! मैंने यह अपरा एकादशी की कथा लोकहित के लिए कही है । इसके पढ़ने व सुनने से समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं ।

कथासार

अपरा का अर्थ है - अपार या अतिरिक्‍त, जो मनुष्य अपरा एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें भगवान श्री हरि विष्णु की अतिरिक्‍त भक्‍ति प्राप्‍त होती है । भक्‍ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है ।

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Last Updated : January 07, 2008

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