हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|शिकवणनाम| विवेकलक्षणनिरूपणनाम शिकवणनाम लेखनक्रियानिरूपणनाम विवरणनिरूपणनाम करंटलक्षणनिरूपणनाम सदेवलक्षणनिरूपणनाम देहमान्यनिरूपणनाम बुद्धिवादनिरूपणनाम यत्ननिरूपणनाम उपाधिलक्षणनिरूपणनाम राजकारणनिरूपणनाम विवेकलक्षणनिरूपणनाम समास दसवां - विवेकलक्षणनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दसवां - विवेकलक्षणनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ जहां अखंड नाना छानना । जहां अखंड नाना धारणा । जहां अखंड राजकरण । मन की ओर लाते ॥१॥ सृष्टि में उत्तम गुण । उतना चले निरूपण । निरूपण के बिन क्षण । रिक्त नहीं ॥२॥ चर्चा आशंका प्रत्योत्तर । कौन खोटा कौन खरा । नाना वर्तृत्व शास्त्राधार । से नाना चर्चा ॥३॥ भक्तिमार्ग विशद समझे । उपासना मार्ग बूझे । ज्ञान विचार शांत होये । अंतर्याम में ॥४॥ वैराग्य की बहुत चाहत । उदास वृत्ति से प्रीत । छोड दे उपाधि उदंड । लगने ही ना दें ॥५॥ प्रबंधों का कंठस्थ पठन । उत्तरों के संगीत उत्तर । नियम से बोलकर अंतरंग । शांत करें सभी का ॥६॥आकृष्ट हुये बहुत जन । वहां किसी का कुछ चलेना । समुदाय पडे अनुमान । में आयेगा कैसा ॥७॥उपासना करके आगे । चारो ओर पूर्ति करें । जहां वहां भूमंडल में । जानते उसे ॥८॥ जानते मगर मिले ना । क्या करता वह समझे ना । नाना देशों के लोग नाना । आकर जाते ॥९॥ उन सबके अंतरंग पकडे । विवेक विचार से भरें। समझा बुझाकर विवरण करें। अंतःकरण में ॥१०॥ कितने लोग वे समझेना । कितने समुदाय आकलन होये ना । समस्त लोगों को श्रवण मनन । में प्रवृत्त करे ॥११॥ समूह को समझाना । गद्यपद्य कथन करना । परांतर का राखना । सर्वकाल ॥१२॥ ऐसा जिसका दंडक । अखंड देखे विवेकु । सावधान के समक्ष अविवेक । आयेगा कैसे ॥१३॥ जो कुछ स्वयं जाने। वह सब धीरे धीरे सिखाये । सयाने कर छोड़े । बहुत जन ॥१४॥ प्रयत्नपूर्वक सिखायें । अडचने कहते जायें । शांत कर छोड़ें । निस्पृहों को ॥१५॥ हो सके वह स्वयं करें । ना होने पर जनों से करवायें । भगवद्भजन छूट जाये । यह धर्म नहीं ॥१६॥ स्वयं करें करवायें । स्वयं विवरण करें करवायें । स्वयं धरें धरायें । भक्तिमार्ग ॥१७॥ पुराने लोगों से ऊब गये । तो फिर नया प्रांत धरना चाहिये । जितना हो सके उसके लिये । आलस ना करें ॥१८॥ देह का अभ्यास छूट गया । याने महंत डूब गया । शीघ्रता से नूतन लोगों को सहायता । करनी चाहिये ॥१९॥ उपाधि में फंसें नहीं । उपाधि से ऊबें नहीं । सुस्ती काम आती नहीं । किसी भी विषय में ॥२०॥बिगड़नेवाला काम बिगड़े । हम पागल यों ही देखते रहे । आलसी हृदयशून्य जो ये । क्या करना जाने ॥२१॥ धक्काबुक्की का मामला । अशक्त कैसे कर पायेगा । इसकारण युक्ति नाना । सिखाये शक्तिशाली को ॥२२॥ व्याप रहने तक वहां रहें । व्याप ना हो तो उठकर जायें । आनंदरूप में घूमें । कहीं भी ॥२३॥उपाधि से छूट गया । वह निस्पृहता से सुदृढ हुआ। जहां अनुकूल वहां चल पडा । सावकाश ॥२४॥ कीर्ति देखें तो सुख नहीं । सुख देखें तो कीर्ति नहीं । किये बिन कुछ भी नहीं । कहीं भी ॥२५॥ अन्यथा क्या रहता । होना सो हो ही जाता । प्राणिमात्र अशक्त वह । सामने रहता ॥२६॥ पहले ही साहस छोड दिया । बीच में ही धीरज त्याग दिया । तो संसार को पार कैसा । कर पाओगे ॥२७॥ संसार मूलतः ही नाशिवंत । विवेक से करें नेमस्त । नेमस्त करने पर । फीका होते रहता ॥२८॥ ऐसा स्वभाव इसका । देखने पर मन को समझता । परंतु धीरज त्यागें ना । कोई एक ॥२९॥ धीरज छोड़े तो क्या होता । सारा सहना पड़ता । नाना बुद्धि नाना मत । सयाना जाने ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे विवेकलक्षणनिरूपणनाम समास दसवां ॥१०॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP