हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|नवविधाभक्तिनाम| समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम नवविधाभक्तिनाम समास पहला श्रवणभक्तिनिरूपणनाम समास दूसरा कीर्तनभजननिरूपणनाम समास तीसरा नामस्मरणभक्तिनाम समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम समास पांचवां अर्चनभक्तिनाम समास छठवां वंदनभक्तिनाम समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम समास नववां आत्मनिवेदनभक्तिनाम समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ मूलतः ब्रह्म निराकार। वहां स्फूर्तिरूप अहंकार । उन पंचभूतों का विचार । ज्ञानदशक में है कहा ॥१॥ वह अहंकार वायुस्वरूप । उस पर तेज का स्वरूप । उस तेज के आधार से आप । आवरणोदक भर गया ॥२॥ उस आवरणोदक के आधार पर । धरा धरे फणिवर । ऊपर छप्पन कोटि विस्तार । वसुंधरा का ॥३॥ इसे घेरे हैं सप्त सागर । मध्य में मेरु अति श्रेष्ठतर । अष्ट दिग्पाल का परिवार । अंतर पर है वेष्टित किये ॥४॥ वह सुवर्ण का महा मेरु । पृथ्वी को आधार उसका । चौरासी सहस्र विस्तार । चौड़ाई उसकी ॥५॥ ऊंचाई देखें तो असीमित । भूमि में सोलह सहस्र । उसके आसपास आधार घेरा । लोकालोक पर्वतों का ॥६॥ उसके इस पार हिमाचल । जहां गले पांडव सकल । धर्म और तमालनील । आगे गये ॥७॥ जहां जाने का मार्ग नहीं । रास्ते में पसरे महाअही । शीतल सुख से हुये सुखासीन वे भी । भासते पर्वतरूप ॥८॥उसके इस पार अंत में जान । बद्रिकाश्रम बद्रिनारायण । जहां महातपस्वी निर्वाण । देह त्यागार्थ जाते ॥९॥ उसके इस पार बद्रिकेदार । छोटे बडे लौटते देखकर । ऐसा यह संपूर्ण विस्तार । मेरुपर्वत का ॥१०॥ उस मेरुपर्वत के पठार पर । तीन श्रृंग विषमहार । परिवार सहित रहते जिन पर । ब्रह्मा विष्णु महेश ॥११॥ ब्रह्मशृंग वह पर्वत का । विष्णुशृंग वह मरगज का । शिवशृंग वह स्फटिक का । जिसका नाम कैलाश ॥१२॥वैकुंठ नाम विष्णुशृंग का । सत्यलोक नाम ब्रह्मशृंग का । अमरावती इंद्र का । स्थान निचला ॥१३॥ वहां गणगंधर्व लोकपाल । तैंतीस कोटि देव सकल । चौदह लोक सुवर्णाचल । अंतर पर है वेष्टित ॥१४॥ कामधेनुओं की झुंड वहां पर । कल्पतरु के बन अपार । अमृत के सरोवर । छलकतें जहां वहां ॥ १५॥ वहां असंख्य चिंतामणि । हीरे पारस की खाणी । वहां सुवर्णमयी धरणी । जगमगाती हुई ॥१६॥ फैलता परम रमणीय तेज सर्वत्र । नवरत्नों के पाषाण पत्थर । वहां हर्ष की बेला निरंतर । आनंदमय ॥ १७॥ वहां अमृत के भोजन । दिव्य गंध दिव्य सुमन । अष्टनायिका गंधर्व गायन । निरंतर ॥१८॥ वहां तारुण्य घटे ना । रोग व्याधि भी रहे ना । वृद्धाप्य और मृत्यु आये ना । कदापि ॥१९॥ वहां एक से एक सुंदर । वहां एक से एक चतुर । धीर उदार और शूर । मर्यादातीत ॥२०॥वहां दिव्यदेह ज्योतिरूप । विद्युल्लता समान स्वरूप । वहां यश कीर्ति प्रताप । असीमित ॥२१॥ ऐसा यह स्वर्गभवन । सकल देवों का निवासस्थान । उस स्थल की महिमान । कहे उतनी थोडी ॥२२॥ यहां जिस देव का करें भजन । वहां उस देव लोक में मिले स्थान । सलोकता मुक्ति के लक्षण । जानो ऐसे ॥ २३॥लोक में रहे वह सलोकता । समीप रहे वह समीपता । स्वरूप ही हो वह सरूपता । तीसरी मुक्ति ॥ २४॥देवस्वरूप हुआ देह से । श्रीवत्स कौस्तुभ लक्ष्मी नहीं इससे । स्वरूपता के लक्षण ऐसे । होते हैं देखो ॥२५॥ सुकृत रहने तक भोगते । सुकृत खत्म होते ही ढकेल देते । स्वयं देव तो रहते । ज्यों के त्यों ॥२६॥ इसलिये तीनों मुक्ति नाशवंत । सायुज्यमुक्ति वह शाश्वत । वह भी करूं निरूपित सचेत । होकर सुनो अब ॥२७॥कल्पांत में होगा ब्रह्मांड नष्ट । क्षिति जलेगी पर्वत सहित । तब नष्ट होंगे देव समस्त । मुक्ति कैसी वहां ॥ २८॥तब निर्गुण परमात्मा निश्चल । निर्गुण भक्ति वह भी अचल । सायुज्यमुक्ति वह केवल । जानो ऐसी ॥२९॥ निर्गुण से अगर हो अनन्यता । उससे होती सायुज्यता । सायुज्यता याने स्वरूपता । निर्गुणभक्ति ॥३०॥ सगुण भक्ति वह चंचल । निर्गुण भक्ति वह निश्चल । ये सब समझे प्रांजल । सद्गुरु करने पर ॥३१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे मुक्तिचतुष्टये नाम समास दसवां ॥ १०॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP