हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|नवविधाभक्तिनाम| समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम नवविधाभक्तिनाम समास पहला श्रवणभक्तिनिरूपणनाम समास दूसरा कीर्तनभजननिरूपणनाम समास तीसरा नामस्मरणभक्तिनाम समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम समास पांचवां अर्चनभक्तिनाम समास छठवां वंदनभक्तिनाम समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम समास नववां आत्मनिवेदनभक्तिनाम समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पीछे हुआ निरुपण । छठवें भक्ति के लक्षण । अब सुनो होकर सावधान । सातवीं भक्ति ॥ १॥सातवां भजन वह दास्य जानें । पडे हुये जो कार्य वह करें । सदा सन्निध ही रहें । देवद्वार के ॥२॥ वैभव देव का सम्भालें । न्यूनपूर्ण कभी ना पडने दें । चढते बढते बढायें । भजन ईश्वर का ॥३॥ बनवायें भग्न मंदिर । बंधवायें टूटे सरोवर । चलायें बरामदे धर्मशाला और घर । नूतन ही कार्य ॥४॥ नाना रचना जीर्ण जर्जर । उनका करें जीर्णोद्धार । अधूरे कार्य को तत्पर । शुरु करें ॥५॥ गज रथ तुरंग सिंहासन । चौकियां शिबिका सुखासन । मंचक डोलियां विमान । बनवायें नूतन ॥६॥ मेघाडंबर छत्र चंवर । सूर्यपान निशान अपार । नित्य नूतन अति आदर । से सम्हालते रहे ॥७॥ नाना प्रकारों के यान । बैठने के उत्तम स्थान । बहुविध सुवर्णासन । यत्न से बनवाते रहें ॥८॥ पेटी पिटारे कमरें भवन । घडे गागर हौद पानी के बर्तन । ऐसा द्रव्यांश संपूर्ण । अतियत्न से करें ॥९॥ भूईघर तलघर विवर । नाना स्थल गुप्तद्वार । अनर्घ्य वस्तुओं के भांडार । यत्न से बनाते जायें ॥१०॥ अलंकार भूषण दिव्यांबर । नानाविध रत्न मनोहर । नानाविध स्वर्ण पात्र । यत्न से बनातें जाये ॥११॥पुष्पवाटिका नाना बन । नाना वृक्षों के बन । करें हरे भरे देकर जीवन । वृक्षों को ॥१२॥ नाना पशुओं की शाला । नाना पक्षी चित्रशाला । नाना वाद्य नाट्यशाला । गुणी गायक बहुत सारे ॥१३॥ भोजनशाला रसोईगृह । धर्मशाला सामग्रीगृह । निद्रिस्तों के लिये शयनागृह । विशाल स्थल ॥१४॥नाना परिमल द्रव्यों के स्थल । नाना खाद्य फलों के स्थल । नाना रसों के नाना स्थल । यत्न से बनाते जायें ॥१५॥नाना वस्तुओं के नाना स्थान । भग्न हो तो बनायें नूतन । देव के वैभव वचन । कहें कितने प्रकार से ॥ १६॥सभी जगह अति सादर । और दास्यत्व के लिये भी तत्पर । कार्यभाग का बिसर । होने ही ना दें ॥१७॥ जयंतियां पर्व महोत्सव । मनायें वैभव असंभाव्य । जिन्हें देखकर स्वर्ग के देव । भी होते तटस्थ ॥१८॥ ऐसे वैभव चलायें । और नीच दास्यत्व भी करें । संकट के प्रसंग में सावध रहें । सर्वकाल ॥१९॥ जो जो कुछ चाहिये । वह सब तत्काल ही दीजिये । अत्यंत प्रीति से कीजिये । सकल सेवा ॥२०॥ चरण क्षालन स्नान आचमन । गंधाक्षत वसन भूषण । आसन जीवन नाना सुमन । धूप दीप नैवद्य ॥२१॥ शयन के लिये उत्तम स्थल । रखें जल सुशीतल । ताम्बूल गायन रसाल । करें राग रंग से ॥२२॥ परिमल द्रव्य और फुलेल । नाना सुगंधित तेल । बहुत प्रकार के खाद्य फल । सन्निध ही रखें ॥२३॥ लीप कर साफ करें । उदक पात्र उदक से भरें । वसन प्रक्षालन कर लायें । उत्तमोत्तम ॥२४॥ करें सब की व्यवस्था । करें आगत का अतिथ्य । ऐसी यह जानो सत्य । सातवीं भक्ति ॥२५॥ कहें वचन करुणा के । नाना प्रकार के स्तुति के । अभ्यंतर शांत हो सबके । ऐसे कहें ॥२६॥ ऐसी यह सातवीं भक्ति । निरुपित की यथामति । प्रत्यक्ष अगर ना हो पाती । तो भी चित्त में मानसपूजा करें ॥२७॥ऐसे दास्य करें देव का । इसी प्रकार से सद्गुरु का । यदि प्रत्यक्ष ना हो तो भी मानस पूजा का । विधान करते जायें ॥२८॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे दास्यभक्तिनिरुपणनाम समास सातवां ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP