सम्पत्तिप्रद श्रीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


सम्पत्तिप्रद श्रीव्रत

( सौभाग्यलक्ष्मीसंग्रह ) - यह व्रत एक - एक कलाव्रुद्धिसे सोलह वर्षोंमें पूर्ण होता है । व्रतीको चाहिये कि आरम्भके शुभ दिनमें प्रातःस्त्रान आदिसे निवृत्त होकर ' ममाखिलपापक्षयपूर्वकमचलसम्पत्तिप्राप्तिकामनया श्रीव्रतमहं करिष्ये ' यह संकल्प करके सोने, चाँदी या ताँबेके पात्रमें दाड़िमकी लेखनी और केसर - चन्दनसे ' श्री ' लिखे और उसका १ ईश्वरी, २ कमला, ३ लक्ष्मी, ४ चला, ५ भूति, ६ हरिप्रिया, ७ पद्मा, ८ पद्मालया , ९ सम्पद्, १० उच्चैः, ११ श्री और १२ पद्म धारिणी - नामोसें पूजन करके ' श्री ' मन्त्नके पाँच या दस हजार जप करे । इस प्रकार प्रतिदिन वर्षपर्यन्त करनेसे एक कला सम्पन्न होती है । यदि वह सोलह वर्षतक किया जाय तो सोलह कलाएँ पूर्ण हो जाती हैं और उसका अमित फल होता है । स्मरण रहे कि जप करते समय सुपूजित ' श्री ' को हदयङगम रखकर या उसपर दृष्टि स्थिर करके जप करनेसे अचल प्राप्त होती हैं ।

द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मीं सम्पूज्य यः पठेत् ।

स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत् तस्य पुत्रदारदिभिः सह ॥ ( सौभाग्यलक्ष्मी )

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Last Updated : January 16, 2012

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