पञ्चदेवपूजा (आगमोक्त-पध्दति)

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


पञ्चदेवपूजा (आगमोक्त-पध्दति)

प्रतिदिन पञ्चदेव-पूजा अवश्य करनी चाहिये । यदि वेदके मन्त्र अभ्यस्त न हो, तो आगमोक्त मन्त्रसे, यदि वे भी अभ्यस्त न हो तो नाम-मन्त्रसे और यदि यह भी सम्भव न हो तो बिना मन्त्रके ही जल, चन्दन आदि चढाकर पूजा करनी चाहिये ।
यहाँ सामान्यरुपसे पूजाकी विधी दी जा रही है । साथ-साथ नाम-मन्त्र भी है । जो श्लोकोंका उच्चारण न कर सके, वे नाममन्त्रसे
षोडशोपचार पूजन करे ।
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गृह-मन्दिरमें स्थित पञ्चदेव-पूजा-
यदि गृहका मन्दिर हो तो पूजागृहमें प्रवेश करनेसे पहले बाहर दरवाजेपर ही पूर्वोक्त प्रकारसे आचमन कर ले और तीन तालियाँ बजाये और विनम्रताके साथ मन्दिरमें प्रवेश करे । ताली बजानेके पहले निम्नलिखित विनियोगसहित मन्त्र पढ ले -
विनियोग-
अपसर्पन्त्विति मन्त्रस्य वामदेव ऋषी: , शिवो देवता, अनुष्टुप छन्द: ,भूतोदिविघ्नोत्सादने विनियोग: ।
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भूतोत्सादन मन्त्र -
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता भूतले स्थिता: ।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥
पश्चात् देवताओंका ध्यान करे, साष्टान्ग प्रणाम करे । बादमें निम्नलिखित विनियोग और मन्त्र पढकर आसनपर बैठकर उसको जलसे पवित्र करे ।
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आसन पवित्र करनेका विनियोग एवं मन्त्र -
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषि: , सुतलं छन्द: , कूर्मो देवता, आसनपवित्रकरणे विनियोग: ।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्व च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
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पूजाकी बाहरी तैयारी
बैठनेके पूर्व पूजाकी आवश्यक तैयारी कर ले । ताजे जलको कपडेसे छानकर कलशमें भरे । आचमनीसे शंड्खमें भी जल डालकर
पीठपर रख दे । शड्खको जलमें डुबाना मना है । इसी तरह शड्खको पृथ्वीपर रखना भी मना है । शड्खमें चन्दन और फ़ूल छोड दे । उदकुम्भ (कलश) के जलको भी सुवासित करनेके लिये कपूर और केसरके साथ चन्दन घिसकर मिला दे या पवित्र इत्र डाल दे ।  अक्षतको केसर या रोलीसे हलका रँग ले ।
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पूजा-सामग्रीके रखनेका प्रकार
पूजनकी किस वस्तुको किधर रखना चाहिये , इस बातका भी शास्त्रने निर्देश दिया है । इसके अनुसार वस्तुओंको यथास्थान सजा देना चाहिये ।
बायी ओर-१) सुवासित जलसे भरा उदकुम्भ  (जलपात्र) २) घंटा और ३) धूपदानी ४) तेलका दीपक भी बायी ओर रखे ।
दायी ओर-१) घृतका दीपक और  २) सुवासित जलसे भरा शड्ख
सामने-
१) कुंकुम (केसर) और कपूरके साथ घिसा गाढा चन्दन
२) पुष्प आदि हाथमें तथा चन्दन ताम्रपात्रमें न रखे ।

भगवानके आगे-चौकोर जलका घेरा डालकर नैवेद्यकी वस्तु रखे ।
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पूजाकी भीतरी तैयारी
शास्त्रोंमें पूजाको हजारगुना अधिक महत्वपूर्ण बनानेके लिये एक उपाय बतलाया गया है । वह उपाय है, मानसपूजा । जिसे पूजासे पहले करके फ़िर बाह्य वस्तुओंसे पूजन करे ।
पहले पुष्प-प्रकरणमें शास्त्रका एक वचन उध्दृत किया गया है, जिसमें बतलाया गया है कि मन:कल्पित यदि एक फ़ुल भी चढा दिया जाय तो दीप, नैवेद्य भी भगवानको करोडगुना अधिक संतोष दे सकेंगे । अत:  मानसपूजा बहूत अपेक्षित है ।

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Last Updated : December 02, 2018

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