जप-विधि प्रकार

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


जप तीन प्रकारका होता है --
वाचिक, उपांशु और मानसिक । वाचिक जप धीरे-धीरे बोलकर होता है । उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है, जिससे दूसरा न सुन सके । मानसिक जपमें जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते । तीनों जपोंमे पहलेकी अपेक्षा दूसरा और दूसरेकी अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है । प्रात:काल दोनों हाथोंकों उत्तान कर, सायंकाल नीचेकी ओर करके और मध्याह्नमें सीधा करके जप करना चाहिये । प्रात:काल हाथको नाभिके पास, मध्याह्नमें ह्रद्यके समीप और सायंकाल मुँहके समानान्तरमें रखे । जपकी गणना चन्दन, अक्षत, पुष्प, धान्य, हाथके पोर और मिट्टीसे न करे । जपकी गणनाके लिये लाख, कुश, सिन्दूर और सूखे गोबरको मिलाकर गोलियाँ बना ले । जप करते समय दाहिने हाथको जपमालीमें डाल ले अथवा कपड़ेसे ढक लेना आवश्यक होता है, किंतु कपडा़ गीला न हो । यदि सूखा वस्त्र न मिल सके तो सात बार उसे हवामें फटकार ले तो वह सूखा- जैसा मान लिया जाता है । जपके लिये मालाको अनामिका अँगुलीपर रखकर अँगूठेसे स्पर्श करते हुए मध्यमा अँगुलीसे फेरना चाहिये । सुमेरुका उल्लंघन न करे । तर्जनी न लगावे । सुमेरुके पाससे मालाको घुमाकर दूसरी बार जपे । जप करते समय हिलना, डोलना, बोलना निषिध्द है । यदि जप करते समय बोल दिया जाय तो भगवान्‍का स्मरण कर फिरसे जप करना चाहिये ।
यदि माला गिर जाय तो एक सौ आठ बार जप करे । यदि माला पैरपर गिर जाय तो इसे धोकर दुगुना जप करे ।

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Last Updated : November 26, 2018

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