स्नानकी आवश्यकता -- प्रात:काल स्नान करनेके पश्चात् मनुष्य शुध्द होकर जप, पूजा-पाठ आदि समस्त कर्मोंके योग्य बनता है, अतएव प्रात:स्नानकी प्रशंसा की जाती है ।
नौ छिद्रोंवाले अत्यन्त मलिन शरीरसे दिन-रात मल निकलता रहता है, अत: प्रात:काल स्नान करनेसे शरीरकी शुध्दि होती है ।
प्रात: स्नानं प्रशंसन्ति दृष्टिदृष्टकरं हि तत् ।

सर्वमर्हति शुध्दात्मा प्रात:स्नायी जपादिकम् ॥
अत्यन्तमलिन: कायो नवच्छिद्रसमन्वित: ।
स्त्रवत्येष दिवारात्रौ प्रात: स्नानं विशोधनम् ॥

शुध्द तीर्थमें प्रात:काल स्नान करना चाहिये, क्योकि यह मलपूर्ण शरीर शुध्द तीर्थमें स्नान करनेसे शुध्द होता है। प्रात:काल स्नान करनेवालेके पास दुष्ट (भूत-प्रेत आदि) नहीं आते । इस प्रकार दृष्टफल -- शरीरकी स्वच्छता, अदृष्टफल -- पापनाश तथा पुण्यकी प्राप्ति -- ये दोनों प्रकारके फल मिलते है, अत: प्रात:स्नान करना चाहिये ।

प्रात:स्नानं चरित्वाथ शुध्दे तीर्थे विशेषत:।
प्रात:स्नानाद्ध्यतः शुध्दयेत् कायोऽयं मलिन: सदा ॥
नोपसर्पन्ति वै दुष्टा: प्रात:स्नायिजनं क्वचित्।
दृष्टादृष्टफलं तस्मात् प्रात:स्नानं समाचरेत्॥

रुप, तेज, बल, पवित्रता, आयु, आरोग्य, निर्लोभता, दु:खप्नका नाश, तप और मेधा -- ये दस गुण स्नान करनेवालोंको प्राप्त होते हैं --

गुणा दश स्नानपरस्य साधो ! रुपं च तेजश्च बलं च शौचम् ।
आयुष्यमारोग्यमलोलुपत्वं दु:खप्ननाशश्च तपश्च मेधा: ॥

वेद-स्मृतिमे कहे गये समस्त कार्य स्नानमूलक हैं, अतएव लक्ष्मी, पुष्टि एवं आरोग्यकी वृध्दि चाहनेवाले मनुष्यको स्नान सदैव करना चाहिये ।

स्नानमूला: क्रिया: सर्वा: श्रुतिस्मृत्युदिता नृणाम् ।
तस्मात् स्नानं निषेवेत श्रीपुष्ट्यारोग्यवर्धनम् ॥

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Last Updated : November 25, 2018

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