उत्तरकाण्ड

`गीतावली` गोस्वामी तुलसीदास की एक प्रमुख रचना है जिसके गीतों में राम-कथा कही गयी है । सम्पूर्ण पदावली राम-कथा तथा रामचरित से सम्बन्धित है ।
  

२९०--०१---गीतावली
२९०--०१---उत्तरकाण्ड
२९०--०१---रामराज्य
२९०--राग--- सोरठ
२९०--०१---बनतें आइकै राजा राम भए भुआल ।
२९०--०१---मुदित चौदह भुअन, सब सुख सुखी सब सब काल ॥
२९०--०२---मिटे कलुष-कलेस-कुलषन, कपट-कुपथ-कुचाल ।
२९०--०२---गए दारिद, दोष दारुन, दम्भ-दुरित-दुकाल ॥
२९०--०३---कामधुक महि, कामतरु तरु, उपल मनिगन लाल ।
२९०--०३---नारि-नर तेहि समय सुकृती, भरे भाग सुभाल ॥
२९०--०४---बरन-आश्रम-धरमरत, मन बचन बेष मराल ।
२९०--०४---राम-सिय-सेवक-सनेही, साधु, सुमुख, रसाल ॥
२९०--०५---राम-राज-समाज बरनत सिद्ध-सुर-दिगपाल ।
२९०--०५---सुमिरि सो तुलसी अजहुँ हिय हरष होत बिसाल ॥
२९१--०१---रामरूप-वर्णन
२९१--राग}  ललित
२९१--०१---भोर जानकी-जीवन जागे ।
२९१--०१---सूत मागध, प्रबीन, बेनु-बीना-धुनि द्वारे, गायक सरस राग रागे ॥
२९१--०२---स्यामल सलोने गात, आलसबस जँभात प्रिया प्रेमरस पागे ।
२९१--०२---उनीन्दे लोचन चारु, मुख-सुखमा-सिङ्गार हेरि हारे मार भूरि भागे ॥
२९१--०३---सहज सुहाई छबि, उपमा न लहैं कबि, मुदित बिलोकन लागे ।
२९१--०३---तुलसिदास निसिबासर अनूप रूप रहत प्रेम-अनुरागे ॥
२९२--राग}  कल्याण
२९२--०१---रघुपति राजीवनयन, सोभातनु कोटि मयन,
२९२--०१---करुनारस-अयन चयन-रूप भूप, माई ।
२९२--०१---देखो सखि अतुलित छबि, सन्त-कञ्ज-कानन रबि,
२९२--०१---गावत कल कीरति कबि-कोबिद-समुदाई ॥
२९२--०२---मज्जन करि सरजुतीर ठाढ़े रघुबंसबीर,
२९२--०२---सेवत पदकमल धीर निरमल चित लाई ।
२९२--०२---ब्रह्ममण्डली-मुनीन्द्रबृन्द-मध्य       इंदुबदन
२९२--०२---राजत सुखसदन लोकलोचन-सुखदाई ॥
२९२--०३---बिथुरित सिररुह-बरूथ कुञ्चित, बिच सुमन-जूथ,
२९२--०३---मनिजुत सिसु-फनि-अनीक ससि समीप आई ।
२९२--०३---जनु सभीत दै अँकोर राखे जुग रुचिर मोर,
२९२--०३---कुण्डल-छबि निरखि चोर सकुचत अधिकाई ॥
२९२--०४---ललित भ्रुकुटि, तिलक भाल, चिबुक-अधर-द्विज रसाल,
२९२--०४---हास चारुतर, कपोल, नासिका सुहाई ।
२९२--०४---मधुकर जुग पङ्कज बिच, सुक बिलोक नीरजपर
२९२--०४---लरत मधुप-अवलि मानो बीच कियो जाई ॥
२९२--०५---सुन्दर पटपीत बिसद, भ्राजत बनमाल उरसि,
२९२--०५---तुलसिका-प्रसून-रचित, बिबिध-बिधि बनाई ।
२९२--०५---तरु-तमाल अधबिच जनु त्रिबिध कीर-पाँति-रुचिर,
२९२--०५---हेमजाल अंतर परि तातें न उड़ाई ॥
२९२--०६---सङ्कर-हृदि-पुण्डरीक निसि बस हरि-चञ्चरीक,
२९२--०६---निर्ब्यलीक-मानस-गृह सन्तत रहे छाई ।
२९२--०६---अतिसय आनन्दमूल तुलसिदास सानुकूल,
२९२--०६---हरन सकल सूल, अवध-मण्डन रघुराई ॥
२९३--०१---राजत रघुबीर धीर, भञ्जन भव-भीर, पीर-
२९३--०१---हरन सकल सरजुतीर निरखहु, सखि! सोहैं ।
२९३--०१---सङ्ग अनुज मनुज-निकर, दनुज-बल-बिभङ्ग-करन;
२९३--०१---अंग-अंग छबि अनङ्ग अगनित मन मोहैं ॥
२९३--०२---सुखमा-सुख-सील-अयन नयन निरखि निरखि नील
२९३--०२---कुञ्चित कच, कुण्डल कल, नासिका चित पोहैं ।
२९३--०२---मनहु इंदुबिम्ब मध्य कञ्ज-मीन-खञ्जन लखि
२९३--०२---मधुप-मकर-कीर आए तकि तकि निज गौहैं ॥
२९३--०३---ललित गण्ड-मण्डल, सुबिसाल भाल तिलक झलक
२९३--०३---मञ्जुतर मयङ्क-अंक रुचिर बङ्क भौहैं ।
२९३--०३---अरुन अधर, मधुर बोल, दसन-दमक दामिनि दुति,
२९३--०३---हुलसति हिय हँसनि चारु चितवनि तिरछौहैं ॥
२९३--०४---कम्बुकण्ठ, भुज बिसाल उरसि तरुन तुलसिमाल,
२९३--०४---मञ्जुल मुकतावलि जुत जागति जिय जोहैं ।
२९३--०४---जनु कलिन्द-नन्दिनि मनि-इंद्रनील-सिखर परसि
२९३--०४---धँसति लसति हंससेनि-सङ्कुल अधिकौहैं ॥
२९३--०५---दिब्यतर दुकूल भब्य, नब्य रुचिर चम्पक चय,
२९३--०५---चञ्चला-कलाप, कनक-निकर अलि! किधौं हैं ।
२९३--०५---सज्जन-चष-झष-निकेत, भूषन-मनिगन समेत,
२९३--०५---रूप-जलधि-बपुष लेत मन-गयन्द बोहैं ॥
२९३--०६---अकनि बचन-चातुरी तुरीय पेखि प्रेम-मगन
२९३--०६---पग न परत इत, उत, सब चकित तेहि समौ हैं ।
२९३--०६---तुलसिदास यह सुधि नहि कौनकी, कहाँतें आई ,
२९३--०६---कौन काज, काके ढिग, कौन ठाउँ को हैं ॥
२९४--०१---
२९४--०१---देखु सखि! आजु रघुनाथ-सोभा बनी ।
२९४--०१---नील-नीरद-बरन बपुष भुवनाभरन,
२९४--०१---पीत-अंबर-धरन हरन दुति-दामिनि ॥
२९४--०२---सरजु मज्जन किए, सङ्ग सज्जन लिए,
२९४--०२---हेतु जनपर हिये, कृपा कोमल घनी ।
२९४--०२---सजनि आवत भवन मत्त-गजवर, गवन,
२९४--०२---लङ्क मृगपति ठवनि कुँवर कोसलधनी ॥
२९४--०३---सघन चिक्कन कुटिल चिकुर बिलुलित मृदुल,
२९४--०३---करनि बिबरत चतुर, सरस सुषमा जनी ।
२९४--०३---ललित अहि-सिसु-निकर मनहु ससि सन समर
२९४--०३---लरत, धरहरि करत रुचिर जनु जुग फनी ॥
२९४--०४---भाल भ्राजत तिलक, जलज लोचन, पलक,
२९४--०४---चारु भ्रू, नासिका सुभग सुक-आननी ।
२९४--०४---चिबुक सुन्दर, अधर अरुन, द्विज-दुति सुघर,
२९४--०४---बचन गम्भीर, मृदुहास भव-भाननी ॥
२९४--०५---स्रवन कुण्डल बिमल गण्ड मण्डित चपल,
२९४--०५---कलित कलकान्ति अति भाँति कछु तिन्ह तनी ।
२९४--०५---जुगल कञ्चन-मकर मनहु बिधुकर मधुर
२९४--०५---पियत पहिचानि करि सिन्धुकीरति भनी ॥
२९४--०६---उरसि राजत पदिक, ज्योति रचना अधिक,
२९४--०६---माल सुबिसाल चहुँ पास बनि गजमनी ।
२९४--०६---स्याम नव जलदपर निरखि दिनकर-कला
२९४--०६---कौतुकी मनहुँ रही घेरि उडुगन-अनी ॥
२९४--०७---मन्दिरनिपर खरी नारि आनँद-भरी,
२९४--०७---निरखि बरषहिं बिपुल कुसुम कुङ्कुम-कनी ।
२९४--०७---दास तुलसी राम परम करुनाधाम,
२९४--०७---काम-सतकोटि-मद हरत छबि आपनी ॥
२९५--०१---आजु रघुबीर-छबि जात नहि कछु कही ।
२९५--०१---सुभग सिंहासनासीन सीतारवन,
२९५--०१---भुवन-अभिराम, बहु काम सोभा सही ॥
२९५--०२---चारु चामर-व्यजन, छत्र-मनिगन बिपुल
२९५--०२---दाम-मुकुतावली-जोति जगमगि रही ।
२९५--०२---मनहुँ राकेस सँग हंस-उडुगन-बरहि
२९५--०२---मिलन आए हृदय जानि निज नाथ ही ॥
२९५--०३---मुकुट सुन्दर सिरसि, भालबर, तिलक-भ्रू,
२९५--०३---कुटिल कच, कुण्डलनि परम आभा लही ।
२९५--०३---मनहुँ हर-डर जुगल मारध्वजके मकर
२९५--०३---लागि स्रवननि करत मेरुकी बतकही ॥
२९५--०४---अरुन-राजीव-दल-नयन करुना-अयन,
२९५--०४---बदन सुषमासदन, हास त्रय-तापही ।
२९५--०४---बिबिध कङ्कन हार, उरसि गजमनि-माल,
२९५--०४---मनहुँ बग-पाँति जुग मिलि चली जलदही ॥
२९५--०५---पीत निरमल चैल, मनहुँ मरकत सैल,
२९५--०५---पृथुल दामिनि रही छाइ तजि सहजही ।
२९५--०५---ललित सायक-चाप, पीन भुज बल अतुल
२९५--०५---मनुजतनु दनुजबन-दहन, मण्डन-मही ॥
२९५--०६---जासु गुन-रूप नहि कलित, निरगुन सगुन,
२९५--०६---सम्भु, सनकादि, सुक भगति दृढ़ करि गही ।
२९५--०६---दास तुलसी राम-चरन-पङ्कज सदा
२९५--०६---बचन मन करम चहै प्रीति नित निरबही ॥
२९६--०१---राम राजराजमौलि मुनिबर-मन-हरन, सरन-
२९६--०१---लायक, सुखदायक रघुनायक देखौ री ।
२९६--०१---लोक-लोचनाभिराम, नीलमनि-तमाल-स्याम,
२९६--०१---रूप-सील-धाम, अंग छबि अनङ्ग को री ?॥
२९६--०२---भ्राजत सिर मुकुट पुरट-निरमित मनि रचित चारु,
२९६--०२---कुञ्चित कच रुचिर परम, सोभा नहि थोरी ।
२९६--०२---मनहुँ चञ्चरीक-पुञ्ज कञ्जबृन्द प्रीति लागि
२९६--०२---गुञ्जत कल गान तान दिनमनि रिझयो री ॥
२९६--०३---अरुनकञ्ज-दल-बिसाल लोचन, भ्रू-तिलकभाल,
२९६--०३---मण्डित स्रुति कुण्डल बर सुन्दरतर जोरी ।
२९६--०३---मनहुँ सम्बरारि मारि, ललित मकर-जुग बिचारि,
२९६--०३---दीन्हें ससिकहँ पुरारि भ्राजत दुहुँ ओरी ॥
२९६--०४---सुन्दर नासा-कपोल, चिबुक, अधर अरुन, बोल
२९६--०४---मधुर, दसन राजत जब चितवत मुख मोरी ।
२९६--०४---कञ्ज-कोस भीतर जनु कञ्जराज-सिखर-निकर,
२९६--०४---रुचिर रचित बिधि बिचित्र तड़ित-रङ्ग-बोरी ॥
२९६--०५---कम्बुकण्ठ उर बिसाल तुलसिका नवीन माल,
२९६--०५---मधुकर बर-बास-बिबस, उपमा सुनु सो री ।
२९६--०५---जनु कलिन्दजा सुनील सैलतें धसी समीप,
२९६--०५---कन्द-बृन्द बरसत छबि मधुर घोरि घोरी ॥
२९६--०६---निरमल अति पीत चैल, दामिनि जनु जलद नील
२९६--०६---राखी निज सोभाहित बिपुल बिधि निहोरी ।
२९६--०६---नयनन्हिको फल बिसेष ब्रह्म अगुन सगुन बेष,
२९६--०६---निरखहु तजि पलक, सफल जीवन लेखौ री ॥
२९६--०७---सुन्दर सीतासमेत सोभित करुनानिकेत,
२९६--०७---सेवक सुख देत, लेत चितवत चित चोरी ।
२९६--०७---बरनत यह अमित रूप थकित निगम-नागभूप,
२९६--०७---तुलसिदास छबि बिलोकि सारद भै भोरी ॥
२९७--राग}  केदारा
२९७--०१---सखि! रघुनाथ-रूप निहारु ।
२९७--०१---सरद-बिधु रबि-सुवन मनसिज-मान भञ्जनिहारु ॥
२९७--०२---स्याम सुभग सरीर जन-मन-काम-पूरनिहारु ।
२९७--०२---चारुचन्दन मनहु मरकत-सिखर लसत निहारु ॥
२९७--०३---रुचिर उर उपबीत राजत पदिक गजमनि-हारु ।
२९७--०३---मनहु सुरधनु नखतगन बिच तिमिर-भञ्जनिहारु ॥
२९७--०४---बिमल पीत दुकूल दामिनि-दुति-बिनिन्दनिहारु ।
२९७--०४---बदन सुषमासदन सोभित मदन-मोहनिहारु ॥
२९७--०५---सकल अंग अनूप, नहिं कोउ सुकबि बरननिहारु ।
२९७--०५---दासतुलसी निखतहि सुख लहत निरखनिहारु ॥
२९८--०१---सखि! रघुबीर मुख-छबि देखु ।
२९८--०१---चित्त-भीति सुप्रिति-रङ्ग सुरूपता अवरेखु ॥
२९८--०२---नयन-सुषमा निरखि नागरि! सफल जीवन लेखु ।
२९८--०२---मनहुँ बिधि जुग जलज बिरचे ससि सुपूरन मेखु ॥
२९८--०३---भ्रकुटि भाल बिसाल राजत रुचिर-कुङ्कुम-रेखु ।
२९८--०३---भ्रमर द्वै रबिकिरनि ल्याए करन जनु उनमेखु ॥
२९८--०४---सुमुखि! केस सुदेस सुन्दर सुमन-सञ्जुत पेषु ।
२९८--०४---मनहुँ उडुगन-निबह आए मिलन तम तजि द्वेषु ॥
२९८--०५---स्रवन कुण्डल मनहु गुरु-कबि करत बाद बिसेषु ।
२९८--०५---नासिका, द्विज, अधर जनु रह्यो मदनु करि बहु बेषु ॥
२९८--०६---रूप बरनि न सकत नारद-सम्भु, सारद-सेषु ।
२९८--०६---कहै तुलसीदास क्यों मतिमन्द सकल नरेषु ॥
२९९--राग}  जैतश्री
२९९--०१---देखौ, राघव-बदन बिराजत चारु ।
२९९--०१---जात न बरनि, बिलोकत ही सुख, मुख किधौं छबिबर नारि सिङ्गारु ॥
२९९--०२---रुचिर चिबुक, रद-ज्योति अनूपम, अधर अरुन सित हास निहारु ।
२९९--०२---मनो ससिकर बस्यो चहत कमल महँ प्रगटत, दुरत, न बनत बिचारु ॥
२९९--०३---नासिक सुभग मनहुँ सुक सुन्दर चितवत चकि आचरज अपारु ।
२९९--०३---कल कपोल, मृदु बोल मनोहर रीझि, चित चतुर अपनपौ वारु ॥
२९९--०४---नयन सरोज, कुटिल कच, कुण्डल भ्रुकुटु, सुभाल तिलक सोभा-सारु ।
२९९--०४---मनहुँ केतुके मकर, चाप-सर गयो, बिसारि भयो मोहित मारु ॥
२९९--०५---निगम-सेष, सारद, सुक, सङ्कर, बरनत रूप न पावत पारु ।
२९९--०५---तुलसिदास कहै, कहौ, धौं कौन बिधि अति लघुमति जड़ कूर गँवारु ॥
३००--राग}  ललित
३००--०१---आज रघुपति-मुख देखत लागत सुख
३००--०१---सेवक सुरुष, सोभा सरद-ससि सिहाई ।
३००--०१---दसन-बसन लाल, बिसद हास रसाल
३००--०१---मानो हिमकर-कर राखे राजीव मनाई ॥
३००--०२---अरुन नैन बिसाल, ललित भ्रुकुटि, भाल
३००--०२---तिलक, चारु कपोल, चिबुक-नासा सुहाई ।
३००--०२---बिथुरे कुटिल कच, मानहु मधु लालच अलि,
३००--०२---नलिन-जुगल उपर रहे लोभाई ॥
३००--०३---स्रवन सुन्दर, सम कुण्डल कल जुगम,
३००--०३---तुलसिदास अनूप, उपमा कही न जाई ।
३००--०३---मानो मरकत सीप सुन्दर ससि समीप
३००--०३---कनक मकरजुत बिधि बिरची बनाई ॥
३०१--राग}  भैरव
३०१--०१---प्रातकाल रघुबीर-बदन-छबि चितै, चतुर चित मेरे ।
३०१--०१---होहिं बिबेक-बिलोचन निरमल सुफल सुसीतल तेरे ॥
३०१--०२---भाल बिसाल बिकट भ्रुकुटी बिच तिलक-रेख रुचि राजै ।
३०१--०२---मनहुँ मदन तम तकि मरकत-धनु जुगुल कनक सर साजै ॥
३०१--०३---रुचिर पलक लोचन जुग तारक स्याम, अरुन सित कोए ।
३०१--०३---जनु अलि नलिन-कोस महँ बन्धुक-सुमन सेज सजि सोए ॥
३०१--०४---बिलुलित ललित कपोलनिपर कच मेचक कुटिल सुहाए ।
३०१--०४---मनो बिधुमहँ बनरुह बिलोकि अलि बिपुल सकौतुक आए ॥
३०१--०५---सोभित स्रवन कनक-कुण्डल कल लम्बित बिबि भुजमूले ।
३०१--०५---मनहुँ केकि तकि गहन चहत जुग उरग इंदु प्रतिकूले ॥
३०१--०६---अधर अरुनतर, दसन-पाँति बर, मधुर मनोहर हासा ।
३०१--०६---मनहुँ सोन सरसिज महँ कुलिसनि तड़ित सहित कृत बासा ॥
३०१--०७---चारु चिबुक, सुकतुण्ड बिनिन्दक सुभग सून्नत नासा ।
३०१--०७---तुलसिदास छबिधाम राममुख सुखद, समन भवत्रासा ॥
३०२--राग}  केदारा
३०२--०१---सुमिरत श्रीरघुबीरजीकी बाहैं ।
३०२--०१---रोत सुगम भव-उदधि अगम अति, कोउ लाँघत, कोउ उतरत थाहैं ॥
३०२--०२---सुन्दर-स्याम-सरीर-सैलतें धँसि जनु जुग जमुना अवगाहैं ।
३०२--०२---अमित अमल जल-बल परिपूरन, जनु जनमी सिँगार सविता हैं ॥
३०२--०३---धारैं बान, कूल धनु, भूषन जलचर, भँवर सुभग सब घाहैं ।
३०२--०३---बिलसति बीचि बिजय-बिरदावलि, कर-सरोज सोहत सुषमा हैं ॥
३०२--०४---सकल-भुवन-मङ्गल-मन्दिरके द्वार बिसाल सुहाई साहैं ।
३०२--०४---जे पूजी कौसिक-मख ऋषियनि, जनक-गनप, सङ्कर-गिरिजा हैं ॥
३०२--०५---भवधनु दलि जानकी बिबाही, भए बिहाल नृपाल त्रपा हैं ।
३०२--०५---परसुपानि जिन्ह  किये महामुनि जे चितए कबहू न कृपा हैं ॥
३०२--०६---जातुधान-तिय जानि बियोगिनि दुखई सीय सुनाइ कुचाहैं ।
३०२--०६---जिन्ह रिपु मारि सुरारि-नारि तेइ सीस उघारि दिवाई धाहैं ॥
३०२--०७---दसमुख-बिबस तिलोक लोकपति बिकल बिनाए नाक चना हैं ।
३०२--०७---सुबस बसे गावत जिन्हके जस अमर-नाग-नर सुमुखि सना हैं ॥
३०२--०८---जे भुज बेद-पुरान, सेष-सुक-सारद सहित सनेह सराहैं ।
३०२--०८---कलपलताहुकी कलपलता बर, कामदुहहुकी कामदुहा हैं ॥
३०२--०९---सरनागत-आरत-प्रनतनिको दै दै अभयपद ओर निबाहैं ।
३०२--०९---करि आईं, करिहैं, करती हैं तुलसिदास दासनिपर छाहैं ॥
३०३--राग}  भैरव
३०३--०१---रामचन्द्र-करकञ्ज कामतरु बामदेव-हितकारी ।
३०३--०१---सियसनेह-बर बेलि-बलित बर-प्रेम बन्धु बर बारी ॥
३०३--०२---मञ्जुल मङ्गल-मूल मूल तनु, करज मनोहर साखा ।
३०३--०२---रोम परन, नख सुमन, सुफल सब काल सुजन-अभिलाषा ॥
३०३--०३---अबिचल, अमल, अनामय, अबिरल ललित, रहित छल छाया ।
३०३--०३---समन सकल सन्ताप-पाप-रुज-मोह-मान-मद-माया ॥
३०३--०४---सेवहिं सुचि मुनि भृङ्ग-बिहग मन-मुदित मनोरथ पाए ।
३०३--०४---सुमिरत हिय हुलसत तुलसी अनुराग उमगि गुन गाए ॥
३०४--०१---रामचरन अभिराम कामप्रद तीरथ-राज बिराजै ।
३०४--०१---सङ्कर-हृदय-भगति-भूतलपर प्रेम-अछयबट भ्राजै ॥
३०४--०२---स्यामबरन पद-पीठ, अरुन तल, लसति बिसद नखस्रेनी ।
३०४--०२---जनु रबि-सुता सारदा-सुरसरि मिलि चलीं ललित त्रिबेनी ॥
३०४--०३---अंकुस-कुलिस-कमल-धुज सुन्दर भँवर तरङ्ग-बिलासा ।
३०४--०३---मज्जहिं सुर-सज्जन, मुनिजन-मन मुदित मनोहर बासा ॥
३०४--०४---बिनु बिराग-जप-जाग-जोग-ब्रत, बिनु तप, बिनु तनु त्यागे ।
३०४--०४---सब सुख सुलभ सद्य तुलसी प्रभु-पद-प्रयाग अनुरागे ॥
३०५--राग}  बिलावल
३०५--०१---रघुबर-रूप बिलोकु, नेकु मन ।
३०५--०१---सकल लोक-लोचन-सुखदायक, नखसिख सुभग स्यामसुन्दर तन ॥
३०५--०२---चारु चरन-तल-चिन्ह चारि फल चारि देत परचारि जानि जन ।
३०५--०२---राजत नख जनु कमल-दलनिपर अरुन-प्रभा-रञ्जित तुषार-कन ॥
३०५--०३---जङ्घा-जानु आनु कदली उर, कटि किङ्किनि, पटपीत सुहावन ।
३०५--०३---रुचिर निषङ्ग, नाभि, रोमावलि, त्रिबलि, बलित उपमा कछु आव न ॥
३०५--०४---भृगुपद-चिन्ह, पदिक, उर सोभित, मुकुतमाल, कुङ्कुम-अनुलेपन ।
३०५--०४---मनहुँ परसपर मिलि पङ्कज-रबि प्रगट्यो निज अनुराग, सुजस घन ॥
३०५--०५---बाहु बिसाल ललित सायक-धनु, कर कङ्कन केयूर महाधन ।
३०५--०५---बिमल दुकूल-दलन दामिनि-दुति, यज्ञोपवीत लसत अति पावन ॥
३०५--०६---कम्बुग्रीव, छबि सींव, चिबुक, द्विज, अधर, कपोल, बोल, भय-मोचन ।
३०५--०६---नासिक सुभग, कृपापरिपूरन तरुन अरुन राजीव बिलोचन ॥
३०५--०७---कुटिल भ्रुकुटिबर, भाल तिलक रुचि, सुचि सुन्दरता स्रवन-बिभूषन ।
३०५--०७---मनहुँ मारि मनसिज पुरारि दिय ससिहि चाप सर-मकर अदूषन ॥
३०५--०८---कुञ्चित कच, कञ्चन-किरीट सिर, जटित ज्योतिमय बहुबिधि मनिगन ।
३०५--०८---तुलसिदास रबिकुल रबि-छबि कबि कहि न सकत सुक-सम्भु-सहसफन ॥
३०६--राग}  कान्हरा
३०६--०१---देखो रघुपति-छबि अतुलित अति ।
३०६--०१---जनु तिलोक-सुषमा सकेलि बिधि राखी रुचिर अंग-अंगनि प्रति ॥
३०६--०२---पदुमराग रुचि मृदु पदतल धुज-अंकुस-कुलिस-कमल यहि सूरति ।
३०६--०२---रही आनि चहुँ बिधि भगतिनिकी जनु अनुरागभरी अंतरगति ॥
३०६--०३---सकल-सुचिन्ह-सुजन-सुखदायक, ऊरधरेख बिसेष बिराजति ।
३०६--०३---मनहुँ भानु-मण्डलहि सँवारत धर्यो सूत बिधि-सुत बिचित्रमति ॥
३०६--०४---सुभग अँगुष्ठ, अंगुली अबिरल, कछुक अरुन नख-ज्योति जगमगति ।
३०६--०४---चरन-पीठ उन्नत नत पालक, गूढ़ गुलुफ, जङ्घा कदलीजति ॥
३०६--०५---काम तून-तल-सरिस जानु जुग, उरु करिकर करभहि बिलखावति ।
३०६--०५---रसना रचित रतन चामीकर, पीत बसन कटि कसे सरसावति ॥
३०६--०६---नाभी सर, त्रिवली निसेनिका, रोमराजिस सैवल-छबि पावति ।
३०६--०६---उर मुकुतामनि-माल मनोहर मनहु हंस-अवली उड़ि आवति ॥
३०६--०७---हृदय पदिक, भृग-चरन चिन्हबर-बाहु बिसाल जानुलगि पहुँचति ।
३०६--०७---कल केयूर पूर कञ्चन-मनि, पहुँची मञ्जु कञ्जकर सोहति ॥
३०६--०८---सुजव सुरेख सुनख अंगुलिजुत सुन्दर पानि मुद्रिका राजति ।
३०६--०८---अंगुलित्रान-कमान-बानछबि सुरनि सुखद, असुरनि उर सालति ॥
३०६--०९---स्याम सरीर सुचन्दन-चरचित पीत दुकूल अधिक छबि छाजति ।
३०६--०९---नील जलदपर निरखि चन्द्रिका दुरनि त्यागि दामिनि जनु दमकति ॥
३०६--१०---यज्ञोपबीत पुनीत बिराजत गूढ़ जत्रु बनि पीन अंस तति ।
३०६--१०---सुगढ़ पुष्ट उन्नत कृकाटिका, कम्बु-कण्ठ-सोभा मन मानति ॥
३०६--११---सरद-समय-सरसीरुह-निन्दक मुख सुषमा कछु कहत न बानति ।
३०६--११---निरखतही नयननि निरुपम सुख, रबिसुत-मदन-सोम-दुति निदरित ॥
३०६--१२---अरुन अधर, द्विजपाँति अनूपम, ललित हँसनि जनु मन आकरषति ।
३०६--१२---बिद्रुम-रचित बिमानमध्य जनु सुरमण्डली सुमन-चय-बरसति ॥
३०६--१३---मञ्जुल चिबुक, मनोरम हनुथल, कल कपोल, नासा मन मोहति ।
३०६--१३---पङ्कज-मान-बिमोचन लोचन, चितवनि चारु अमृत-जल सीञ्चति ॥
३०६--१४---केस सुदेस, गँभीर बचन बर स्रुतिकुण्डल-डोलनि जिय जागति ।
३०६--१४---लखि नवनील पयोद, रवित सुनि, रुचिर मोर जोरी जनु नाचति ॥
३०६--१५---भौंहै बङ्क मयङ्क-अंक-रुचि, कुङ्कुमरेख भाल भलि भ्राजति ।
३०६--१५---सिरसि, हेम-हीरक-मानिकमय मुकुट-प्रभा सब भुवन प्रकासति ॥
३०६--१६---बरनत रूप पार नहिं पावत निगम-सेष-सुक-सङ्कर-भारति ।
३०६--१६---तुलसिदास केहि बिधि बखानि कहै यह मन-बचन अगोचर मूरति ॥
३०७--०१---राम-हिण्डोला
३०७--राग}  मलार
३०७--०१---आली री! राघोके रुचिर हिण्डोलना झूलन जैए ॥
३०७--०१---फटिक-भीति सुचारु चहुँ दिसि, मञ्जु मनिमय पौरि ।
३०७--०१---गच काँच लखि मन नाच सिखि जनु, पाँचसर-सुफँसौरि ॥
३०७--०१---तोरन-बितान-पताक-चामर-धुज सुमन-फल घौरि ।
३०७--०१---प्रतिछाँह-छबि कबि-साखि दै प्रति सों कहै गुरु हौं रि ॥
३०७--०२---मदन-जयके खम्भ-से रचे खम्भ सरल बिसाल ।
३०७--०२---पाटीर-पाटि बिचित्र भँवरा बलित, बेलन लाल ॥
३०७--०२---डाँड़ो कनक कुङ्कुम-तिलक-रेख-सी मनसिज-भाल ।
३०७--०२---पटुली पदिक रति-हृदय जनु कलधौत कोमल माल ॥
३०७--०३---उनये सघन घनघोर, मृदु झरि सुखद सावन लाग ।
३०७--०३---बगपाँति, सुरधनु, दमक दामिनि हरित भूमि-बिभाग ॥
३०७--०३---दादुर मुदित, भरे सरित-सर, महि उमग जनु अनुराग ।
३०७--०३---पिक-मोर-मधुप-चकोर-चातक-सोर उपबन बाग ॥
३०७--०४---सो समौ देखि सुहावनो नवसत सँवारि-सँवारि ।
३०७--०४---गुन-रूप-जोबन-सींव सुन्दरि चलीं झुण्डनि झारि ॥
३०७--०४---हिण्डोल-साल बिलोकि सब अंचल पसारि-पसारि ।
३०७--०४---लागीं असीसन राम-सीतहि सुख-समाजु निहारि ॥
३०७--०५---झूलहिं, झुलावहिं, ओसरिन्ह गावैं सुहो, गौण्डमलार ।
३०७--०५---मञ्जीर-नूपुर-बलय-धुनि जनु काम-करतल-तार ॥
३०७--०५---अति मुचत स्रमकन मुखनि, बिथुरे चिकुर, बिलुलित हार ।
३०७--०५---तम तड़ित उडुगन अरुन बिधु जनु करत ब्योम- बिहार ॥
३०७--०६---हिय हरषि, बरषि प्रसून निरखति बिबुध-तिय तृन तूरि ।
३०७--०६---आनन्द-जल-लोचन, मुदित मन, पुलक तनु भरि पूरि ॥
३०७--०६---सब कहहिं, अबिचल राज नित, कल्यान-मङ्गल भूरि ।
३०७--०६---चिर जियौ जानकिनाथ जग तुलसी-सजीवनि-मूरि ॥
३०८--०१---अयोध्याकी रमणीयता
३०८--०१---वर्षा-वर्णन
३०८--राग}  सूहो
३०८--०१---कोसलपुरी सुहावनी लरि सरजूके तीर ।
३०८--०१---भूपावली-मुकुटमनि नृपति जहाँ रघुबीर ॥
३०८--०१---पुर-नर-नारि चतुर अति, धरमनिपुन, रत-नीति ।
३०८--०१---सहज सुभाय सकल उर श्रीरघुबर-पद-प्रीति ॥
३०८--०१---श्रीरामपद-जलजात सबके प्रीति अबिरल पावनी ।
३०८--०१---जो चहत सुक-सनकादि, सम्भु-बिरञ्चि, मुनि-मन-भावनी ॥
३०८--०१---सबहीके सुन्दर मन्दिराजिर, राउ-रङ्क न लखि परै ।
३०८--०१---नाकेस-दुरलभ भोग लोग करहिं, न मन बिषयनि हरै ॥
३०८--०२---सब रितु सुखप्रद सो पुरी, पावस अति कमनीय ।
३०८--०२---निरखत मनहिं हरत हठि हरित अवनि रमनीय ॥
३०८--०२---बीरबहूटि बिराजहीं, दादुर-धुनि चहु ओर ।
३०८--०२---मधुर गरजि घन बरषहिं, सुनि सुनि बोलत मोर ॥
३०८--०२---बोलत जो चातक-मोर, कोकिल-कीर, पारावत घने ।
३०८--०२---खग बिपुल पाले बालकनि कूजत उड़ात सुहावने ॥
३०८--०२---बकराजि राजति गगन, हरिधनु, तड़ित दस दिसि सोहहीं ।
३०८--०२---नभ-नगरकी सोभा अतुल अवलोकि मुनि-मन मोहहीं ॥
३०८--०३---गृह-गृह रचे हिडोलना, महि गच काँच सुढार ।
३०८--०३---चित्र बिचित्र चहू दिसि परदा फकि-पगार ॥
३०८--०३---सरल बिसाल बिराजहीं बिद्रुम-खम्भ सुजोर ।
३०८--०३---चारु पाटि पटि पुरटकी झरकत मरकत भौंर ॥
३०८--०३---मरकत भवँर डाँड़ी कनक मनि-जटित दुति जगमगि रही ।
३०८--०३---पटुली मनहु बिधि निपुनता निज प्रगट करि राखी सही ॥
३०८--०३---बहुरङ्ग लसत बितान मुकुतादाम-सहित मनोहरा ।
३०८--०३---नव-सुमन-माल-सुगन्ध लोभे मञ्जु गुञ्जत मधुकरा ॥
३०८--०४---झुण्ड-झुण्ड झूलन चलीं गजगामिनि बर नारि ।
३०८--०४---कुसुँभि चीर तनु सोहहीं, भूषन बिबिध सँवारि ॥
३०८--०४---पिकबयनी मृगलोचनी सारद ससि सम तुण्ड ।
३०८--०४---रामसुजस सब गावहीं सुसुर सुसारँग गुण्ड ॥
३०८--०४---सारङ्ग गुण्ड-मलार, सोरठ, सुहव सुघरनि बाजहीं ।
३०८--०४---बहु भाँति तान-तरङ्ग सुनि गन्धरब किन्नर लाजहीं ॥
३०८--०४---अति मचत, छूटत कुटिल कच, छबि अधिक सुन्दरि पावहीं ।
३०८--०४---पट उड़त, भूषन खसत, हँसि-हँसि अपर सखी झुलावहीं ॥
३०८--०५---फिरि फिरि झूलहिं भामिनी अपनी अपनी बार ।
३०८--०५---बिबुध-बिमान थकित भए देखत चरित अपार ॥
३०८--०५---बरषि सुमन हरषहिं उर, बरनहिं हरगुन-गाथ ।
३०८--०५---पुनि पुनि प्रभुहि प्रसंसहीं जय जय जानकिनाथ ॥
३०८--०५---जय जानकीपति बिसद कीरति सकल-लोक-मलापहा ।
३०८--०५---सुरबधू देहिं असीस, चिरजिव राम, सुख-सम्पति महा ॥
३०८--०५---पावस समय कछु अवध बरनत सुनि अघौघ नसावहीं ।
३०८--०५---रघुबीरके गुनगन नवल नित दास तुलसी गावहीं ॥
३०९--०१---दीपमालिका
३०९--राग}  आसावरी
३०९--०१---साँझ समय रघुबीर-पुरीकी सोभा आजु बनी ।
३०९--०१---ललित दीपमालिका बिलोकहिं हित करि अवधधनी ॥
३०९--०२---फटिक-भीत-सिखरन-पर राजति कञ्चन-दीप-अनी ।
३०९--०२---जनु अहिनाथ मिलन आयो मनि-सोभित सहसफनी ॥
३०९--०३---प्रति मन्दिर कलसनिपर भ्राजहिं मनिगन दुति अपनी ।
३०९--०३---मानहुँ प्रगटि बिपुल लोहितपुर पठै दिये अवनी ॥
३०९--०४---घर घर मङ्गलचार एकरस हरषित रङ्क-गनी ।
३०९--०४---तुलसिदास कल कीरति गावहिं, जो कलिमल-समनी ॥
३१०--०१---वसन्त-विहार
३१०--राग}  गौरी
३१०--०१---अवध नगर अति सुन्दर बर सरिताके तीर ।
३१०--०१---नीति-निपुन नर-दिय सबहिं धरम-धुरन्धर, धीर ॥
३१०--०२---सकल रितुन्ह सुखदायक, तामहँ अधिक बसन्त ।
३१०--०२---भूप-मौलि-मनिजहँ बस नृपति जानकीकन्त ॥
३१०--०३---बन उपबन नव किसलय, कुसुमित नाना रङ्ग ।
३१०--०३---बोलत मधुर मुखर खग पिकबर, गुञ्जत भृङ्ग ॥
३१०--०४---समय बिचारि कृपानिधि, देखि द्वार अति भीर ।
३१०--०४---खेलहु मुदित नारि-नर, बिहँसि कहेउ रघुबीर ॥
३१०--०५---नगर-नारि-नर हरषित सब चले खेलन फागु ।
३१०--०५---देखि राम छबि अतुलित उमगत उर अनुराग ॥
३१०--०६---स्याम-तमाल-जलदतनु निरमल पीत दुकूल ।
३१०--०६---अरुन-कञ्ज-दल-लोचन सदा दास अनुकूल ॥
३१०--०७---सिर किरीट स्रुति कुण्डल, तिलक मनोहर भाल।
३१०--०७---कुञ्चित केस, कुटिल भ्रू, चितवनि भगत-कृपाल ॥
३१०--०८---कल कपोल, सुक नासिक, ललित अधर द्विज जोति ।
३१०--०८---अरुन कञ्ज महँ जनु जुग पाँति रुचिर गज-मोति ॥
३१०--०९---बर दर-ग्रीव, अमितबल बाहु सुपीन बिसाल ।
३१०--०९---कङ्कन-हार मनोहर, उरसि लसति बनमाल ॥
३१०--१०---उर भृगु-चरन बिराजत, द्विज-प्रिय चरित पुनीत ।
३१०--१०---भगत हेतु नर बिग्रह सुरबर गुन-गोतीत ॥
३१०--११---उदर त्रिरेख मनोहर, सुन्दर नाभि गँभीर ।
३१०--११---हाटक-घटित, जटित मनि कटितट रट मञ्जीर ॥
३१०--१२---उरु अरु जानु पीन, मृदु, मरकत खम्भ समान ।
३१०--१२---नूपुर मुनि-मन मोहत, करत सुकोमन गान ॥
३१०--१३---अरुनबरन पदपङ्कज, नखदुति इंदु-प्रकास ।
३१०--१३---जनक-सुता-करपल्लव-लालित बिपुल बिलास ॥
३१०--१४---कञ्जकुलिस-धुज-अंकुस-रेख रचन सुभ चारि ।
३१०--१४---जन-मन-मीन हरन कहँ बंसी रची सँवारि ॥
३१०--१५---अंग अंग प्रति अतुलित सुषमा बरनि न जाइ ।
३१०--१५---एहि सुख मगन होइ मन फिरि नहि अनत लोभाइ ॥
३१०--१६---खेलत फागु, अवधपति, अनुज-सखा सब सङ्ग ।
३१०--१६---बरषि सुमन सुर निरखहिं सोभा अमित अनङ्ग ॥
३१०--१७---ताल, मृदङ्ग, झाँझ, डफ बाजहिं पनव-निसान ।
३१०--१७---सुघर सरस सहनाइन्ह गावहिं समय समान ॥
३१०--१८---बीना-बेनु-मधुर-धुनि सुनि किन्नर-गन्धर्ब ।
३१०--१८---निज-गुन गरुअ हरुअ अति मानहिं मन तजि गर्ब ॥
३१०--१९---निज-निज अटनि मनोहर गान करहिं पिकबैनि ।
३१०--१९---मनहुँ हिमालय-सिखरनि लसहिं अमर-मृगनैनि ॥
३१०--२०---धवल धामतें निकसहिं जहँ तहँ नारि-बरूथ ।
३१०--२०---मानहुँ मथत पयोनिधि बिपुल अपसरा-जूथ ॥
३१०--२१---किंसुकबरन सुअंसुक सुषमा सुखनि समेत ।
३१०--२१---जनु बिधु-निबह रहे करि दामिनि-निकर निकेत ॥
३१०--२२---कुङ्कुम सुरस अबीरनि भरहिं चतुर बर नारि ।
३१०--२२---रितु सुभाय सुठि सोभित देहिं बिबिध बिधि गारि ॥
३१०--२३---जो सुख जोग, जाग, जप, अरु तीरथतें दूरि ।
३१०--२३---राम-कृपातें सोइ सुख अवध गलिन्ह रह्यो पूरि ॥
३१०--२४---खेलि बसन्त कियो प्रभु मज्जन सरजूनीर ।
३१०--२४---बिबिध भाँति जाचक जन पाए भूषन चीर ॥
३१०--२५---तुलसिदास तेहि अवसर माँगी भगति अनूप ।
३१०--२५---मृदु मुसुकाइ दीन्हि तब कृपादृष्टि रघुभूप ॥
३११--राग}  बसन्त
३११--०१---खेलत बसन्त राजाधिराज । देखत नभ कौतुक सुर-समाज ॥
३११--०२---सोहैं सखा-अनुज रघुनाथ साथ । झोलिन्ह अबीर, पिचकारि हाथ ॥
३११--०३---बाजहिं मृदङ्ग, डफ, ताल, बेनु । छिरकैं सुगन्ध भरे मलय-रेनु ॥
३११--०४---उत जुबति-जूथ जानकी सङ्ग ।पहिरे पट भूषन सरस रङ्ग ॥
३११--०५---लिये छरी बेन्त सोन्धैं बिभाग । चाँचरि झूमक कहैं सरसराग ॥
३११--०६---नूपुर-किङ्किनि-धुनि अति सोहाइ । ललना-गन जब जेहि धरैँ धाइ ॥
३११--०७---लोचन आँजहिं फगुआ मनाइ । छाड़हिं नचाइ, हाहा कराइ ॥
३११--०८---चढ़े खरनि बिदूषक स्वाँग साजि । करैं कूटि, निपट गई लाज भाजि ॥
३११--०९---नर-नारि परसपर गारि देत । सुनि हँसत राम भाइन समेत ॥
३११--१०---बरषत प्रसून बर-बिबुध-बृन्द । जय-जय दिनकर-कुल-कुमुदचन्द ॥
३११--११---ब्रह्मादि प्रसंसत अवध बास । गावत कलकीरति तुलसिदास ॥
३११--०२---अयोध्याका आनन्द
३११--राग}  केदारा
३११--०२---नगर-रचना सिखनको बिधि तकत बहु बिधिबृन्द ।
३११--०२---निपट लागत अगम, ज्यों जलचरहि गमन सुछन्द ॥
३११--०३---मुदित पुरलोगनि सराहत निरखि सुखमाकन्द ।
३११--०३---जिन्हके सुअलि-चख पियत राम-मुखारबिन्द-मरन्द ॥
३११--०४---मध्य ब्योम बिलम्बि चलत दिनेस-उडुगन-चन्द ।
३११--०४---रामपुरी बिलोकि तुलसी मिटत सब दुख-द्वन्द ॥
३१२--०१---रामराज्य
३१२--राग}  सोरठ
३१२--०१---पालत राज यों राजा राम धरमधुरीन ।
३१२--०१---सावधान, सुजान, सब दिन रहत नय-लयलीन ॥
३१२--०२---स्वान-खग-जति-न्याउ देख्यो आपु बैठि प्रबीन ।
३१२--०२---नीचु हति महिदेव-बालक कियो मीचुबिहीन ॥
३१२--०३---भरत ज्यों अनुकूल जग निरुपाधि नेह नवीन ।
३१२--०३---सकल चाहत रामही, ज्यों जल अगाधहि मीन ॥
३१२--०४---गाइ राज-समाज जाँचत दास तुलसी दीन ।
३१२--०४---लेहु निज करि, देहु निज-पद-प्रेमपावन पीन ॥
३१३--०१---सीता-वनवास
३१३--०१---सङ्कट-सुकृतको सोचत जानि जिय रघुराउ ।
३१३--०१---सहस द्वादस पञ्चसतमें कछुक है अब आउ ॥
३१३--०२---भोग पुनि पितु-आयुको, सोउ किए बनै बनाउ ।
३१३--०२---परिहरे बिनु जानकी नहि और अनघ उपाउ ॥
३१३--०३---पालिबे असिधार-ब्रत, प्रिय प्रेम-पाल सुभाउ ।
३१३--०३---होइ हित केहि भाँति, नित सुबिचारु, नहि चित चाउ ॥
३१३--०४---निपट असमञ्जसहु बिलसति मुख मनोहरताउ ।
३१३--०४---परम धीर-धुरीन हृदय कि हरष-बिसमय काउ ?॥
३१३--०५---अनुज-सेवक-सचिव हैं सब सुमति, साध सखाउ ।
३१३--०५---जान कोउ न जानकी बिनु अगम अलख लखाउ ॥
३१३--०६---राम जोगवत सीय-मनु, प्रिय-मनहि प्रानप्रियाउ ।
३१३--०६---परम पावन प्रेम-परमिति समुझि तुलसी गाउ ॥
३१४--०१---राम बिचारि कै राखी ठीक दै मन माहिं ।
३१४--०१---लोक-बेद-सनेह पालत पल कृपालहि जाहिं ॥
३१४--०२---प्रियतमा, पति देवता, जिहि उमा रमा सिहाहिं ।
३१४--०२---गुरुविनी सुकुमारि सिय तियमनि समुझि सकुचाहिं ॥
३१४--०३---मेरे ही सुख सुखी, सुख अपनो सपनहूँ नाहिं ।
३१४--०३---गेहिनी-गुन-गेहिनी गुन सुमिरि सोच समाहिं ॥
३१४--०४---राम-सीय-सनेह बरनत अगम सुकबि सकाहिं ।
३१४--०४---रामसीय-रहस्य तुलसी कहत राम-कृपाहिं ॥
३१५--०१---चरचा चरनिसों चरची जानमनि रघुराइ ।
३१५--०१---दूत-मुख सुनि लोक-धुनि घर घरनि बूझी आइ ॥
३१५--०२---प्रिया निज अभिलाष रुचि कहि कहति सिय सकुचाइ ।
३१५--०२---तीय-तनयसमेत तापस पूजिहौं बन जाइ ॥
३१५--०३---जानि करुनासिन्धु भाबी-बिबस सकल सहाइ ।
३१५--०३---धीर धरि रघुबीर भोरहि लिए लषन बोलाइ ॥
३१५--०४---"तात तुरतहि साजि स्यन्दन सीय लेहु चढ़ाइ ।
३१५--०४---बालमीकि मुनीस आस्रम आइयहु पहुँचाइ॥
३१५--०५---"भलेहि नाथ, सुहाथ माथे राखि राम-रजाइ ।
३१५--०५---चले तुलसी पालि सेवक-धरम अवधि अघाइ ॥
३१६--०१---आइ लषन लै सौम्पी सिय मुनीसहि आनि ।
३१६--०१---नाइ सिर रहे पाइ आसिष जोरि पङ्कजपानि ॥
३१६--०२---बालमीकि बिलोकि ब्याकुल लषन गरत गलानि ।
३१६--०२---सरबिबद बूझत न, बिधिकी बामता पहिचानि ॥
३१६--०३---जानि जिय अनुमानही सिय सहस बिधि सनमानि ।
३१६--०३---राम सदगुन-धाम-परमिति भई कछुक मलानि ॥
३१६--०४---दीनबन्धु दयालु देवर देखि अति अकुलानि ।
३१६--०४---कहति बचन उदास तुलसीदास त्रिभुवन-रानि ॥
३१७--०१---तौलों बलि, आपुही कीबी बिनय समुझि सुधारि ।
३१७--०१---जौलों हौं सिखि लेउँ बन रिषि-रीति बसि दिन चारि ॥
३१७--०२---तापसी कहि कहा पठवति नृपनिको मनुहारि ।
३१७--०२---बहुरि तिहि बिधि आइ कहिहै साधु कोउ हितकारि ॥
३१७--०३---लषनलाल कृपाल! निपटहि डारिबी न बिसारि ।
३१७--०३---पालबी सब तापसनि ज्यों राजधरम बिचारि ॥
३१७--०४---सुनत सीता-बचन मोचत सकल लोचन-बारि ।
३१७--०४---बालमीकि न सके तुलसी सो सनेह सँभारि ॥
३१८--०१---सुनि ब्याकुल भए, उतरु कछु कह्यो न जाइ ।
३१८--०१---जानि जिय बिधि बाम दीन्हों मोहि सरुष सजाइ ॥
३१८--०२---कहत हिय मेरी कठिनई लखि गई प्रीति लजाइ ।
३१८--०२---आजु अवसर ऐसेहू जौं न चले प्रान बजाइ ॥
३१८--०३---इतहि सीय-सनेह-सङ्कट उतहि राम-रजाइ ।
३१८--०३---मौनही गहि चरन, गौने सिख-सुआसिष पाइ ॥
३१८--०४---प्रेम-निधि पितुको कहे मैं परुष बचन अघाइ ।
३१८--०४---पाप तेहि परिताप तुलसी उचित सहे सिराइ ॥
३१९--०१---गौने मौनही बारहि बारि परि परि पाय ।
३१९--०१---जात जनु रथ चीर कर लछिमन मगन पछिताय ॥
३१९--०२---असन बिनु बन, बरम बिनु रन, बच्यौ कठिन कुघाय ।
३१९--०२---दुसह साँसति सहनको हनुमान ज्यायो जाय ॥
३१९--०३---हेतु हौं सियहरनको तब, अबहु भयो सहाय ।
३१९--०३---होत हठि मोहि दाहिनो दिन दैव दारुन दाय ॥
३१९--०४---तज्यो तनु सङ्ग्राम जेहि लगि गीध जसी जटाय ।
३१९--०४---ताहि हौं पहुँचाइ कानन चल्यों अवध सुभाय ॥
३१९--०५---घोरहृदय कठोर-करतब सृज्यो हौं बिधि बायँ ।
३१९--०५---दास तुलसी जानि राख्यो कृपानिधि रघुराय ॥
३२०--०१---पुत्रि! न सोचिए आई हौं जनक-गृह जिय जानि ।
३२०--०१---कालिही कल्यान-कौतुक, कुसल तव, कल्यानि ॥
३२०--०२---राजरिषि पितु-ससुर प्रभु पति, तू सुमङ्गलखानि ।
३२०--०२---ऐसेहू थल बामता, बड़ि बाम बिधि की बानि ॥
३२०--०३---बोलि मुनि कन्या सिखाई प्रीति-गति पहिचानि ।
३२०--०३---आलसिन्हकी देवसरि सिय सेइयहु मन मानि ॥
३२०--०४---न्हाइ प्रातहि पूजिबो बट बिटप अभिमत-दानि ।
३२०--०४---सुवन-लाहु, उछाहु दिन दिन, देबि, अनहित-हानि ॥
३२०--०५---पार-ताप-बिमोचनी कहि कथा सरस पुरानि ।
३२०--०५---बालमीकि प्रबोधि तुलसी, गई गरुइ गलानि ॥
३२१--०१---जबतें जानकी रही रुचिर आस्रम आइ ।
३२१--०१---गगन, जल, थल बिमल तबतें, सकल मङ्गलदाइ ॥
३२१--०२---निरस भूरुह सरस फूलत, फलत अति अधिकाइ ।
३२१--०२---कन्द-मूल, अनेक अंकुर स्वाद सुधा लजाइ ॥
३२१--०३---मलय मरुत, मराल-मधुकर-मोर-पिक-समुदाइ ।
३२१--०३---मुदित-मन मृग-बिहग बिहरत बिषम बैर बिहाइ ॥
३२१--०४---रहत रबि अनुकूल दिन, ससि रजनि सजनि सुहाइ ।
३२१--०४---सीय सुनि सादर सराहति सखिन्ह भलो मनाइ ॥
३२१--०५---मोद बिपिन बिनोद चितवत लेत चितहि चोराइ ।
३२१--०५---राम बिनु सिय सुखद बन, तुलसी कहै किमि गाइ ॥
३२२--०१---लव-कुश-जन्म
३२२--०१---सुभ दिन, सुभ घरी, नीको नखत, लगन सुहाइ ।
३२२--०१---पूत जाये जानकी द्वै, मुनिबधू, उठीं गाइ ॥
३२२--०२---हरषि बरषत सुमन सुर गहगहे बधाए बजाइ ।
३२२--०२---भुवन, कानन, आस्रमनि रहे मोद-मङ्गल छाइ ॥
३२२--०३---तेहि मुनिसों बिदा गवनें भोर सो सुख पाइ ॥
३२२--०४---मातु-मौसी-बहिनिहूतें, सासुतें अधिकाइ ।
३२२--०४---करहिं तापस-तीय-तनया सीय-हित चित लाइ ॥
३२२--०५---किए बिधि-ब्यवहार मुनिबर बिप्रबृन्द बोलाइ ।
३२२--०५---कहत सब, रिषिकृपाको फल भयो आजु अघाइ ॥
३२२--०६---सुरुष ऋषि, सुख सुतनिको, सिय-सुखद सकल सहाइ ।
३२२--०६---सूल राम-सनेहको तुलसी न जियतें जाइ ॥
३२३--०१---मुनिबर करि छठी कीन्हीं बारहेङ्की रीति ।
३२३--०१---बन-बसन पहिराइ तापस, तोषि पोषे प्रीति ॥
३२३--०२---नामकरन सुअन्नप्रासन बेद बाँधी नीति ।
३२३--०२---समय सब रिषिराज करत समाज साज समीति ॥
३२३--०३---बाल लालहिं, कहहिं करहैं राज सब जग जीति ।
३२३--०३---राम-सिय-सुत, गुर-अनुग्रह, उचित, अचल प्रतीति ॥
३२३--०४---निरखि बाल-बिनोद तुलसी जात बासर बीति ।
३२३--०४---पिय-चरित-चित-चितेरो लिखत नित हित-भीति ॥
३२४--०१---बालक सीयके बिहरत मुदित-मन दोउ भाइ ।
३२४--०१---नाम लव-कुस राम-सिय अनुहरति सुन्दरताइ ॥
३२४--०२---देत मुनि मुनि-सिसु खेलौना, ते लै धरत दुराइ ।
३२४--०२---खेल खेलत नृप-सिसुन्हके बालबृन्द बोलाइ ॥
३२४--०३---भूप-भूषन-बसन-बाहन, राज-साज सजाइ ।
३२४--०३---बरम-चरम, कृपान-सर, धनु-तून लेत बनाइ ॥
३२४--०४---दुखी सिय पिय-बिरह तुलसी, सुखी सुत-सुख पाइ ।
३२४--०४---आँच पय उफनात सीञ्चत सलिल ज्यों सकुचाइ ॥
३२५--०१---कैकेयी जौलों जियति रही ।
३२५--०१---तौलों बात मातुसों मुँह भरि भरत न भूलि कही ॥
३२५--०२---मानी राम अधिक जननीतें, जननिहु गँस न गही ।
३२५--०२---सीय-लषन रिपुदवन राम-रुख लखि सबकी निबही ॥
३२५--०३---लोक-बेद-मरजाद दोष-गुन-गति चित चख न चही ।
३२५--०३---तुलसी भरत समुझि सुनि राखी राम-सनेह सही ॥
३२६--०१---रामचरितका उल्लेख
३२६--राग}  रामकली
३२६--०१---रघुनाथ तुम्हारे चरित मनोहर गावहिं सकल अवधबासी ।
३२६--०१---अति उदार अवतार मनुज-बपु धरे ब्रह्म अज अबिनासी ॥
३२६--०२---प्रथम ताड़का हति, सुबाहु बधि, मख राख्यो द्विज, हितकारी ।
३२६--०२---देखि दुखी अति सिला सापबस रघुपति बिप्रनारि तारी ॥
३२६--०३---सब भूपनको गरब हर्यो, हरि भञ्ज्यो सम्भु-चाप भारी ।
३२६--०३---जनकसुता समेत आवत गृह परसुराम अति मदहारी ॥
३२६--०४---तात-बचन तजि राज-काज सुर चित्रकूट मुनिबेष धर्यो ।
३२६--०४---एक नयन कीन्हों सुरपति-सुत, बधि बिराध रिषि-सोक हर्यो ॥
३२६--०५---पञ्चबटी पावन राघव करि सूपनखा कुरूप कीन्हीं ।
३२६--०५---खर-दूषन संहारि कपटमृग-गीधराज कहँ गति दीन्हीं ॥
३२६--०६---हति कबन्ध, सुग्रीव सखा करि, बेधे ताल, बालि मार्यो ।
३२६--०६---बानर-रीछ सहाय, अनुज सँग सिन्धु बाँधि जस बिस्तार्यो ॥
३२६--०७---सकुल पुत्र दल सहित दसानन मारि अखिल सुर-दुख टार्यो ।
३२६--०७---परमसाधु जिय जानि बिभीषन लङ्कापुरी तिलक सार्यो ॥
३२६--०८---सीता अरु लछिमन सँग लीन्हें औरहु जिते दास आए ।
३२६--०८---नगर निकट बिमान आए, सब नर-नारी देखन धाए ॥
३२६--०९---सिव-बिरञ्चि, सुक-नारिदादि मुनि अस्तुति करत बिमल बानी ।
३२६--०९---चौदह भुवन चराचर हरषित, आए राम राजधानी ॥
३२६--१०---मिले भरत, जननी, गुर, परिजन चाहत परम अनन्द भरे ।
३२६--१०---दुसह-बियोग-जनित दारुन दुख रामचरन देखत बिसरे ॥
३२६--११---बेद-पुरान बिचारि लगन सुभ महाराज अभिषेक कियो ।
३२६--११---तुलसिदास जिय जानि सुअवसर भगति-दान तब माँगि लियो ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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