सत्ताइसवाँ पटल - प्रत्याहार

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


जब तक अभ्यास करने से उत्तम गुणों की प्राप्ति हो तब तक प्रत्याहार की प्राप्ति के लिए सूक्ष्म वायु धारण करें । विषयों में चलायमान इन्द्रियों को विषयों से हठपूर्वक निवृत्त करना या हटा लेना यही प्रत्याहार का लक्षण है ॥२५ - २६॥

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Last Updated : July 30, 2011

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