छब्बीसवाँ पटल - योगीनीका सूक्ष्मस्नान

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


कुल ( शाक्तों ) का स्नान ( वीराचार ) है । यह महास्नान योगियों को भी अत्यन्त दुर्लभ हैं । अतः जितेन्द्रिय वीर साधक इसे कर के कुल का ध्यान करे । स्नान तीन प्रकार का कहा गया है - पहला डुबली लगाकर , दूसरा शरीर का मार्जन कर , तीसरा मन्त्र और ज्ञान पूर्वक स्नान जो सर्वोत्तम कहा गया है ॥७६ - ७७॥

हे प्राण वल्लभ ! हे प्रिय करने वाले ! अब उस स्नान का प्रकार सुनिए , जिस स्नान मात्र से स्नानकर्ता पाप के पहाड़ से मुक्त हो जाता है और अनन्त को प्राप्त कर लेता है । सभी जन्म के पापों से छुटकारा पाने के लिए , ह्रदय रुपी कमल में होने वाले विमल पुष्कर नाम वाले तीर्थ में स्नान करे अथवा बिन्दुतीर्थ में स्नान करना चाहिए ॥७८ - ७९॥

इस शरीर में कल्याणकारी तीर्थ ईडा और सुषुम्ना नाडियाँ विद्यमान हैं जिसमें ज्ञान का जल बह रहा है , ब्रह्मादि देवता भी उस जल में स्नान करते हैं , जिसने इसमें स्नान कर लिया उसे गङ्रा जल में अथवा पुष्कर में स्नान से क्या लाभ ? ॥८०॥

ईडा जो सर्वशा पवित्र स्थान से निकलने वाली गङ्गा है तथा पिङ्रला सूर्य से उत्पन्न होने वाली यमुना है , उनके बीच में ब्रह्मलोक तक जाने वाली सरस्वती है । अतः जो उसमें स्नान करता है , वह उसके पापों को खा जाती हैं ॥८० - ८१॥

मन में ही स्नान करने वाला मनुष्य मन्त्र की क्रिया के योग का जानने वाला है , जो मूलाधार कमल रुप मही में रहने वाले इस तीर्थ में प्रसन्नता पूर्वक स्नान करता है वह मुक्ति का भागी हो जाता है । देवताओं के तीर्थ को पवित्र करने वाली गङ्गा इस सर्वादि तीर्थ में महासत्त्व से निकली हुई हैं । जो पापों का क्षय करती हैं और मुक्ति प्रदान करती हैं । किं बहुना वे साक्षात् ‍ इतना पुण्य प्रदान करती हैं , जिसकी कोई तुलना नहीं है ॥८२ - ८३॥

इस सृष्टि में जहाँ तक जितने तीर्थ हैं वे सभी तीर्थ स्वाधिष्ठान के कमल में निवास करते हैं , योगीन्द्र उसी में अपना मन उस प्रकार लगाकर स्नान करते हैं जैसे गङ्रा जल में स्नान किया जाता है । देवताओं के तीर्थरुप मणिपूर हैं , जो पाँच कुण्डों वाला सरोवर है । इसे श्रीकामना तीर्थ भी कहते हैं । जो मुक्ति चाहता है वह इस तीर्थ में स्नान करता है ॥८४ - ८५॥

सूर्य मण्डल के मध्य में रहने वाला अनाहल तीर्थ है जिसमें सभी तीर्थ रहते हैं । किं बहुना यहाँ सभी विभव तथा सभी तीर्थ हैं जो साधक मुक्ति चाहता है वह इसमें स्नान करता है। विशुद्ध नामक महापद्‍म में आठ तीर्थ उत्पन्न हुए हैं , वीराचार वाला पुरुष विमुक्ति के लिए कैवल्य मुक्त देने वाले परमात्मा का ध्यान कर इसमें स्नान करता है ॥८६ - ८७॥

आज्ञाचक्र में मानस तीर्थ , बिन्दु तीर्थ , कलात्मक कालीकुण्ड नामक तीर्थों का निवास है । अतः निर्वाण चाहने वाला उनका ध्यान करते हुए स्नान करता है । योगी लोग कुल में रहने वाले इन तीर्थों में प्रसन्नता पूर्वक स्नान करते हैं , इसलिए वीराचार वाले सत्त्व से संयुक्त हैं और देवतागण समस्त सिद्धियों से युक्त हैं ॥८८ - ८९॥

सदैव ब्रह्म हत्यादि से होने वाले अनेक प्रकार के महा पापों को सदैव करके भी इस महातीर्थ में स्नान कर मनुष्य अणिमादि से उत्पन्न होने वाली सिद्धि प्राप्त कर लेता है । वह इस तीर्थ में स्नान मात्र से पाप रहित हो जाता है और वायु ग्रहण करने में समर्थ हो जाता है । जिन्हें इन तीर्थों क दर्शन भी हा गया है , वे सर्वसमर्थ योगी बन जाते हैं यह निश्चय है ॥९० - ९१॥

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Last Updated : July 30, 2011

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