चतुर्दश पटल - आत्रेयीशक्तिविवेचन

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


वायवी कला का विवेचन --- वह ( आत्रेयी शक्ति ) मन्द वायु से प्रेम करने वाली हैं । जिसके कल्पना के लिए वही सारे संसार के जीवों की रक्षा करती हैं , सारा संसार उसी के आधीन है । यदि कोई साधक उस वायावी कला को जान ले तो उसकी अकाल मृत्यु कभी नहीं हो सकती । क्योंकि समस्त तन्त्रों का तात्पर्य यही है कि वायवी कला सर्वश्रेष्ठ शक्ति है ॥६५ - ६६॥

जो अपने सूक्ष्म आगमन रुप से मनुष्यों के भजन के लिए तथा आठो ऐश्वर्य परा विजय पाने के लिए सूक्ष्म सिद्धि प्रदान करती है । यह बात ब्रह्मदेव ने पूर्व काल में अपने शिष्यों के लिए और अपने पुत्रों के लिए कही थी , जिन्होंने लोभ , मोह , काम , क्रोध , मद तथा मात्सर्य का परित्यागा कर दिया था ॥६७ - ६८॥

हे प्रभो ! उस वायवी कला यही सर्वोत्कृष्ट क्रम है । यहा भूतल में प्रेम की वृद्धि करने वाली है । उक्त लक्षणलक्षिण वायवी कला आज्ञाचक्र में निवास करती है । वह चन्द्र सूर्य तथा अग्नि स्वरुपा है , धर्म और अधर्म दोनों से रहित है । यहा कला मनोरुपा एवं बुद्धिरुपा है तथा समस्त शरीर में व्याप्ता हो कर स्थित रहती है ॥६९ - ७०॥

आज्ञाचक्रा में दो दल , हैं , जिसमें चौदह अक्षर हैं , यह हम पहले कह आये हैं । वेद दल में ( व श ष स ) ये चारा वर्ण हैं जो अत्यन्त तेजोमय है । वे सभी अग्निस्वरुप हैं और ऋग्वेदादि से युक्त हैं । हे प्रभो ! अबा उन वेदों का माहात्म्य एक एक के क्रम से श्रवण कीजिए ॥७१ - ७२॥

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Last Updated : July 29, 2011

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