तृतीय पटल - अकडमचक्र

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


दीक्षा लेने से प्रथम दिन साधक को प्रयत्नपूर्वक विचार करना चाहिए । हे पर्वतपूजित ! ( कैलाशवासिन् ‍ ) फिर उस प्रकार के प्रयत्न से साधक को दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए । बुद्धिमान् ‍ को चाहिए कि दीक्षा वाले मन्त्र को प्रथम अकडम चक्र पर परीक्षित कर लेवे । उसा अकडम चक्र को बनाने की विधि इस प्रकार है -

पूर्व से पश्चिम तथा दक्षिण से उत्तर दो दो रेखा बनाकर चतुर्भुज निर्माण कर उसमें भी मध्य में पूर्व से पश्चिच तथा उत्तर से दक्षिण दो दो रेखा खींचे । फिर उस चतुर्भुज के प्रत्येक चारों कोनों से घुमाकर महावृत्त रूप ’ अकडम ’ चक्र की रचना करे और उनमें वर्णों का लेखन करे ॥१७ - १९॥

क्लीव वर्णों ( ऋ ऋ लृ लृ ) को छोड़कर अकार से ले कर क्षकारान्त वर्णों को उन कोष्ठकों में बारी बारी से लिखना चाहिए । इसी प्रकार , हे वीरवल्लभ ! उन कोष्ठों में मेष मीन आदि राशियों को वामावर्त से ( वृष ? ) मीन पर्यन्त लिखना चाहिए । फिर तन्त्र की रीति से साधक के आदि अक्षर वाले नाम से कोष्ठक में आये मन्त्र के आदि वर्णों से गणना करनी चाहिए ॥२१॥

इसी प्रकार तन्त्रशास्त्र का विद्वान ‍ क्रमाशः ( नाम के आदि अक्षर से ) मेषादि से मीनान्त राशियों में भी पुनः गणना करे । ऐसा करने पर सिद्ध , साध्य , सुसिद्ध तथा शत्रु रुप फल जानना चाहिए । इसी प्रकार पुनः सिद्धादि फलों को १२ कोष्ठ पर्यन्त परीक्षित करना चाहिए । निष्कर्ष यह है कि - ( १ ) नाम का आद्य अक्षर यदि १ , ५ . ९ कोष्ठक में मिले तो साध्य और मन्त्र के आदि अक्षरों से मिले तो सिद्ध , ( २ ) २ , ६ , १० कोष्ठक में मिले तो साध्य ( ३ ) ३ , ७ , ११ , में मिले तो सुसिद्ध तथा ( ४ ) ४ , ८ , १२ , वें कोष्ठ में मिले तो शत्रु योग समझना चाहिए । इसी प्रकार नामाक्षर की राशि मन्त्राक्षर के मेषादि राशियों से लेकर मीनान्त गणना करे । उसका फल भी उपर्युक्त रीति से समझ लेना चाहिए ॥२२ - २३॥

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Last Updated : July 28, 2011

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