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पतंजलि n. संस्कृत भाषा का सुविख्यात व्याकरणकार एवं पाणिनि के ‘अष्टाध्यायी; नमक व्याकरणग्रंथ का प्रामाणिक व्याख्याकार । संस्कृत व्याकरणशास्त्र के बृहद् नियमों एवं भाषाशास्त्र के गंभीर विचारों के निर्माता के नाते पाणिनि, व्याडि, कात्यायन, एवं पतंजलि इन चार आचार्यो के नाम आदर से स्मरण किये जाते है । उनमें से पाणिनी का काल ५०० खि पू. होकर शेष वैय्याकरण मोर्य युग के (४००खि. पू.-२०० ई. पू.) माने जाते है । वैदिकयुगीन साहित्यिक भाषा (‘छंदस् या ‘नैगम’) एवं प्रचलित लोकभाषा (‘लौकिक’) में पर्याप्त अंत था । ‘देववाक्’ या ‘देववाणी’ नाम से प्रचलित साहित्यिक संस्कृत भाषा को लौकिक श्रेणी में लाने का युगप्रवर्तक कार्य आचार्य पाणिनि ने किया । पाणिनीय व्याकरण के अद्वितीय व्याख्याता के नाते, पाणिनि की महान् ख्याति को आगे बढाने का दुष्कर कार्य पतंजलि ने किया । व्याकरणशास्त्र के विषयक नये उपलब्धियों के स्त्रष्टा, एवं नये उपादनों का जन्मदाता पतंजलि एक ऐसा मेधावी वैय्याकरण था कि, जिसके कारण ब्रह्माजी से ले कर पाणिनि तक की संस्कृत व्याकरणपरंपरा अनेक विचार वीथियों में फैल कर, चरमोन्नत अवस्था में पहुँची । पतंजलि पाणिनीय व्याकरण का केवल व्याख्याता ही न हो कर, स्वयं एक महान् मनस्वी विचारक भी था । इसकी ऊँची सूझ एवं मौलिक विचार इसके ‘व्याकरण महाभाष्य’ में अनेक स्थानों पर दिखाई देते हैं । इसीलिये इस को स्वतंत्र विचारक की कोटि में खडा करते हैं । अपने निर्भीक विचार एवं असामान्य प्रतिभा के कारण, इसने पाणिनीय व्याकरण की महत्ता बढायी, एवं ‘वैयाकरण पाणिनि; को ‘भगवान् पाणिनि; के उँची स्तर तक पहुँचा दिया ।
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पतंजलि n. प्राचीन ग्रंथों एवं कोशों में, पतंजलि के निम्नलिखित नामांतर मिलते हैः---गोनर्दीय, गोणिकापुत्र नागनाथ, अहिपति, फणिभृत, फणिपति, चूर्णिकाकार, पदकार, शेष, वासुकि, भोगींद्र [विश्वप्रकाशकोश १.१६, १९] ;[महाभाष्यप्रदीप. ४.२.९२] ;[अभिधान. पृ.१०१] । इन नामों मे से, ‘गोनर्दीय’ संभवतः इसका देशनाम था, एवं ‘गोणिकपुत्र’ इसका मातृकनाम था । उतर प्रदेश के गोंडा जिला को प्राचीन गोनर्द देश कहा गया है । कल्हणकृत ‘राजतरंगिणी’ में, गोनर्द नाम से काश्मीर के तीन राजाओं का निर्देश किया गया है । ‘गोनर्दीय’ उपाधि के कारण, पतंजलि काश्मीर या उत्तर प्रदेश का रहनेवाला प्रतीत होता है । ‘चूर्णिकाकार ’ एवं ‘पदकार’ इन नामों का निर्वचन नहीं मिलता । पतंजलि के बाकी सारी नामांतर कि वह भगवान शेष का अवतार था, इसी एक कल्पना पर आधारित है । शेष, वासुकि, फणिपति आदि पतंजलि के बाकी सारे नाम इसी एक कल्पना को दोहराते है ।
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पतंजलि n. पतंजलि की ‘व्याकरण महाभाष्य’; में पुण्यमित्र एवं चंद्रगुप्त राजाओं की सभाओं का निर्देश प्राप्त है [महा.१.१.६८] । मिनँन्डर नामक यवनों के द्वारा साकेत नगर घेरे जाने का निर्देश भी, ‘अरुद्यवनः साकेतगों’ इस रुप में, किया गया है । पुष्यमित्र राजा का यज्ञ संप्रति चालू है (‘पुष्यमित्रं याजयामः’) इस वर्तमानकालीन क्रियारुप के निर्देश से पतंजलि उस राजा का समकालीन प्रमाणित होता है । इसी के कारण, डॉं रा.गो. भांडारकर, डॉं. वासुदेवशरण अग्रवाल, डॉं. प्रभातचंद्र चक्रवर्ति प्रभृति विद्वानों का अभिमत है कि, पतंजलि का काल १५० खि. पू. के लगभग था ।
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पतंजलि n. पतंजलि का जीवनचरित्र कई पुराणों में प्राप्त है । भविष्य के अनुसार, यह बुद्धिमान् ब्राह्मण एवं उपाध्याय था । यह सारे शास्त्रों में पारंगत था, फिर भी इसे कात्यायन ने काशी में पराजित किया । प्रथम यह विष्णुभक्त था । किंतु बाद में इसने देवी की उपासना की, जिसके फलस्वरुप, आगे चल कर, इसने कात्यायन को वादचर्चा में पराजित किया । इसने ‘कृष्णमंत्र’ का काफी प्रचार किया । इसने ‘व्याकरणभाष्य’ नामक ग्रंथ की रचना की । आखिर ‘विष्णुमाया’ के योग से, यह चिरंजीव बन गया [भवि. प्रति.२.३५] ।
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