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वालिन्

   
Script: Devanagari

वालिन्     

वालिन् n.  किष्किंधा देश का सुविख्यात वानरराजा, जो महेंद्र एवं ऋक्षकन्या विरजा का पुत्र था [ब्रह्मांड. ३. ७.२१४-२४८] ;[भा. ९.१०.१२] । वाल्मीकि रामायण के प्रक्षिप्त काण्ड में इसे ऋक्षरजस् नामक वानर का पुत्र कहा गया है [वा. रा. उ. प्रक्षिप्त. ६] । इसके छोटे भाई का नाम सुग्रीव था, जिसे इसने यौवराज्याभिषेक किया था [वा. रा. उ. ३४] । इसकी पत्नी का नाम तारा था, जो इसके तार नामक अमात्य की कन्या थी [वा. रा. उ. ३४] ;[म. व. २६४.१६] । वाल्मीकि रामायण में अन्यत्र तारा को सुषेण वानर की कन्या कहा गया है [वा. रा. कि. २२] ;[ब्रह्मांड. ३.७.२१८] । वालिन् स्वयं अत्यंत पराक्रमी वानरराज था, जो राम दशरथि के द्वारा किये गये इसके वध के कारण रामकथा में अमर हुआ है ।
वालिन् n.  वाल्मीकि रामायण के दक्षिणात्य पाठ में, वालिन् एवं सुग्रीव को ब्रह्मा के अश्रुबिंदुओं से उत्पन्न हुए ऋक्षरजस् वानर के पुत्र कहा गया है । एक बार ब्रह्मा के तपस्या में मग्न हुआ ऋक्षरजस् पानी में कूद पड़ा। पानी के बाहर निकलते ही एसे एक लावण्यवती नारी का रूप प्राप्त हुआ, जिसे देख कर इंद्र एवं सूर्य कामासक्त हुए। उनका वीर्य क्रमशः स्त्रीरूपधारिणी ऋक्षरजा के बाल एवं ग्रीवा पर पड़ गया। इस प्रकार इंद्र एवं सूर्य के अंश से क्रमशः वालिन् एवं सुग्रीव का जन्म हुआ [वा. रा. कि. १६.२७-३९] । जन्म होने के पश्र्चात्, इंद्र ने अपने पुत्र वालिन् को एक अक्षय्य सुवर्णमाला दे दी, एवं सूर्य ने अपने पुत्र सुग्रीव को हनुमत् नामक वानर सेवा में दे दिया। पश्र्चात् ऋक्षरजस् को ब्रह्मा की कृपा से पुनः पुरुषदेह प्राप्त हुआ, एवं वह किषिंधा का राजा बन गया [वा. रा. बा. दाक्षिणात्य. १७.१०] ; ऋक्षरजस् देखिये ।
वालिन् n.  वालिन् ने पराक्रम की अनेकानेक कथाएँ वाल्मीकि रामायण एवं पुराणों में प्राप्त है । एक बार लंकाधिपति रावण अपना बलपौरुष का प्रदर्शन करने इससे युद्ध करने आया, किंतु इसने उसे पुष्करक्षेत्र में परास्त किया था [वा. रा. उ. ३४] ; रावण देखिये । गोलभ नामक गंधर्व के साथ भी इसने लगातार पंद्रह वर्षों तक युद्ध किया, एवं अंत में उसका वध किया था [वा. रा. कि. २२.२९] । इसके बाणों में इतना सामर्थ्य था कि, एक ही बाण से यह सात साल वृक्षों को पर्णरहीत करता था [वा. रा. कि. ११.६७] । पंचमेढू नामक राक्षस से भी इसने युद्ध किया था, जिस समय उस राक्षस ने इसे निगल लिया था । तदुपरांत शिवपार्षद विरभद्र ने उस राक्षस को खड़ा चीर कर, इसकी मुक्तता की थी [पद्म. पा. १०७]
वालिन् n.  दुंदुभि नामक महाबलाढ्य राक्षस का भी वालि ने वध किया था । उस राक्षस के द्वारा समुद्र एवं हिमालय को युद्ध के लिए ललकारने पर, उन्होंने उसे वालि से युद्ध करने के लिए कहा। अतः दुंदुभि ने महिष का रूप धारण कर इसे युद्ध के लिए ललकारा। इसने अपने पिता इंद्र के द्वारा प्राप्त सुवर्णमाला पहन कर दुंदुभि को द्वंद्वयुद्ध में मार ड़ाला, एवं उसकी लाश एक योजना दूरी पर फेंक दी। उस समय दुंदुभि के कुछ रक्तकण ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित मातंग ऋषि के आश्रम में गिर पड़े। इससे क्रुद्ध हो कर मातंग ऋषि ने वालि को शाप दिया, ‘मेरे आश्रम के निकट एक योजना की कक्षा में तुम आओंगे, तो तुम मृत्यु की शिकार बनोगे’ [वा. रा. कि. ११] । यही कारण है कि, ऋष्यमूक पर्वत वालि के लिए अगम्य था ।
वालिन् n.  दुंदुभि केवध के पश्र्चात्, उसका पुत्र मायाविन् ने वालि से युद्ध शुरु किया, जिसके ही कारण आगे चल कर, यह एवं इसका भाई सुग्रीव में प्राणांतिक शत्रुता उत्पन्न हुई। एक बार वालि एवं सुग्रीव मायाविन् का वध करने निकल पड़े। इन्हें आते देख कर मायाविन् ने एक बिल में प्रवेश किया। तदुपरांत इसने सुग्रीव को बिल के द्वार पर खड़ा किया, एवं यह स्वयं मायाविन् का पीछा करता बिल के अंदर चला गया। इसी अवस्था में एक वर्ष बीत जाने पर, एक दिन सुग्रीव ने बिल में से फेन के साथ रक्त निकलते देखा, एवं उसी समय असुर का गर्जन भी सुना। इन दुश्र्चिन्हों से सुग्रीव ने समझ लिया कि, वालि मारा गया है । अतः उसने पत्थर से बिल का द्वार बंद किया, एवं वह अपने भाई की उदकक्रिया कर के किष्किंधा नगरी लौटा। वालिवध की वार्ता सुन कर, मंत्रियों ने सुग्रीव की इच्छा के विरुद्ध उसका राज्याभिषेक किया। अपनी पत्नी रुमा एवं वालि की पत्नी तारा को साथ ले कर, सुग्रीव राज्य करने लगा। तदुपरांत मायाविन् का वध कर वालि किष्किंधा लौटा। वहाँ सुग्रीव को राजसिंहासन पर देख कर यह अत्यधिक क्रुद्ध हुआ, एवं इसने उसकी अत्यंत कटु आलोचना की। सुग्रीव ने इसे समझाने का काफ़ी प्रयत्न किया, किंतु यह यही समझ बैठा कि, सुग्रीव ने यह सारा षडयंत्र राज्यलिप्सा के कारण ही किया है । अतएव इसने उसे भगा दिया, एवं उसकी रुमा नामक पत्नी का भी हरण किया। सुग्रीव सारी पृथ्वी पर भटक कर, अंत में वालि के लिए अगम्य ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगा [वा. रा. कि. ९-१०]
वालिन् n.  ऋष्यमूक पर्वत पर राम एवं सुग्रीव की मित्रता प्रस्थापित होने पर, राम ने अपना बलपौरुष दिखाने के लिए अपने एक ही बाण से वहाँ स्थित सात ताड़ तरुओं का भेदन किया। आनंद रामायण में, इन सात ताड़ वृक्षों के संदर्भ में एक कथा प्राप्त है । एक बार ताड़ के सात फल वालि ने ऋष्यमूक पर्वत की गुफा में रक्खे थे । पश्र्चात् एक सर्प उस गुफा में आया, एवं सहजवश उन ताड़फलों पर बैठ गया। वालि ने क्रुद्ध हो कर सर्प से शाप दिया, ‘इन फलों से तुम्हारे शरीर पर ताड़ के सात वृक्ष उगेंगे’। तब साँप ने भी वालि से शाप दिया, ‘इन सातों ताड़ के वृक्ष जो अपने बाण से तोड़ेगा, उसीके द्वारा तुम्हारी मृत्यु होगी’। राम के द्वारा इन वृक्षों का भेदन होने के कारण, उसीके हाथों वालिवध हुआ [आ. रा. ८]
वालिन् n.  राम के कहने पर सुग्रीव ने वालि को द्वंदयुद्ध के लिए ललकारा [वा. रा. कि. १४] । पहले दिन हुए वालि एवं सुग्रीव के द्वंदयुद्ध के समय, ये दोनों भाई एक सरीखे ही दिखने के कारण, राम अपने मित्र सुग्रीव को कोई सहायता न कर सका। इस कारण सुग्रीव को पराजित हो कर ऋष्यमूक पर्वत पर लौटना पड़ा। दूसरे दिन राम ने ‘अभिज्ञान’ के लिए सुग्रीव के गले में एक गजपुष्प की माला पहनायी, एवं उसे पुनः एक बार वालि से द्वंदयुद्ध करने भेज़ दिया। सुग्रीव का आह्वान सुन कर, यह अपनी पत्नी तारा का अनुरोध ठुकरा कर पुनः अपने महल से निकला। इंद्र के द्वारा दी गयी सुवर्णमाला पहन कर, यह युद्ध के लिए चल पड़ा। आनंद रामायण के अनुसार गले में सुवर्णमाला धारण करनेवाला वालि युद्ध में अजेय था, जिस कारण युद्ध के पूर्व, राम ने एक सर्प के द्वारा इसकी माला को चुरा लिया था [आ. रा. ८] । तत्पश्र्चात् हुए द्वंदयुद्ध के समय, राम ने वृक्ष के पीछे से बाण छोड़ कर इसका वध किया [वा. रा. कि. १३६.१६]
वालिन् n.  मृत्यु के पूर्व, इसने वृक्ष के पीछे से बाण छोड़ कर अपना वध करनेवाले राम को अक्षत्रिय वर्तन बताते समय, राम की अत्यंत कटु आलोचना की --अयुक्तं यदधर्मेणं त्वयाऽहं निहतो रणे। [वा. रा. कि. १७.५२] । इसने राम से कहा, ‘मैंने तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं किया था । फिर भी जब मैं सुग्रीव के साथ युद्ध करने में व्यस्त था, उस समय तुमने वृक्ष के पीछे से बाण छोड़ कर मुझे आहत किया। तुम्हारा यह वर्तन संपूर्णतः अक्षत्रिय है । तुम क्षत्रिय नहीं, बल्कि खुनी हो। तुम्हें मुझसे युद्ध ही करना था, तो क्षत्रिय की भाँति चुनौति दे कर युद्धभूमि में चले आते। मैं तुम्हारा आवश्य ही पराजय कर लेता’। वालि ने आगे कहा, ‘ये सब पापकर्म तुमने सीता की मुक्ति के लिए ही किये। अगर यह बात तुम मुझसे कहते, तो एक ही दिन में मै सीता की मुक्ति कर देता। दशमुखी रावण का वध कर, उसकी लाश की गले में रस्सी बाँध कर एक ही दिन में मै तुम्हारे चरणों में रख देता। मैं मृत्यु से नहीं डरता हूँ। किन्तु तुम जैसे स्वयं को क्षत्रिय कहलानेवाले एक पापी पुरुष ने विश्र्वासघात से मेरा वध किया है, यह शल्य मैं कभी भी भूल नहीं सकता’।
वालिन् n.  वालि के इस आक्षेप का राम ठीक प्रकार से जवाब न दे सका (राम दशरथि देखिये) । मृत्यु के पूर्व वालि ने अपनी पत्नी तारा एवं पुत्र अंगद को सुग्रीव के हाथों सौंप दिया।
वालिन् n.  राम का शत्रु होने के कारण, उत्तरकालीन बहुत सारे रामायण ग्रन्थों में एक क्रूरकम्रन् राजा के रूप में वालि का चरित्रचित्रण किया गया है । राम के द्वारा किये गये इसके वध का समर्थन देने का प्रयत्न भी अनेक प्रकार से किया गया है । किन्तु ये सारे वर्णन अयोग्य प्रतीत होते है । वालि स्वयं एक अत्यंत पराक्रमी एवं धर्मनिष्ठ राजा था । इसने चार ही वेदों का अध्ययन किया था, एवं अनेकानेक यज्ञ किये थे । इसकी धर्मपरायणता के कारण स्वयं नारद ने भी इसकी स्तुति की थी [ब्रह्मांड. ३.७.२१४-२४८] । मृत्यु के पूर्व राम के साथ इसने किया हुआ संवाद भी इसकी शूरता, तार्किकता एवं धर्मनिष्ठता पर काफ़ी प्रकाश ड़ालता है ।
वालिन् II. n.  वरुणलोक का एक असुर [म. स. ९.९४]

वालिन्     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
वालिन्  m. m. (also written बालिन्) ‘haired or tailed’, N. of a दैत्य, [MBh.]
of a monkey (son of इन्द्र and elder brother of the monkey-king सु-ग्रीव, during whose absence from किष्किन्धवालिन् usurped the throne, but when सु-ग्रीव returned he escaped to ऋष्यमूक), [MBh.] ; [R.] &c.

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