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ऋणं कृत्वा धृतं पिब (पिबेत्)

   
Script: Devanagari

ऋणं कृत्वा धृतं पिब (पिबेत्)

   यावज्जीवं सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा धृतं पिबेत्। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।। हा श्र्लोक व यांतील विचारसरणी चार्वाक या प्रसिद्ध नास्तिक पंडिताची समजतात. तो म्हणतो, जीवमान आहे तोपर्यंत कर्ज काढूनहि चैन करावी. कारण मरणानंतर सर्व संपते.

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