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इच्छीना संसारी तरण, न जाय गुरूशीं शरण

   
Script: Devanagari

इच्छीना संसारी तरण, न जाय गुरूशीं शरण

   ज्याला संसारमुक्त होणें नाही, ज्याला त्यांत खितपतच पडावयाचे आहे त्याला गुरूचे, उपदेशाचे काहीच कारण नाही. -सवि १५३८.

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