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दुर्योधन n. (सो कुरु.) धृतराष्ट्र तथा गांधारी के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र एवं ‘भारतीय-युद्ध’ का सूत्रचालक । व्यास के महाभारत में एक ‘खलनायक’ के रुप में दुर्योधन की व्यक्तिरेखा चित्रांकित की गयी है । स्वजनों की हर एक वस्तु पर, पापी नजर डालनेवाला, लोभी, मत्सरी एवं मूढ राजा के रुप में इसका चरित्र महाभारत में दर्शाया गया है । किंतु दुर्योधन का यह चरित्रचित्रण एकांगी एवं इसके अन्य गुणों पर अन्याय करनेवाला है । यह उत्तम विद्यामंडित, रथी, सारथी, शरस्त्रास्रविद्या में निष्णात एवं उत्तम राज्यशासक था [म.उ.१६२.१९] । गदायुद्ध में भी यह अत्यंत प्रवीण था [म.आ.१३१] । यह एक सच्चा मित्र भी था । कर्ण, अश्वत्थामा, शल्य आदि अपने मित्रों के लिये इसने अपना सब कुछ न्योंछावर किया, एवं उनकी आमरण मैत्री संपादित की । एक राजा के नाते यह प्रजाहितदक्ष एवं आदर्श था, यों प्रशस्ति स्वयं युधिष्ठिर ने दी है । अतीव राज्यतृष्णा एवं पांडकों के प्रति मत्सर के कारण, आमरण इसने पांडवों का द्वेष किया । इसके यही द्वेष पर्यवसान आखिर भारतीय-युद्ध जैसे दारुण युद्ध में हुआ । भारतीय-युद्ध के प्रारंभ में कृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई, एवं गीता से स्फूर्ति पा कर अर्जुन ने उस युद्ध में विजय प्राप्त किया । इस लिये अर्जुन को ही लोग भारतीययुद्ध का नायक समझते है । किंतु महाभारत में हरके व्यक्ति से मित्रता वा शत्रुता के नाते संबंध रखनेवाला दुर्योधन यह एक ही सामर्थ्यशाली व्यक्ति है । दुर्दम महत्त्वाकांक्षा, संकुचित मनोवृत्ति, क्रूरता, एवं विनाश प्रवृत्ति इन स्वभावगुणों के कारण, दुर्योधन भारतीययुद्ध एवं महाभारत का खलनायक तथा नायक इन दो रुपोंमे एक ही साथ प्रतीत होता है ।
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दुर्योधन n. इसके जन्म के बारे में, महाभारत में दी गयी सारी आख्यायिकाएँ हेतुतः वक्रोक्तिपूर्ण, एवं इसके बारे में पाठकों क मन कलुषित कर देनेवाली है । ये कलि के अंश से उत्पन्न हुआ था । इसलिये इसके कारण सारे क्षत्रियों का नाश हुआ [म.आ.६१.८०] । जन्म होते ही दुर्योधन रोया । इसक अरुदन गधे के चिल्लाने जैसा था । इसके रोते ही गवे, गीध, सियार, कौए, आदि चिल्लाने लगे । तूफान चलने लगा, एवं दसों दिशाओं में खलबली मच गई । धृतराष्ट्र अत्यंत भयभीत हुआ । उसने भीष्म, विद्रु, अनेक ब्राह्मणों तथा आप्तों को बुला कर कहा, ‘राजपुत्र युधिष्ठिर दुर्योधन से बडा है । वह हमारे वंश का विस्तार भी करेगा । इस पर हमारा कुछ आक्षेप नही है । किंतु उसके बाद दुर्योधन राजा बनना चाहिये । हमारी इच्छानुसार वह राज बनेगा, या नहीं, एवं बाद में क्या होगा, यह बताइये’। धृतराष्ट्र ने यह कहते ही, क्रूर तथा हिंस्त्र पशु फिर से चिल्लाने लगे । चारों ओर से भयंकर अपशकुन हुएँ । उपस्थित ब्राह्मण एवं विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा, ‘इस पुत्र के जन्मकाले में, चूँ कि इतने अपशकुन हुएँ है, इससे स्पष्ट है कि, कुलक्षय करेगा । इसलिये इसका त्याग करना ही उचित है । तुम्हारे कुल का क्षेम एवं संसार का कल्याण यदि तुम चाहते हो, तो इस पुत्र का त्याग करो’ [म.आ.१०७] ।
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दुर्योधन n. दुर्योधन युधिष्ठिर से छोटा था । किंतु दुर्योधन एवं भीम का जन्म एक ही दिन हुआ था । बचपन में कौरव एवं पांडव इकठ्ठे खेलते थे । धनुर्विद्या, अस्त्रविद्या आदि की शिक्षा, इन सब भाईयों ने मिलजुल के द्रोणाचार्य से ली थी [म.आ.१२२-१२३] । गदायुद्ध की शिक्षा इसने बलराम से प्राप्त की थी [भा.१० ५७.२६] ;[विष्णु.४.१३] ।
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दुर्योधन n. पांडवों का युद्धकौशल्य एवं दिन ब दिन बढता हुआ सामर्थ्य देख कर, कौरवों, एवं विशेष कर इसके मन में; उनके प्रति मत्सर उत्पन्न हुआ । हर एक जगह पांडवों के आगे जाने की ईर्ष्या इसके मन में उत्पन्न हुई । कौरव-पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षणा के रुप में, द्रुपद को रणांगण में जीत कर लाने की आज्ञा की । पांडवों को फजीहत करने के हेतु दुर्योधन ने सर्व प्रथम द्रुपद को जीतने का प्रयत्न किया । किंतु दुर्योधन का यह प्रयत्न विफल हुआ, एवं कौरवों की दुर्दशा हुई । धनुर्विद्या एवं अस्त्रविद्यां में पांडव कौरवों से कतिपय श्रेष्ठ है, यह जान कर उनके नाश के लिये, यह नये नये षड्यंत्र रचने लगा । सारा राज्य मुझे ही प्राप्त हो, इस लोभ के कारण यह पांडवों के नाश के नये-नये मार्ग ढूँढता रहा । इसका मामा शकुनि एवं इसका मित्र कर्ण, उस कार्य में इसकी सहायता करने लगे । एक बार भीम शहर के बाहर बाग में सोया था । उस वक्त, उसे गंगा नदी में फेंक कर, एवं अर्जुन तथा युधिष्ठिर को कैद कर, राज्य हासिल करने की तरकीब इसने सोची । गंगा नदी के किनारे प्रमाणकोटि तीर्थ पर इसने जलक्रीडा समारोह का आयोजन किया । सारे पांडवों को इसने उस समारोह के लिये बुलाया । भीम अत्यंत भुक्खड है, यह जान कर, उसके तयार अन्न में कालकूट विष इसने मिलाया । एवं बडेही प्रेम से वह अन्न भीम को खिलाया । बाद में कौरव पांडव सारे मिल कर जलक्रीडा करने गये । वहॉं जलविहार से भीम थक गया, तथा गंगा किनारे आराम से सो गया । वहाँ के ठंडे वायु ने तथा विषप्रभाव ने उसे निश्चेष्ट बना दिया । यह अवसर पा कर, दुर्योधन ने उसे गंगा नदी में ढकेल दिया [म.आ.१२७] । इस तरह, भीमरुपी कंटक अपनी राह में से दूर हुआ, यह सोच कर दुर्योधन को अत्यंत आनंद हुआ । किंतु भीम पुनः वापस आया, एवं इसकी यह अधम कृति, उसने बंधुओं को बताई । इस प्रकार भीम का वध करने का दुर्योधन का षड्यंत्र विफल रहा । फिर भी, भीम के सारथी को इसने गला घोंट कर मार ही दिया [म.आ.१२८] ।
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