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३७

   { सदतीस }
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सदतीस छंद (छंदःशास्त्र)   
१ आर्या, २ गीति, ३ उपगीति ४ अक्षरपंक्ति, ५ शशिवदना, ६ मदलेखा, ७ अनुष्टुप् ‌, ८ विद्युन्माला, ९ माणवक, १० प्रमाणिका, ११ चंपकमाला, १२ मणिबंध, १३ हंसी, १४ शालिनी, १५ दोधक, १६ इंद्रवज्रा, १७ उपेंद्रवज्रा, १८ उपजाति, १९ रथोद्धता, २० स्वागता, २१ वैश्वदेवी, २२ तोटक, २३ भुजंगप्रयात, २४ द्रुतविलंवित, २५ हरिणीप्लुता, २६ वंशस्थ, २७ इंद्र्वंशा, २८ प्रभावती, २९ प्रहर्षणी, ३० वसंततिलका, ३१ मालिनी, ३२ हरिणी, ३३ शिखरिणी, ३४ पृथ्वी, ३५ मंदाक्रांता, ३६ शार्दूलविक्रीडित व ३७ स्त्रग्धरा. (पिंगलनाग)
सदतीस तत्त्वें   
छत्तीस तत्त्वांचे शरीर (छत्तीस तत्त्वें शैव सिद्धान्त पाहा) आणि १ हे त्या पलीकडील अलौकिक पुरुष - परमेश्वर
(ईशतत्त्व) मिळून सदतीस तत्त्वें होतात,
"तूं धर्माचा वोलावा। अनादिसिद्ध तूं नित्य नवा। जाणें मी सदतिसावा। पुरुष विश्वेश तूं ॥ ([ज्ञा. ११-३०९])

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