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गृत्स—मद m. m.
N. of a son of शौनक of भृगु's family (formerly a son of शुन-होत्र [Su-hotra, [VP.] ; [BhP.] ] of the family of अङ्गिरस्, but by इन्द्र's will transferred to the भृगु family; author of most of the hymns of [RV. ii] ), [RAnukr.] ; [ĀśvŚr. xii, 10, 13] ; [ĀśvGṛ. iii, 4, 2] ; [ŚāṅkhGṛ.] ; [MBh. xiii] ; [Hariv.] &c.
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गृत्समदः [gṛtsamadḥ] N. N. of a Vedic Ṛiṣi and author of several hymns in Ṛigveda.
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गृत्समद n. यह एक व्यक्ति का तथा कुल का भी नाम है । यह अंगिरस् कुल के शुनहोत्र का पुत्र हैं (सर्वानुक्रमणीं देखिये) यह बाद में भार्गव हो गया । गृत्समद शब्द की व्युत्पत्ति, ऐतरेय आरण्यक में आयी है । गृत्स का अर्थ है प्राण, तथा मद का अर्थ है अपान । इसमें प्राणापानों का समुच्चय था, इसलिये इसे गृत्समद कहते है [ऐ.आ.२.२.१] । यह तथा इसके कुल के व्यक्ति, ऋग्वेद के दूसरे मंडल के द्रष्टाएँ हैं [ऐ. ब्रा५.२.४] ;[ऐ.आ.२.२.१] ; सर्वानुक्रमणी देखिये । एक बार तपप्रभाव से इसे इंद्र का स्वरुप हुआ । इस बारे में तीन आख्यायिकाएँ प्रसिद्ध है (१) धुनि अथा चुमुरि ने इसे इंद्र समझ कर घेर लिया । ‘मैं इंद्र नहीं हूँ’ यह बताने के लिये इसने इंद्र का उत्कृष्ट वर्णन करनेवाला ‘स जनास इंद्रः’ [ऋ.२.१२] ।, अह टॆकयुक्त सूक्त कहना प्रारंभ किया। (२) इंद्रादिक देवता वैन्य के यज्ञ में गये । वहॉं गृत्समद भी था । दैत्य इंद्र का वध करने के हेतु से वहॉं आये । इंद्र गृत्समद का रुप ले कर भाग गया । असुरों ने गृत्समद को घेरा । उस समय एक सूत से इसने इंद्र का उत्कृष्ट वर्णन किया [ऋ. २. १२] (३) गृत्समद के घर में अकेले आये इंद्र को देख कर शत्रुओं ने घेरा । तब इंद्र गृत्समद का रुप ले कर भाग गया । घर के गृत्समद को उन्हों ने इंद्र समझ कर पकड लिया । तब इसने यह सूक्त कह कर इंद्र का वर्णन किया [ऋ. २.१२] । ऋग्वेद के दूसरे मंडल में गृत्समद का बार बार उल्लेख आता है [ऋ. २.४.९, १९.८ इ.] । इसे शुनहोत्र भी कहा है [ऋ. २.१८.६, ४१.१४, १७] । ऋग्वेद के दूसरे मंडल की ऋचाओं का उल्लेख गार्त्समद ऋचा के नाम से प्राप्य है [सां. आ. २२.४,२८.२] । यह भृगुकुल का गोत्रकार, प्रवर तथा मंत्रकार है । गृत्समद भार्गव शौनक ऋग्वेद का सूक्तद्रष्टा है [ऋ. २.१-३, ८-४३, ९.८६, ४६-४८] । एक बार चाक्षुष मनु का पुत्र वरिष्ठ इंद्र के सहस्त्रवार्षिक सत्र में आया । साम अशुद्ध गाने के लिये इसे दोष दे कर, रुक्ष अरण्य में क्रूर पशु बनने का शाप वरिष्ठ नें इसे दिया । परंतु शंकर की कृपा से यह मुक्त हुआ [म.अनु. १८.२०-२८] । गृत्तमद का भृगुवंश में उल्लेख है [मत्स्य. १९५.४४-४५] गृत्समद का पैतृक नाम शौनक है । यह शुनहोत्र का औरस पुत्र तथा शुनक का पुत्र था । अतः प्रथम यह आंगिरस् कुल में था, एवं बाद में भृगुकुल में गया [ऋ.ष्यनुक्रमणी२] ।
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गृत्स—मद m. m.
pl. गृत्समद's family, [RV. ii, 4, 9; 19, 8; 39, 8; 41, 18.]
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