कामाख्या सिद्धी - देवी विसर्जन

कामरूप कामाख्या में जो देवी का सिद्ध पीठ है वह इसी सृष्टीकर्ती त्रिपुरसुंदरी का है ।


गच्छ देवि महामाया कल्याणं कुरु सर्वदा ।

यथाशक्ति कृता पूजा भक्त्या कमललोचने ॥

गच्छन्तु देवताः सर्वे दत्वा में वरभीप्सितम् ।

त्वम् गच्छ परमेशानि सुख सर्वत्र गणैः सह ॥

पूजन करने वाले को चाहिए कि पूजित देवों के आसन को दाहिने हाथ से स्पर्श करे ( हिला दे ) ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के बाद अभिषेक कराए अर्थात् आचार्य और ब्राह्मण लोग यज्ञकर्ता के मस्तक पर जल के छीटे डालें और मन्त्र पढें -

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवि शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्ति वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्ति सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ॥

ॐ शान्ति ! शा न्ति !! शान्ति !!! सर्वारिष्टा सुशान्तिर्भवतु !!

इसके बाद इष्टमित्रादि सहित प्रतिमा को लेकर किसी जलाशय में विसर्जन करे । विसर्जन से पूर्व कपूर आदि से आरती करनी चाहिए ।

विसर्जन के बाद प्रार्थना

आयुर्देहि यशोदेहि भाग्यं भगवति देहि मे ।

पुत्रम् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे ॥

जो व्यक्ति इस प्रकार कामाक्षा देवी का पूजन जप विधिपूर्वक करता है, उसकी साधना अवश्य ही सफल होती है । वह सब पापों से मुक्त होकर ग्रस्त कामनाओं को प्राप्त करता है तथा अंत में आवागमन के बंधन से छूटकर निश्चत ही मुक्त हो जाता है । इसमें सन्देह नहीं है । उसके यन्त्र - मन्त्र सिद्ध होकर साधक को मनोवांछित फल देते है ।

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Last Updated : July 21, 2009

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