कामाख्या सिद्धी - हवन विधि

कामरूप कामाख्या में जो देवी का सिद्ध पीठ है वह इसी सृष्टीकर्ती त्रिपुरसुंदरी का है ।

अग्नि - स्थापन - तुष, केश, रेत, भस्मादि निषेध वस्तु से रहित चारों कोण से हस्त परिमाण वेदी बनाना चाहिए । भूमि को कुशों से शुद्ध करे । इन कुशों को ईशान दिशा में रख कर शुद्ध गोबर और जल से लीपे । श्रुवा के अग्रभाग से वेदी के बीच में दक्षिण तरफ से शुरु करके ३ रेखा खींचे जो कि पश्चिम से पूर्व की ओर हो । अनामिका और अंगूठे से खींची हुई लकीर की मिट्टी को थोड़ा सा लेकर ईशान दिशा में फेंक दे । फिर वेदी पर जल छिड़के । वेदी के पूर्व में उत्तर की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे । पुनः वेदी के दक्षिण में पूर्व की ओर अग्रभाग पर कुशा रखे । पुनः वेदी के पश्चिम में उत्तर की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे । पुनः वेदी के उत्तर में पूर्व की ओर अग्रभाग कर कुशा रखे । तब कांसे के पात्र में अग्नि मँगवाए और पूर्व मुख अग्नि निम्न मन्त्र द्वारा स्थापन करें -

मन्त्र - त्वं मुखं सर्वदेवां सप्तार्चिरभिद्यते । आगच्छ भगवन्नग्ने यज्ञेऽस्मिन्सन्निधो भव ॥ अग्निं आवाहयामि स्थापयामि इहागच्छ इह तिष्ठ ।
' ॐ पावकाग्नये नमः ' - इस मन्त्र द्वारा पज्चोपचार से पूजा करें । तब हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करें - ॐ अग्ने खाण्डिल्यगोत्रमेषध्वज ! प्राङ्मुख मम सम्मुखो भव ।

प्रथम ये सात आहुतियाँ घी की दें -

( १ ) ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम । ( २ ) ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय इदं न मम । ( ३ ) ॐ अग्नये स्वाहा । इदमग्नये इदं न मम । ( ४ ) ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय इदं न मम । ( ५ ) ॐ भूः स्वाहा । इदमग्नये इदं न मम । ( ६ ) ॐ भुवः स्वाहा । इदं वायवे इदं न मम । ( ७ ) ॐ स्वः स्वाहा । इदं सूर्याय इदं न मम ।

पूर्णाहुति - अब जिन - जिन मन्त्रों की जितनी आहुतियाँ देनी हों वह देनी चाहिए । फिर उन्हीं मन्त्रों को कहने के बाद नीचे लिखे मन्त्र से पूर्णाहूति दें -
ॐ सप्तमे अग्नेमधः स सप्ति जिह्वाः सप्त ऋषयः सप्त धाम प्रियाणि । सप्त होत्राः सप्त धात्वा यजन्ति सप्त योनीरापृणस्व धृतेन स्वाहा । अनेन होमेन श्री परमेश्वरी कामाक्ष्या देवी प्रीयतां न मम ।

दशांश हवन के बाद दशांश तर्पण ' कामाख्या तर्पयामि ' इस मन्त्र से, तर्पण संख्या का दशांश मार्जन कामाख्या मूर्ति का, यन्त्र का और मन्त्र, का ' कामाख्या ' मार्जयामि इस मन्त्र से होता है । मार्जन के प्याले में दूध गंगाजल, चन्दन में से एक अथवा तीनों सम्मिलित होना चाहिए । यह मार्जन दूब से किया जाता है और अंत में मार्जन संख्या का दशांश ब्राह्मण भोजन हो तब मन्त्र जप की अथवा पाठ की पूर्णता होती है ।

जप समर्पण - मन्त्र जप पूरा करके उसे भगवती को समर्पण करते हुए कहें -

गुह्यति गुह्य गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥

इस प्रकार देवी के बाएँ हाथ में जप समर्पण करे ।
अब श्रुवा से भस्म लेकर लगाए -

ॐ त्र्यायुषं जमदग्ने इति ललाटे ।
ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषम् इति ग्रीवायां ।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषम् इति दक्षिण बाहुमूले ।
ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषम् इति हदि ।

अब वेदी के चारों तरफ रखी हुई कुशओं को अग्नि में डाल दे । आचार्य और ब्राह्मणों को दक्षिणा दें । तब हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करें ।

प्रार्थना
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकत्यै भद्रार्य नियताः प्रणाताः स्माताम् ॥
नमस्ते पार्श्वयोः पृष्ठे नमस्ते पुरतोऽम्बिके ! ।
नमः ऊर्ध्व नमश्चाऽधः सर्वत्रैव नमोनमः ॥
जय देवि ! जगन्मातर्जय देवि परात्परे ! ।
जय श्री कामरुपस्थे ! जय सर्वोत्तमोत्तमे ॥

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Last Updated : July 16, 2009

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