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जलभरके प्यारी उठे

सगनभाऊ - जलभरके प्यारी उठे

सगनभाऊंची लावणी म्हणजे मराठी साहित्याला पडलेले लावण्यरूप स्वप्नच.


चली गेंद धरन मखमोल कमलका फुल हात पिंजरा मैनाका लिया ॥

खुप बनी महेंबुप विचतर नयनोंने गजब किया ॥ध्रु०॥

सब जर्द किया पोषाखक बडी बडी आख नाकमे नखनी जुहु

राखीसे गले मोतीलन की माल लटक रही त्रिवन हाल पर चले ॥

सुनेके कंगन हात आसल गुजराथ चला एक जाथ चौक मे डूले ॥

मारे नयन तडाखे आषक देख जमीनपर भुले ॥चाल॥

लेचलीपन घटपर बिजली पिंजरा आलख किनारेपर धरे ॥

छन छनन बाजे पैंजन पग मे लखा खबूतर झुरे ॥

चला जलभरनेकू नादर पठीया कुदकाद जलभरे ॥

किन्ने शहरका दिलदार मुशाफर यर प्यास लगी पाणी पीने आया ॥१॥

जलभरके प्यारी उठे महीताप लुटी कहे मोहना लेऊ सीरदर घडा ॥

नयनसे नयन मिला के मिछे देख मुशाफर खडा ॥

चाप क्यौं रोती गुणपरी ईषककी सुरी केक तेरे सवाल का तीर जडा ॥

सलाम लेव छबिले गबरू ठयेरके च्याबुक भीडा ॥चाल॥

किन्नेक बक्षीके पुत तुमारी ज्वानी सलाम रहो ॥

कसमरि मे नखरा उदेषुर बस्ती महाल कहो ॥

यवकहे सखी मुख सौ बात लाल तुम एक दीन मंदिर रहो ॥

मोहना की मिटी जुबान तनमकी जान सुन पंचीका जीतर भया ॥२॥

मय कहू तू सकुन पछा नरही देमे छान देखने नीकला दखन वतन ॥

हुशारहो के खडे रहो प्यार सुन केल गुल रतन ॥

तुम ज्याव कहोजी प्रभुराज गुलछना बाज निमोना शहर हमारा वतन ॥

महेल खडे है सब कंचनके आब लग किये जतन ॥चाल॥

सब छोड दिया सनसार इषके खातर क्या कहूं बयान ॥

मथुरा विंदरावन घाट व्हायके तेरे हुशेनके शरान ॥

उजन एक बर्‍हाणपुर शहर पुछेमे था एक मकान ॥

क्या कहुं कुच कत्या न जाय ॥

बदनार हा ये सुवे कलीना कबा वह था ॥३॥

चतुरसे चतुर मिला चांदसे खुला ॥

एक पर एक हो गये कीदा ॥

चला महेलमें पितम प्यारे मोहोबत का जुग बाधा ॥

मतवाल कुच दिलमे खोप बदनमे खीलाप तुमारेसे नाही जान जुदा ॥

इष्क करूंगी पोचा बंदे खाजे न वाजे खुदा ॥चाल॥

लेगये मंदीरमो रफी खवारी सेज फुलो के घटा ॥

प्यार पोर गुजर गये रयन चथनसे आषकने रंग लुटा ॥

बासा राज्ञुके ख्याल चमकते झुकते गाते मिठा ॥

भाऊ सगन गावते ख्याल बजे चौताल मिजालस रामाने खुष किया ॥४॥

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Last Updated : October 11, 2012

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