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हम न जाबैं कनक -गिरि -खोह...

भजन - हम न जाबैं कनक -गिरि -खोह...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


हम न जाबैं कनक-गिरि-खोहा ॥

जे जे गये नहीं लौटे पुनि उन्हे बहुत हम जोहा ।

तहाँ बिकट धन पूत बसत हैं को ले उनसे लोहा ॥

आदि अंत कोउ बूझत नाही कौन माल यह पोहा ।

'केशी' खोह नबेली अजहूँ कितने जन-मन मोहा ॥

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Last Updated : December 23, 2007

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