रामज्ञा प्रश्न - तृतीय सर्ग - सप्तक ६

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


बंधु बिरोध न कुसल कुल कुसगुन कोटि कुचालि ।

रावन रबि को राहु सो भयो काल बस बालि ॥१॥

भाईसे विरोध करनेपर कुलका कुशल नहीं होता । वही ( भाई विभीषणका विरोध ) रावणरूपी सूर्यके लिये राहु हो गया और उसीसे वाली कालके वश हुआ ( मारा गया ) । यह अपशकुन करोडो़ कुचक्रोंका सूचक है ॥१॥

कीन्ह बास बरषा निरखि गिरिबर सानुज राम ।

काज बिलंबित सगुन फल होइहि भल परिनाम ॥२॥

वर्षा - ऋतु देखकर छोटे भाईके साथ श्रीरामने श्रेष्ठ पर्वतपर निवास किया । इस शकुनका फल है कि कार्यकी सफलतामें देर होगी, किंन्तु परिणाम अच्छा होगा ॥२॥

सीय सोध कपि भालु सब बिदा किए कपिनाथ ।

जतन करहु आलस तजहु नाइ राम पद माथ ॥३॥

वानरराज सुग्रीवने सीताजीका पता लगानेके लिये सब वानर-भालुओंको विदा किया । श्रीरामके चरणोंमें मस्तक झुकाकर प्रयत्न करो, आलस्य त्याग दो । ( कार्य सफल होगा ) ॥३॥

हनुमान हियँ हरषि तब राम जोहारे जाइ ।

मंगल मूरति मारुतिहि सादर लीन्ह बुलाइ ॥४॥

तब चित्तमें प्रसन्न होकर ( सम्मुख ) जाकर हनुमान्‌जीने श्रीरामको प्रणाम किया । मड्गलमूर्ति प्रभुने श्रीहनुमान्‌जीको आदरपूर्वक ( पास ) बुला लिया ॥४॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

डाँटे बानर भालु सब अवधि गये बिन काज ।

जो आइहि सो काल बस कोपि कहा कपिराज ॥५॥

कपिराज सुग्रीवने क्रोध करके सब वानर भालुओंको डाँटते हुए कहा समय बीत जानेपर कार्य किये बिना जो आयेगा वह कालका शिकार होगा ( मारा जायगा ) ॥५॥

( प्रश्‍न फल अनिष्ट है । )

जान सिरोमनि जानि जियँ कपि बल बुद्धि निधानु ।

दीन्हि मुद्रिका मुदित प्रभु, पाइ मुदित हनुमानु ॥६॥

प्रभुने हृदयमें हनुमानजीको ज्ञानियोंमें शिरोमणि तथा बल-बुद्धिका निधान ( खजाना ) जानकर प्रसन्न होकर अपनी अँगूठी दी, उसे पाकर हनुमानजी प्रसन्न हुए ॥६॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

तुलसी करतल सिद्धि सब, सगुन सुमंगल साज ।

करि प्रनाम रामहि चलहु. साहस सिद्ध सुकाज ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामको प्रणाम करके चलो ( प्रस्थान करो ) । यह शकुन सुमंगल देनेवाला है, सब सिद्धियाँ ( सफलताएँ ) हाथमें ( प्राप्त ही ) समझो साहस करनेसे सब उत्तम कार्य सफल होंगे ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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