स्थान तथा काल-मान

इस सृष्टि में उत्पन्न किसी वस्तु को, मनुष्य प्राणी भी, उत्तम स्थिती में लाने का वा करने का अर्थ ’संस्कार’ है।


चौल, उपनयन, वेदारम्भ, समावर्तन, विवाह तथा सीमन्तोन्नयन संस्कारो की व्यवस्था प्रायः घर के बाहर मंडप में करे । इसका मुख्य काल उत्तरायण में शुक्ल पक्ष समझना चाहिए । अर्थात मकर सक्राति से आगे कर्क संक्रान्ति तक छह (६) महीने उत्तरायण काल होता है । इस समय सूर्य मकर वृत्त से उत्तर की ओर जाता है । इन छह महीनों में से किसी भी एक महीने की प्रतिपदा से पौर्णिमा तक किसी भी शुभ नक्षत्र युक्त दिन में ये संस्कार करे । उत्तरा, हस्त, चित्रा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, स्वाती, मृगाशीर्ष और रोहिणी ये शुभ नक्षत्र समझने चाहिए । जातकर्म संस्कार प्रसूत समय पर अवलम्बित है, अतः उसे छोड़कर शेष सभी विवाहादि शुभ संस्कारों का प्रारम्भ निश्चित दिन प्रातःकाल दोपहर के पूर्व करे ।

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Last Updated : May 24, 2018

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