भजन - गरब न कीजै बावरे , हरि गर...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


गरब न कीजै बावरे, हरि गरब प्रहारी ।

गरबहितें रावन गया, पाया दुख भारी ॥१॥

जरन खुदी रघुनाथके, मन नाहिं सुहाती ।

जाके जिय अभिमान है, ताकि तोरत छाती ॥२॥

एक दया और दीनता, ले रहिये भाई ।

चरन गहौ जाय साधके रीझै रघुराई ॥३॥

यही बड़ा उपदेस है, पर द्रोह न करिये ।

कह मलूक हरि सुमिरिके, भौसागर तरिये ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 20, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP