भजन - हरि समान दाता कोउ नाहीं ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


हरि समान दाता कोउ नाहीं । सदा बिराजैं संतनमाहीं ॥१॥

नाम बिसंभर बिस्व जिआवैं । साँझ बिहान रिजिक पहुँचावैं ॥२॥

देइ अनेकन मुखपर ऐने । औगुन करै सोगुन करि मानैं ॥३॥

काहू भाँति अजार न देई । जाही को अपना कर लेई ॥४॥

घरी घरी देता दीदार । जन अपनेका खिजमतगार ॥५॥

तीन लोक जाके औसाफ । जनका गुनह करै सब माफ ॥६॥

गरुवा ठाकुर है रघुराई । कहैं मूलक क्या करूँ बड़ाई ॥७॥

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Last Updated : December 20, 2007

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