कृष्णपक्ष की एकादशी

बैसाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरुथिनी एकादशी कहते है ।


बैसाख : कृष्ण पक्ष

अर्जुन बोले - "हे भगवन् ! बैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है और उसने कौन से फल की प्राप्‍ति होती है, सो कृपापूर्वक विस्तार से कहिए ।

श्रीकृष्ण भगवान् बोले - "हे कुन्तीनन्दन ! बैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम बरुथिनी है । यह सौभाग्य प्रदान करने वाली है । इसका व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं । यदि इस व्रत को दुःखी सधवा स्त्री करती है तो उसे सौभाग्य मिलता है । बरुथिनी के प्रभाव से ही राजा मान्धाता को स्वर्ग प्राप्‍त हुआ था । इसी प्रकार धुन्धुमार आदि भी स्वर्ग को गये थे । बरुथिनी एकादशी के व्रत का फल दस सहस्त्र वर्ष तपस्या करने के फल के बराबर है । कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय जो फल एक बार स्वर्ण दान करने से मिलता है, वही फल बरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है । इस व्रत से मनुष्य इस लोक और परलोक दोनों में सुख पाते हैं व अन्त में स्वर्ग हो प्राप्‍त करते हैं ।"

"हे राजन् ! इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को इस लोक में सुख और परलोक में मुक्‍ति मिलती है । शास्त्रों में कहा है कि घोड़े के दान से हाथी दान उत्तम है और हाथी के दान से भूमि का दान उत्तम है, उससे उत्तम तिलों का दान है । तिल से उत्तम है सोने का दान और सोने के दान से अन्नदान उत्तम है । संसार में अन्नदान के बराबर कोई भी दान नहीं है । अन्नदान से पितृ, देवता, मनुष्य आदि सब तृप्‍त हो जाते हैं ।

शास्त्रों में कन्यादान अन्नदान के बराबर माना जाता है । बरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्न तथा कन्यादान दोनों उत्तम दानो का फल मिलता है, जो मनुष्य लोभ के वश में होकर कन्या का धन ले लेते हैं या आलस्य और कामचोरी के कारण कन्या के धन का भक्षण करते हैं, वे प्रलय के अन्त तक नरक में पड़े रहते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म भोगना पड़ता है ।

जो मनुष्य प्रेम से एवं यज्ञ सहित कन्यादान करते हैं उनके पुण्य को चित्रगुप्‍त भी लिखने में असमर्थ हो जाते हैं । जो मनुष्य इस बरुथिनी एकादशी का व्रत करते हैं, उनको कन्यादान का फल मिलता है ।

बरुथिनी एकादशी का व्रत करने वाले को दशमी के दिन से निम्नलिखित वस्तुओं को त्याग देना चाहिए - १. कांसे के बर्तन में भोजन करना, २. मांस, ३. मसूर की दाल, ४. चना, ५. कोदों, ६.शाक, ७.मधु (शहद), ८. दूसरे बार भोजन करना । व्रती को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । रात्रिशयन न करके सारा समय शास्त्र चिंतन और भजन-कीर्तन आदि में लगाना चाहिए । दूसरों की निंदा तथा दुष्‍ट और पापी लोगों की संगत भी नहीं करनी चाहिए । क्रोध करना या असत्य बोलना भी वर्जित है । तेल तथा अन्न भक्षण भी वर्जित माना गया है ।

हे राजन् ! जो मनुष्य एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उनको स्वर्ग लोक की प्राप्‍ति होती है । अतः मनुष्य को पापों से डरना चाहिए । इस व्रत के माहात्म्य को पढ़ने से एक सहस्त्र गौदान का फल प्राप्‍त होता है । इसका फल गंगा स्नान करने के फल से भी अधिक है ।

कथासार

संयम सौभाग्य का आधार है । हर प्रकार संयम रखने से प्राणी के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है । यदि व्यक्‍ति में संयम नहीं है तो उसके द्वारा किये गये तप, त्याग व भक्‍ति-पूजा आदि सब प्रभावहीन हो जाते हैं ।

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Last Updated : December 15, 2007

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