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आप आपकू बुझ नही । तनमनकू ...

कबीर के दोहे - आप आपकू बुझ नही । तनमनकू ...

कबीर के दोहे

हिंदी साहित्य में कबीर का व्यक्तित्व अनुपम है।
Kabir mostly known as "Weaver saint of Varanasi".


आप आपकू बुझ नही । तनमनकू खोया नही ।

मन मले सो धोया नही । स्नान किया सो क्या हुआ ॥१॥

करणी करे बदकामी । नजर रखे हरामी ।

बदफैल निकामी । संध्या किया सो क्या हुआ ॥२॥

गोवा किया जंजालका । जो कोई जर जारका ।

आया तीर्थ द्वारका । छापा लिया सो क्या हुआ ॥३॥

कुता हुवा मालका । कठीन कठोरा दिलका ।

अभय चाड भय लोका । काशी गया सो क्या हुवा ॥४॥

गुरुकू शरन नहीं गया । मा बापसे जुदा रह्या ।

औरत लेके न्यारा रह्या । गया गया सो क्या हुवा ॥५॥

जिनके तो सुबुद्धि नहीं । अंतकालकी शुद्धि नहीं ।

जबलग गुरुमुख देखा नहीं । जोगी हुवा सो क्या हुआ ॥६॥

लालुचकी बरी बुट्टी नही । हृदयीं दया पोटीं नहीं ।

भेदभ्रांती तुटी नहीं । पंडत हुवा सो क्या हुवा ॥७॥

दया धरम जाने नहीं । सत्करम समजे नहीं ।

आप आपकूं बुज नहीं । संन्यास लिया सो क्या हुआ ॥८॥

अहंकार बुडा नहीं । शांतीमों मन गढा नहीं ।

ब्रह्मरूप मन जडा नहीं । गीता पढे सो क्या हुआ ॥९॥

जीस पितरकू सुख नही । जननीकू आस नही ।

जीस चांडालकु दया नहीं । तरपन किया सो क्या हुवा ॥१०॥

संसार किया जंजाल है । बदफैलका बजार है ।

कामीन गलेका हार है । कीर्तन कियासो क्या हुआ ॥११॥

दिलमें तो खुप रखी । हृदय करे जिकरकी ।

गठडी बांधे फिकीरकी । फकीर हुआ सो क्या हुआ ॥१२॥

मांगीन त्यागी नही । तीर्या जोत जागी नहीं ।

उन्मनी समाधी लगी नही । साधु हुवासो क्या हुवा ॥१३॥

इस बाबत कबित कहे । जिस रामनामका सवास है ।

आसपास सब राम भरा है । फिर दो हुआ सो क्या हुआ ॥१४॥

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Last Updated : January 07, 2008

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