हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|प्रकृतिपुरुष का| तत्त्वनिरूपणनाम प्रकृतिपुरुष का समास पहला शिवशक्तिनिरूपणनाम श्रवणनिरूपणनाम अनुमाननिरसननाम अजपानिरूपणनाम देहात्मनिरूपणनाम जगज्जीवननिरूपणनाम तत्त्वनिरूपणनाम समास नववां- तनुचतुष्टयनाम टोणपसिद्धलक्षणनाम समास आठवां - तत्त्वनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास आठवां - तत्त्वनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ नाभि से जो उन्मेषवृत्ति । परा जानिये श्रोताओं उसे ही । ध्वनिरूप पश्यंती । हृदय में बसती ॥१॥ नाद हुआ कंठ से । मध्यमा वाचा कहते उसे । उच्चारण होते ही अक्षर उसे । वैखरी कहते ॥२॥ नाभी स्थान में परा वाचा । वही स्थान अंतःकरण का । अंतःकरणपंचक का । स्वरूप ऐसा ॥३॥निर्विकल्प जो स्फुरण । यों ही रहते जो हुआ स्मरण । उसे जानें अंतःकरण । ज्ञातृत्व कला ॥४॥अंतःकरण में स्मरण हुआ । आगे होगा या नहीं ऐसा लगा । करूं न करूं ऐसा जहां हुआ । वही मन ॥५॥ संकल्प विकल्प वही मन । जिसके कारण अनुमान । आगे निश्चय वह जान । रूप बुद्धि का ॥६॥ करें अथवा न करें । ऐसा निश्चय जो करे । वही बुद्धि यह अंतरंग में । विवेक से जानें ॥७॥ जिस वस्तु का निश्चय किया । आगे उसी का चिंतन करने लगा । उसे ही चित्त कहा गया । ये वचन यथार्थ मानो ॥८॥ आगे कार्य का अभिमान धरना । यह कार्य तो अवश्य करना । ऐसे कार्य में प्रवृत्त होना । वही अहंकार ॥९॥ ऐसे अंतःकरणपंचक । पंचवृत्ति मिलाकर एक । कार्यभाग अनुसार प्रकारपंचक । भिन्न भिन्न ॥१०॥ जैसे पांचों प्राण । कार्यभाग से अलग अलग जान । अन्यथा वायु के लक्षण । एक ही है ॥११॥ सर्वांग में व्यान नाभी में समान । कंठ में उदान गुदा में अपान । मुख में नासिका में प्राण । नियमित जानो ॥१२॥ कहे ये प्राणपंचक । अब ज्ञानेन्द्रियपंचक । श्रोत्र त्वचा चक्षु जिव्हा नासिक । ऐसी ये ज्ञानेंद्रिया ॥१३॥वाचा पाणि पाद शिश्न गुदा । ये कर्मेंद्रिया प्रसिद्ध । शब्द स्पर्श रूप रस गंध । ऐसे ये विषयपंचक ॥१४॥अंतःकरण प्राणपंचक । ज्ञानेंद्रिया कर्मेंद्रिया पंचक । पांचवां विषयपंचक । ऐसे ये पांच पंचक ॥१५॥ ऐसे ये पच्चीस गुण । मिलाकर सूक्ष्म देह जान । इनका कहा कर्दम श्रवण । करना चाहिये ॥१६॥अंतःकरण व्यान श्रवण वाचा । शब्द विषय आकाश का । आगे विस्तार वायु का । कहा है ॥१७॥मन समान त्वचा पाणि । स्पर्शरूप ये पवन में ही । ऐसे उनके तालमेल से ही । सूत्र बनायें ॥१८॥ बुद्धि उदान नयन चरण । रूपविषय के दर्शन । संकेत से कहे मन । लगाकर देखें ॥१९॥ चित्त अपान जिव्हा शिस्न । रसविषय आप जान । आगे सुनो हो सावधान । पृथ्वी का रूप ॥२०॥अहंकार प्राण घ्राण । गुद गंध विषय जान। ऐसे किया निरूपण । शास्त्रमत से ॥२१॥ ऐसा यह सूक्ष्म देह । देखने पर होईये निःसंदेह । मन लगाकर जो देखे यहां । उसे ही यह समझे ॥२२॥ऐसा सूक्ष्म देह कथित । आगे स्थूल किया निरूपित । आकाश पंचगुणों में दिखता स्थित । कैसे स्थूल में ॥२३॥ काम क्रोध शोक मोह भय । यह पंचविध आकाश का अन्वय । आगे पंचविध वायु। निरूपित किया ॥२४॥चलन मोड प्रसारण । निरोध और आकुंचन । ये पंचविध लक्षण । प्रभंजन के ॥२५॥ क्षुधा तृषा आलस निद्रा मैथुन । ये तेज के पंचविध गुण । अब आगे आप के लक्षण । निरूपित करने चाहिये ॥२६॥ शुक्लीत श्रोणीत लार मुत्र स्वेद । ये पंचविध आप के भेद । आगे पृथ्वी विशद । करनी चाहिये ॥२७॥अस्थि मांस त्वचा नाडी रोम । यह पृथ्वी के पंचविध धर्म । ऐसा स्थूल देह के मर्म। कहे गये है ॥२८॥पृथ्वी आप तेज वायु आकाश । इन पांचों के पच्चीस । मिलाकर उसे स्थूल देह । कहते हैं ॥२९॥ तीसरा देह कारण अज्ञान । चौथा देह महाकारण ज्ञान। इन चारों देह के निरसन पश्चात विज्ञान । परब्रह्म वह ॥३०॥ विचारपूर्वक चारों देह से अलग किया । मैंपन तत्त्वों के साथ गया । अनन्य आत्मनिवेदन हुआ । परब्रह्म में ॥३१॥ विवेक से चूका जन्म मृत्य । नरदेह में साध्य हुआ महत्कृत्य । भक्तियोग से कृतकृत्य । सार्थक हुआ ॥३२॥ इति श्री पंचीकरण । पुनः पुनः करें विवरण । लोहा बन गया सुवर्ण । पारस के योग से ॥३३॥ ये दृष्टांत भी लगे ना । पारस से पारस बन पाये ना । साधुजनों को जो शरण जाता। साधु ही होता ॥३४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे तत्त्वनिरसननाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP