हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|प्रकृतिपुरुष का| शिवशक्तिनिरूपणनाम प्रकृतिपुरुष का समास पहला शिवशक्तिनिरूपणनाम श्रवणनिरूपणनाम अनुमाननिरसननाम अजपानिरूपणनाम देहात्मनिरूपणनाम जगज्जीवननिरूपणनाम तत्त्वनिरूपणनाम समास नववां- तनुचतुष्टयनाम टोणपसिद्धलक्षणनाम समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ ब्रह्म निर्मल निश्चल । जैसा गगन अंतराल । निराकार केवल । निर्विकारी ॥१॥ अंत ही नहीं वह अनंत । शाश्वत और सदोदित । असंत नहीं वह संत । सर्वकाल ॥२॥ परब्रह्म वह अविनाश । जैसे आकाश अवकाश । ना टूटे ना फूटे सावकाश । जैसे वैसे ॥३॥ वहां ज्ञान ना अज्ञान । वहां स्मरण ना विस्मरण । वहां अखंड निर्गुण । निरावलंबी ॥४॥ वहां सूर्य चंद्र ना पावक । नहीं अंधेरा ना प्रकाशक । उपाधि से अलग एक । निरोपाधि ब्रह्म ॥५॥ निश्चल में स्मरण चेता। वही चैतन्य ऐसी की कल्पना । गुण समानत्व से हुआ। गुणसाम्य ऐसे ॥६॥गगन में आई अभ्रछाया' । वैसे ही जानिये मूलमाया । उद्भव और विलया । समय नहीं ॥७॥ निर्गुण में गुणविकारु । वही षड्गुणेश्वरु । अर्धनारीनटेश्वरु । उसे ही कहते ॥८॥ आदिशक्ति शिवशक्ति । मूलमें है सर्वशक्ति । उसी से आगे नाना व्यक्ति । हुये निर्माण ॥९॥ वहां से आगे शुद्धसत्त्व । रजतम का गूढत्व । उसे ही कहिये महतत्त्व । गुणक्षोभिणी ॥१०॥ मूलमें रहती ही ना व्यक्ति । वहां कैसी शिवशक्ति । ऐसा कहोगे तो भी । चित्त में सावधानी रहे ॥११॥ब्रह्मांड से पिंड । अथवा पिंड से ब्रह्मांड । अधोर्ध देखे तो गूढ़ । समझ में आता ॥१२॥ बीज फोडकर देखा मन में । वहा फल तो ना दिखे । बढ़ते बढ़ते आगे । नाना फल आते ॥१३॥ फल फोडे तो बीज दिखे । बीज फोडने पर फल ना दिखे । वैसा ही विचार है । पिंड ब्रह्मांड का ॥१४॥ नर नारी दोनो भेद । पिंड में दिखते प्रसिद्ध । मूलतः ही ना हो तो विशद । होंगे कैसे ॥१५॥ नाना बीजरूप कल्पना । उनमें क्या कुछ रहे ना । सूक्ष्म इस कारण भासे ना । एकाएक ॥१६॥ स्थूल का मूल वासना । वह वासना पहले दिखेना । स्थूल से अलग अनुमान होये ना । सब कुछ ॥१७॥कल्पना से सृष्टि रचायी । ऐसी वेदशास्त्रों की कथनी । दिखे ना कहकर मिथ्या कही । ऐसा ना हो ॥१८॥परदा एक एक जन्म का । वहां विचार समझे कैसा । परंतु गूढत्व यह नियम का । स्थान है ॥१९॥ नाना पुरुषों के जीव । नाना स्त्रियों के जीव । एक ही मगर देहस्वभाव । भिन्न भिन्न ॥२०॥ दुल्हन को दुल्हन ना लगे । ऐसा भेद दिखने लगे । पिंड से समझने लगे । ब्रह्मांडबीज ॥२१॥ दुल्हन का मन दुल्हे के ऊपर । दुल्हे का मन दुल्हन पर । ऐसा वासना का प्रकार । देखें मूल से ॥२२॥वासना मूलतः ही अभेद । देहसंबंध कारण हुआ भेद । टूटते ही देह का संबंध । भेद गया ॥२३॥ नरनारी का बीजकारण । शिवशक्ति में है जान । देह धारण करते ही प्रमाण । समझ में आये ॥२४॥नाना प्रीति की वासना । किसी को किसी का समझेना । तीक्ष्ण दृष्टि से अनुमान । में आता कुछ कुछ ॥२५॥ बालक का संगोपन करे जननी । पुरुष से यह होता नहीं। उपाधि जिससे बढती । वह यह वनिता ॥२६॥उबान नहीं घृणा नहीं । आलस नहीं त्रास नहीं । इतनी माया कहीं भी नहीं । माता के सिवा ॥२७॥ नाना उपाधि बढाना जाने । अनेक माया में उलझाना जाने । नाना प्रीति लगाना जाने । नाना प्रपंचों की ॥२८॥ पुरुष को स्त्री का विश्वास । स्त्री को पुरुष से संतोष । वासना ने आपस । में बांध रखा ॥२९॥ ईश्वर ने महान सूत्र बनाया । मनुष्यमात्र उलझ कर रह गया । लोभ का जंजाल निर्माण किया । सुलझे ना ऐसा ॥३०॥ ऐसी पसंद एक दूसरे के प्रति । स्त्री पुरुषों की महान अभिरुचि । यह प्रत्यक्ष मूल से ही चलती आई। देखें विवेक से ॥३१॥ मूल में सूक्ष्म निर्माण हुआ । आगे स्पष्ट दिखाई दिया। उत्पत्ति का कार्य चलने लगा । दोनों के कारण ॥३२॥ शिवशक्ति मूलतः खरा । आगे हुये वधू वर । चौरासी लक्ष का विस्तार । विस्तारित हुआ जो ॥३३॥ यहां शिवशक्ति के रूप दिखाये । श्रोताओं ने मन में लाना चाहिये । विवरण के बिना कहा जाये । वह व्यर्थ जानें ॥३४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे शिवशक्तिनिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP