हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|नामरूप| उभारणीनिरूपणनाम नामरूप आत्मानात्मविवेकनाम सारासारनिरूपणनाम उभारणीनिरूपणनाम प्रलयनाम कहानीनिरूपणनाम लघुबोधनाम प्रत्ययविवरणनाम कर्तानिरूपणनाम आत्मविवरणनाम सिकवणनिरूपणनामः समास तीसरा - उभारणीनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास तीसरा - उभारणीनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ ब्रह्म घना और पोला । आकाश से भी विशाल । निर्मल और निश्चल । निर्विकारी ॥१॥यूं ही रहते दीर्घकाल । वहां आरंभ हुआ भूगोल । उस भूगोल का मूल । सुनो सावधानी से ॥२॥ परब्रह्म रहने पर निश्चल । वहां संकल्प उठा चंचल । उसे कहिये केवल । आदिनारायण ॥३॥ मूलमाया जगदीश्वर । उसे ही कहिये षड्गुणेश्वर । अष्टधा प्रकृति का विचार । देखें वहां ॥४॥ इस ओर गुणक्षोभिणी । त्रिगुणों ने जन्म लिया वहीं । रचना मूल ओंकार की । जानिये वहां से ॥५॥अकार उकार और मकार । तीनों मिलाकर वोंकार । आगे पंचभूतों का विस्तार । हुआ विस्तारित ॥६॥आकाश कहलाये अंतरात्मा । उससे वायु का जन्म हुआ । वायु से तेज का । जन्म हुआ ॥७॥ वायु के प्रवाहों में घर्षण होये । उस उष्णता से अग्नि जले । सूर्यबिंब प्रकटे । उस जगह ॥८॥ हवा बहती शीतल । उससे निर्माण हुआ जल । वह जल सूखकर भूगोल । निर्माण हुआ ॥९॥ उस भूगोल के भीतर । अनंत बीजों के कोटि प्रकार । पृथ्वी पानी मिलाप होने पर । निकलते अंकुर ॥१०॥ पृथ्वी वल्ली नाना रंग । पत्र पुष्पों के तरंग । नाना स्वाद के फल । फिर निर्माण हुये ॥११॥ पत्र पुष्प फल मूल । नाना वर्ण नाना रसीले । नाना धान्य अन्न केवल । वहां से हुये ॥१२॥ रेत हुआ अन्न से । प्राणी उपजते रेत से । नगद प्रचीत है ऐसे । उत्पत्ति की ॥१३॥ अंडज जारज स्वेदज उद्भिज । पृथ्वी पानी सकलों का बीज । ऐसा यह कौतुक अचरज । सृष्टिरचना का ॥१४॥ चारों खाणी चारों वाणी । चौरासी लक्ष जीवयोनि । निर्माण हुये लोक तीन ही । पिंड ब्रह्मांड ॥१५॥ मूलतः अष्टधा प्रकृति ये । सारे पानी से जन्म लेते । पानी न हो तो मृत्यु पाते । सकल प्राणी ॥१६॥ कथन नहीं यह अनुमान का । भली तरह लें प्रत्यय इस का । वेदशास्त्रपुराण द्वारा । लें प्रत्यय ये ॥१७॥जिसका हमें प्रत्यय आये ना । वह अनुमानिक स्वीकारें ना । सकल जनों को प्रत्यय बिना । व्यवसाय नहीं ॥१८॥ प्रवृत्ति निवृत्ति व्यवसाय में । प्रचीति दोनो ओर चाहिये । प्रचीति बिन अनुमान में रहते । वे विवेकहीन ॥१९॥ ऐसा सृष्टि रचना का विचार । सकलित कहा है प्रकार । अब विस्तार का संहार । वह भी सुनें ॥२०॥ मूल से अत तक । सारा आत्माराम ही करे । करे और विवरण करे । यथायोग्य ॥२१॥ आगे सहार का किया निरूपण । श्रोताओ ने करना चाहिये श्रवण । इतने पर हुआ सपूर्ण । यह समास ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे उभारणीनिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP