हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|नामरूप| आत्मानात्मविवेकनाम नामरूप आत्मानात्मविवेकनाम सारासारनिरूपणनाम उभारणीनिरूपणनाम प्रलयनाम कहानीनिरूपणनाम लघुबोधनाम प्रत्ययविवरणनाम कर्तानिरूपणनाम आत्मविवरणनाम सिकवणनिरूपणनामः समास पहला - आत्मानात्मविवेकनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास पहला - आत्मानात्मविवेकनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ आत्मानात्मविवेक करें । करके अच्छे से विवरण करें । विवर कर सदृढ धरें । जीव में ॥१॥ आत्मा कौन अनात्मा कौन । इसका करें विवरण । वही अब निरूपण । सावधानी से सुनें ॥२॥ चारों खाणी चारों वाणी । चौरासी लक्ष जीव प्राणी । पुराणों में है संख्या गिनी । व्यवहार करते अब ॥३॥नाना प्रकार के शरीर । सृष्टि में दिखते अपार । उनमें निर्धार । से आत्मा कौन ॥४॥ दृष्टि से देखता । श्रवणों से सुनता । रसना से स्वाद लेता । प्रत्यक्ष अब ॥५॥ घ्राण में गंध लेता । सर्वांग में वह स्पर्श करता । वाचा से कथन कराता । जानकर शब्द ॥६॥ सावधान और चंचल । चारों ओर गतीशील । अकेला ही चलाये सकल । इंद्रियों द्वारा ॥७॥ पैर चलाये हांथ हिलाये । भौहें नचाये आंखे झपकाये । संकेत चिन्हों से बुलाये । वही आत्मा ॥८॥ ढिठाई करे लजाये खुजाये । खांसे ओंके थूके । अन्न खाकर उदक पिये । वही आत्मा ॥९॥ मलमूत्र त्याग करे । शरीरमात्र संवारे । प्रवृत्ति निवृत्ति का विवरण करे । वही आत्मा ॥१०॥ सुने देखे सूंघे चखे । नाना प्रकार से पहचाने । संतोष पाये और धाक दिखाये । वही आत्मा ॥११॥ आनंद विनोद उद्वेग चिंता । काया छाया माया ममता । आत्मत्ववश पाये नाना व्यथा । वही आत्मा ॥१२॥ पदार्थ की आस्था धरे । जनों में भला बुरा करे । स्वयं को बचाकर परायों को मारे । वही आत्मा ॥१३॥युद्ध समय दोनों ओर । नाना शरीरों में संचार । गिरे गिराये परस्पर । वही आत्मा ॥१४॥ वह आता जाता देह में बरतता । हंसता रोता पश्चाताप करता । समर्थ अभागी बनता । कारोबारानुसार ॥१५॥ होता चालाक होता बलिष्ठ । होता विद्यावंत होता ढीठ । न्यायवंत होता उद्धट । वही आत्मा ॥१६॥ धीर उदार और कृपण । पागल और विचक्षण । उच्छंक और सहिष्ण । वही आत्मा ॥१७॥ विद्या कुविद्या दोनों ओर । आनंदरूप से करे संचार । जहां वहां चारो ओर । वही आत्मा ॥१८॥ सोये उठे बैठे चले । दौड़े दौड़ाये डोले तोले । नाते रिश्ते बनाये । वही आत्मा ॥१९॥ पोथी पढ़े अर्थ कहे । ताल धरे गाने लगे । बिना कारण वादविवाद करे । वही आत्मा ॥२०॥ आत्मा न हो शरीर में । फिर वह शव चराचर में । आत्मा करे देह के संग में । सब कुछ ॥२१॥ एक के बिना दूसरा क्या । काम न आये व्यर्थ जाये । इस कारण यह उपाय । देहयोग से ॥२२॥ देह अनित्य आत्मा नित्य । यही विवेक नित्यानित्य । सकल सूक्ष्म का कृत्य । जानते ज्ञानी ॥२३॥ पिंड में देहधर्ता जीव । ब्रह्मांड में देहधर्ता शिव । ईश्वरतनुचतुष्टय सर्व । ईश्वर धर्ता ॥२४॥ त्रिगुणों से परे जो ईश्वर । अर्धनारीनटेश्वर । सकल सृष्टि का विस्तार । हुआ यहां से ॥२५॥ देखें विचार कर सही । स्त्री पुरुष वहां नहीं । चंचलरूप आता थोडा ही । प्रत्यय में ॥२६॥ मूल से लेकर अंततक । ब्रह्मादि पिपीलिका देहधारक । चतुर नित्यानित्यविवेक । जानिये ऐसा ॥२७॥जड जितना अनित्य । और सूक्ष्म जितना नित्य । इनमें जो नित्यानित्य । आगे निरूपित किये ॥२८॥स्थूल सूक्ष्म पार किया । कारण महाकारण त्याग दिया । विराट हिरण्यगर्भ खंडित किया । विवेक से ॥२९॥अव्याकृत मूलप्रकृति । वहां जा बैठी वृत्ति । उस वृत्ति को कराने निवृत्ति । निरूपण सुनें ॥३०॥आत्मानामविवेक कहा । चंचलात्मा प्रत्यय में आया । अगले समास में निरूपित किया । सारासारविचार ॥३१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मानात्मविवेकनाम समास पहला ॥१॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP