हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|भीमदशक| चंचलनदीनिरूपणनाम भीमदशक सिद्धांतनिरूपणनाम चत्वारदेवनिरूपणनाम सिकवणनिरूपणनामः विवेकनिरूपणनाम राजकारणनिरूपणनाम महंतलक्षणनाम चंचलनदीनिरूपणनाम अंतरात्माविवरणनाम उपदेशनाम निस्पृहवर्तणुकनाम समास सातवां - चंचलनदीनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास सातवां - चंचलनदीनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ चंचल नदी गंगा गुप्त । स्मरण से करें जग पवित्र । देखें इसकी रोकडी प्रचित । अन्यथा नहीं ॥१॥ केवल अचंचल से निर्माण हुई । अधोमुख दिशा में वेग से चली । अखंड बहे पर देखी । नहीं किसी ने ॥२॥बल मोड़ भंवरि । उफान तरंग झरी । भारी लहरें काटती । जगह जगह ॥३॥ शुष्क जल के प्रवाह । धारा प्रपात खलखल । संकरा उथला चौडा प्रवाह । चंचल पानी ॥४॥ झाग बुलबुले लहराये । इधर उधर उदक दौड़े । बूंद तुपार गिने । अणु रेणु कितने ॥५॥ कचरा बहता उदंड । प्रपात पत्थर कपार । चट्टान टापू को चक्कर । लगाती बहे ॥६॥ मृद भूमि टूट गई । कठिन वैसी ही रही । जगह जगह उदंड दिखी । सृष्टि में ॥७॥ कुछ तो बहते ही गये । कुछ चक्कर में पड़े । कुछ संकरी जगह में फस गये । अधोमुख ॥८॥ कुछ पटक पटककर मर गये । कुछ दबकर मर गये । कई एक फूल गये । पानी भरते ही ॥९॥ कुछ बलशाली चुने । वे तैरकर उगम तक पहुंचे । उगम दर्शन से पवित्र हुये । तीर्थरूप ॥१०॥ वहां ब्रह्मादिकों के भुवन । ब्रह्माड देवताओं के स्थान । उलटी गंगा देखने पर मिलन । सबका होता बहा ॥११॥ उस जल जैसा नहीं निर्मल । उस जल जैसा नहीं चंचल । आपोनारायण केवल । कहते उसे ही ॥१२॥ है महानदी पर अंतराल में । सर्वकाल प्रत्यक्ष बहे । स्वर्गमृत्युपाताल में । फैली देखो ॥१३॥ अधोर्ध अष्ट दिशायें । उसका उदक चक्कर लगाये । ज्ञानी जानते उसे । जगदीश समान ही ॥१४॥ अनंत पात्रों में उदक भरा । कुछ झरकर निकल गया । बहुत सारा खर्च हो गया । संसार में ॥१५॥ एक के संग में कडवा । एक के संग में मीठा । एक के संग में तीखा । कसैला क्षार ॥१६॥ जिस जिस पदार्थ से होता मिलाप । उससे हो जाता तद्रूप । सखोल भूमि में होता संचित । सखोलता से ॥१७॥ दिष में विष ही होता । अमृत में मिल जाता । सुगंध में सुगंध होता। दुर्गंधी में दुर्गंध ॥१८॥ गुणी अवगुणी से मिलता । स्वभावानुसार अनुभूत होता । उस उदक का महत्त्व ना समझता । उदकबिना ॥१९॥ उदक बहे अपरंपार । न समझे नदी या सरोवर । जलवास करके रहते नर । कई एक ॥२०॥ उगम के गये पार । वहां देखा पलटकर । तो उदक ही सूख गया आखिर । कुछ नहीं ॥२१॥ वृत्तिशून्य योगेश्वर । उनका देखे विचार । दास कहे बार बार । कितना कहूं ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे चंचलनदीनिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP