हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|गुणूपनाम| निःसंगदेहनिरूपणनाम गुणूपनाम आशकानाम ब्रह्मनिरूपणनाम निःसंगदेहनिरूपणनाम जाणपणनिरूपणनाम अनुमाननिरसननाम गुणरूपनिरूपणनाम विकल्पनिरसननाम देहांतनिरूपणनाम संदेहवारणनाम स्थितिनिरूपणनाम समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ श्रोतां ने किया अनुमान । ऐसा कैसा ब्रह्मज्ञान । रहकर भी न रहना । यह कैसे होगा ॥१॥सभी कर के अकर्ता । सभी भोग कर अभोक्ता । सभी में अलिप्तता । आयेगी कैसे ॥२॥ तथापि आप कहते ।cयोगी भोगकर अभोक्ता है । स्वर्ग नर्क भी अब कहें । इसी तरह ॥३॥ जन्म मृत्यु भोगा ही भोगो । परंतु वह भोगकर अभोक्ता योगी । यातना भी उसके लिये । इसी तरह ॥४॥पिटकर भी नहीं पीटा गया । रोकर भी नहीं रोया । कराहकर भी नहीं कराहा । योगेश्वर ॥५॥ जन्म न होकर भी जन्मा । पतित न होकर भी हुआ । यातना न होकर भी पाया । नाना प्रकार से ॥६॥ऐसा श्रोताओं का अनुमान । श्रोतां चलते टेढ़ी राह । अब इसका समाधान । करना चाहिये ॥७॥ वक्ता कहे हों सावधान । तुमने किया ठीक कथन । मगर तुम्हारे ही अनुभव के कारण । तुम्हें हुआ ॥८॥जिसका अनुभव जैसा । वह बोलता वैसा । साहस करे जो बिना संपदा । वह निरर्थक ॥९॥ नहीं ज्ञान की संपदा । अज्ञान दरिद्र से आपदा । भोगा हुआ भोगता सदा । शब्दज्ञान से ॥१०॥ योगी को पहचाने योगेश्वर । ज्ञानी को पहचाने ज्ञानेश्वर । महाचतुर ही चतुर । को पहचानें ॥११॥ अनुभवी को अनुभवी ही जानता । अलिप्त अलिप्तता से शांत होता । विदेही का देहभाव गलता । देखते ही विदेही ॥१२॥ बद्ध सरीखा सिद्ध । और सिद्ध सरीखा बद्ध । एक माने वह अबद्ध । कहना ही न पडे ॥१३॥ झडपा हुआ देहधारी । और देहधारक पंचाक्षरी । परंतु दोनों की बराबरी । कैसे करें ॥१४॥ वैसे ही अज्ञान पतित । और ज्ञानी जीवन्मुक्त । दोनो समान माने उसे युक्त । कैसे कहें ॥१५॥ अब रहने दो ये दृष्टांत । प्रचित के लिये कहूं कुछ हेत । यहां श्रोताओं सचेत । क्षण एक हों ॥१६॥ जो ज्ञान से गुप्त हुआ । जो विवेक में लुप्त हुआ । वह अनन्यता से रहा । नहीं कुछ भी ॥१७॥ उसे पायें तो किस तरह । खोजो तो बन जायें उसकी तरह । वही हो जाने पर । न रहा कहने को कुछ भी ॥१८॥ देह में देखें तो दिखेना । तत्त्वों में खोजें तो भासेना । ब्रह्म से अलग कर पाये ना । करें कुछ भी ॥१९॥दिखता है देहधारी । मगर भीतर कुछ भी नहीं । उसे देखें तो ऊपर उपरी । समझेगा कैसे ॥२०॥ समझने हेतु खोजें अभ्यंतर । तब वह नित्यनिरंतर । जिसे ढूंढते ही विकार । निर्विकार होते ॥२१॥ वह परमात्मा ही केवल । उसे नहीं मायामल । अखंड हेतु का स्पर्श मलिन । हुआ ही नहीं ॥२२॥ ऐसा जो कि योगीराज । वह आत्मा सहज ही सहज । पूर्णब्रह्म वेदबीज । देहाकार से ना समझे ॥२३॥देह से देह ही दिखे । मगर अंतरंग में अलग ही होये । उसे खोजें तो ना रहे । जन्ममरण ॥२४॥जन्ममरण होते है जिसे । वह यह नहीं ही स्वभाव से । जो है ही नहीं उसे । लायें कैसे कहां से ॥२५॥निर्गुण का जन्म कल्पित किया । अथवा निर्गुण को उड़ा दिया । तो भी उड़ाया और जन्म लिया । हमने स्वयं ॥२६॥ मध्यान्ह में थूके सूर्य पर । वह थूक पडे अपने ही मुख पर । दूसरे का बुरा सोचा भीतर । होता वैसा ही अपना ॥२७॥ समर्थ पुरुष की महिमान । जानने पर होता समाधान । किंतु भौंकने लगा श्वान । तो भी वह श्वान ही है ॥२८॥ ज्ञानी वह सत्यस्वरूप । अज्ञानी देखे मनुष्यरूप । भाव के समान फलद्रूप । देव वैसा ॥२९॥ देव निराकार निर्गुण । लोग मानतें पाषाण । पाषाण फूटता निर्गुण । फूटेगा कैसे ॥३०॥ देव सदोदित व्याप्त हुआ । लोगों ने बनाया बहुविध । मगर वह हुआ बहुविध । यह तो होये ना ॥३१॥ वैसे साधु आत्मज्ञानी । बोध से पूर्ण समाधानी । विवेक से आत्मनिदानी । आत्मरूपी ॥३२॥ जलने पर काष्ठ का आकार । अग्नि दिखे काष्ठाकार । मगर वह काष्ठ है यह विचार । कहें ही नहीं ॥३३॥कर्पूर है वह जलता दिखे । वैसे ज्ञानी का देह भासे । उसे जन्माया जाता कैसे । कर्दली उदर में ॥३४॥भूजा बीज उगे ना । जला वस्त्र खुले ना । प्रवाह अलग करने से होये ना । गंगा से ॥३५॥ प्रवाह दिखे पूर्व गंगा के । गंगा एकदेशी रहे । साधु कुछ भी न भासे । और आत्मा सर्वगत ॥३६॥ स्वर्ण नहीं लोहखंड । साधु के लिये जन्म पाखंड । अज्ञानी प्राणी जड़मूढ । उसे यह समझे ही ना ॥३७॥अंधे को कुछ भी नहीं दिखे । फिर सारे लोग अंधे कैसे । सन्निपात में बड़बड़ाये । सन्निपाती ॥३८॥ जो स्वप्न में डर गया । वह स्वप्नभय से चिल्लाया । वह भय जगा हुआ । को लगे कैसा ॥३९॥ जड़ सर्पाकार देख ली । एक डरा गया एक ने पहचान ली । दोनों की अवस्था मान ली । समान कैसे ॥४०॥हाथ में धरें तो डसेना । यह किसी को भी भासेना । तो भी उसकी कल्पना । उसे ही बाधे ॥४१॥ बिच्छू सर्प ने डसा जिसे । वही व्यथित हुआ उससे । लोग हुये इस कारण से । व्याकुल कैसे ॥४२॥ अब जाकर टूटा अनुमान । ज्ञानियों को समझे ज्ञान । अज्ञानी को जन्ममरण । चूके ही नहीं ॥४३॥ एक को जानने के लिये । लोगो ने प्रयास किये । ना समझने से दुःख पाये । जन्ममरण के ॥४४॥ वही कथानुसंधान । आगे किया परिछिन्न । सावधान सावधान। कहे वक्ता ॥४५॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे निःसंगदेहनिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP