हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|देवशोधन नाम| सारशोधननाम देवशोधन नाम देवशोधननाम ब्रह्मपावननाम मायोद्भवनाम ब्रह्मनिरूपणनाम सृष्टिकथननाम सगुणभजननाम दृश्यनिरसननाम सारशोधननाम अनिर्वाच्यनाम समास नववां - सारशोधननाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास नववां - सारशोधननाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ गुप्त है उदंड धन । क्या जानते सेवकजन । उन्हें है वह ज्ञान । बाह्यात्कार का ॥१॥ गुप्त रखा उदंड अर्थ । और प्रकट दिखते पदार्थ । सयाने खोजते स्वार्थ । अभ्यंतर में है ॥२॥ वैसा दृश्य यह मायिक । देखते रहते सकल लोक । मगर जो जानते विवेक । वे तदंतर जानते ॥३॥ द्रव्य रखकर जल भरा । लोग कहते सरोवर भर गया । उसका अभ्यंतर समझा । समर्थ जनों को ॥४॥ वैसे ज्ञाते समर्थ । उन्होंने ही पहचाना परमार्थ । अन्य वे करते स्वार्थ । दृश्य पदार्थों के ॥५॥ काबाडी काबाड ढोते । श्रेष्ठ रत्न भोगते । ये जिनका वे ही मधुरता लेते । कर्मयोग से ॥६॥ एक काष्ठ स्वार्थ करता । एक गोबर के कंडे जमाता । वैसे नहीं नृपति रहता । सारभोक्ता ॥७॥ जिसके पास है विचार । वे सुखासन पर हुये सवार । अन्य जन वे पास का भार । ढोते हुये मर गये ॥८॥ कोई दिव्यान्न भक्षण करते । कोई विष्ठा सेवन करते । अपने आचरण का लेते । साभिमान ॥९॥ सार सेवन करते श्रेष्ठ । असार लेते वृथापृष्ठ । सारासार की बात । सज्ञान जानते ॥१०॥ गुप्त पारस चिंतामणि । प्रकट कंकड कांच के मणि । गुप्त हेमरत्नखानी । प्रकट पाषाण मृत्तिका ॥११॥ अव्हाशंख अव्हाबेल । गुप्त वनस्पति अमोल । रेंडी धतूरा की टकसाल । प्रकट सीप ॥१२॥ कहीं दिखे ना कल्पतरू । उदंड थूहर का विस्तारू । देखने पर नहीं मैलागरू । बेर बबूल उदंड ॥१३॥कामधेनू जानिये इंद्र । सृष्टि में गौवत्स अपार । महद्भाग्य भोगते नृपवर । इतर कर्मानुसार ॥१४॥नाना व्यापार करते जन । सभी कहते सकांचन । परंतु कुबेर की महिमान । नहीं किसी को ॥१५॥ वैसा ज्ञानी योगेश्वर । गुप्तार्थ लाभ का ईश्वर । इतर वे उदरार्थी किंकर । नाना मत ढूंढते ॥१६॥ तस्मात् सार वह दिखे ना । और असार वह देखते जन । सारासार विवंचना । साधु जानते ॥१७॥इतरों को यह क्या कहना। खरा खोटा किसने जाना । साधु संतों के चिन्हा । साधु संत जानते ॥१८॥दिखे ना जो गुप्त धन । उसके लिये करना पडे अंजन । गुप्त परमात्मा सज्जन । के संगति में खोजें ॥१९॥राजा के सन्निध रहता । सहज ही श्रीमंती पाता । वैसे ही यह सत्संग जो धरता । सद्वस्तु पाता ॥२०॥सद्वस्तु से सद्वस्तु लब्ध । अव्यवस्थित को अव्यवस्थित । प्रशस्त को प्रशस्त । विचार मिलते ॥२१॥ इस कारण यह दृश्यजात । सारी ही है अशाश्वत । परमात्मा अच्युत अनंत । वह इस दृश्य से अलग ॥२२॥ दृश्य से अलग दृश्यांतर में । सर्वात्मा वह सचराचर में । विचार देखने पर अंतरंग में । निश्चय दृढ होता ॥२३॥ संसार त्याग न करते हुये । प्रपंच उपाधि न छोडते हुये । जन्म में सार्थकता आये । विचारों से ही ॥२४॥यह प्रचीति का बोलना । विवेक से प्रचीति देखना । प्रचीति देखे वह सयाना । अन्यथा नहीं ॥२५॥सप्रचीत और अनुमान । उधार और नगद धन । मानसपूजा प्रत्यक्षदर्शन । इनमें महदतंर ॥२६॥ आगे होगा जन्मांतर । में यह तो प्रत्यक्ष उधार । वैसा नहीं सारासार । तत्काल ही मिले ॥२७॥ तत्काल ही लाभ होता । प्राणी संसार से छूटता । संशय सारा ही टूटता । जन्ममरण का ॥२८॥ इसी जनम इसी काल में । संसार से हो जाये निराले । निश्चलता से मोक्ष पाते । स्वरूपाकार में ॥२९॥इस बात का करे अनुमान । वह सिद्ध ही पायेगा पतन । मिथ्या कहे उसे आन । उपासना की ॥३०॥ यह यथार्थ ही है कहना । विवेक से शीघ्र मुक्त होना । रहकर कुछ भी ना रहना । जनों के बीच ॥३१॥देवपद है निर्गुण । देवपद में अनन्यपन । यही अर्थ देखने पर पूर्ण । समाधान दृढ होता ॥३२॥ देह में ही विदेही होना । करके भी कुछ ना करना । जीवन्मुक्त के लक्षण । जीवन्मुक्त जाने ॥३३॥ वैसे यह खरा न लगे । अनुमान से सदह बढे । संदेह का मूल टूटे । सद्गुरुवचनों से ॥३४॥ इति श्रीदासबोध गुरुशिष्यसंवादे सारशोधननाम समास नववां ॥९॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP