हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|मंत्रों का| समास दसवां सिद्धलक्षणनाम मंत्रों का समास पहला गुरुनिश्चयनाम समास दूसरा गुरुलक्षणनाम समास तीसरा शिष्यलक्षणनाम समास चौथा उपदेशनाम समास पांचवां बहुधाज्ञाननाम समास छठवां शुद्धज्ञाननिरूपणनाम समास सातवा बद्धलक्षणनाम समास आठवां मुमुक्षुलक्षणनाम समास नववां साधकलक्षण निरूपणनाम समास दसवां सिद्धलक्षणनाम समास दसवां सिद्धलक्षणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दसवां सिद्धलक्षणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पीछे कहा संसारिक । त्याग बिन नहीं जो साधक । सुनो जी इसका विवेक । ऐसा है ॥१॥ सन्मार्ग वह जी में धरना । अनमार्ग का त्याग करना । सांसारिकों ने त्याग करना । इस तरह ॥२॥ त्यागे बिन कुबुद्धि कुछ भी । आती नहीं सुबुद्धि । संसारिकों का त्याग भी । होता ऐसे ॥३॥ प्रपंच से ऊब गया। मन ने विषय त्याग किया । तभी तो आगे अवलंबन किया । परमार्थ मार्ग का ॥४॥ त्याग हो अभाव का । त्याग हो संशय का । त्याग हो अज्ञान का । शनैः शनैः ॥५॥ ऐसा सूक्ष्म अंतस्त्याग । दोनों को हो सांग । निस्पृह को बाह्य त्याग । विशेष है ॥६॥ संसारिको को ठांई ठांई । बाह्य त्याग होता कहीं कहीं । नित्यनेम श्रवण नहीं । त्याग बिना ॥७॥ आशंका मिट गई स्वाभाविक । त्याग बिना नहीं साधक । आगे कथा का अन्वय । सावध हो सुनो ॥८॥ पीछे हुआ निरूपण । साधक की पहचान । अब कहता हूं चिन्ह । सिद्धलक्षण के ॥९॥ साधु वस्तु होकर रहा । संशय ब्रह्मांड के बाहर गया । निश्चय हिले ना ऐसा हुआ । इसका नाम सिद्ध ॥१०॥ बद्धावस्था के अवगुण । मुमुक्षुपन में ना रहते जान । मुमुक्षु अवस्था के लक्षण । साधक अवस्था में नहीं ॥११॥साधक की संदेह वृत्ति । होती है आगे निवृत्ति । इसलिये श्रोताओं निःसंदेह स्थिति । साधु की पहचान है ॥१२॥संशयरहित ज्ञान । यही साधु का लक्षण । सिद्ध के अंग में संशय हीन । आयेगा कैसे ॥१३॥ कर्ममार्ग संशय से भरा । साधनों में संशय है मिला । सभी में संशय भरा । साधु वह निःसंदेह ॥१४॥ संशय का ज्ञान असत्य । संशय का वैराग्य अनाथ । संशय का भजन झूठ । निर्फल होता ॥१५॥ व्यर्थ संशय का देव । व्यर्थ संशय का भाव । व्यर्थ संशय का स्वभाव । सब कुछ ॥१६॥ व्यर्थ संशय का व्रत । व्यर्थ संशय का तीर्थ । व्यर्थ संशय का परमार्थ । निश्चयबिना ॥१७॥ व्यर्थ संशय की भक्ति । व्यर्थ संशय की प्रीति । व्यर्थ संशय की संगति । संशय बढाये ॥१८॥ व्यर्थ संशय का जीना । व्यर्थ संशय का धरना । व्यर्थ संशय से करना । सब कुछ ॥१९॥ व्यर्थ संशय की पोथी । व्यर्थ संशय की व्युत्पत्तिः । व्यर्थ संशय की गति । निश्चयबिना ॥२०॥ व्यर्थ संशय का दक्ष । व्यर्थ संशय का पक्ष । व्यर्थ संशय से मोक्ष । होगा नहीं ॥२१॥ व्यर्थ संशय का संत । व्यर्थ संशय का पंडित । व्यर्थ संशय का बहुश्रुत । निश्चयबिना ॥२२॥ व्यर्थ संशय की श्रेष्ठता । व्यर्थ संशय की व्युत्पन्नता । व्यर्थ संशय का ज्ञाता । निश्चयबिना ॥२३॥ निश्चय बिन सर्व ही । अणुमात्र भी प्रमाण नहीं । गिरे प्रवाह में व्यर्थ ही । संदेह के ॥२४॥ निश्चय बिन जो कथन । वे सब उकताहट के गायन । वाचालता वश असंबद्ध कथन । निरर्थक ॥२५॥ अस्तु निश्चय बिन जो वल्गना । वह सारी ही विडंबना । संशय में नहीं समाधान । बचता कुछ भी ॥२६॥ इसलिये संदेहरहित ज्ञान । निश्चयात्मक समाधान । वही सिद्ध के लक्षण । निश्चित ही ॥ २७॥तब श्रोता प्रश्न करे । निश्चय कौन सा करे । लक्षण मुख्य निश्चय के । मुझे निरूपित करें ॥२८॥ सुनो निश्चय वह ऐसा । मुख्य देव है कैसा । नाना देवों का झमेला । करें ही नहीं ॥२९॥ जिसने निर्माण किया सचराचर । उसका करें विचार । शुद्ध विवेक से परमेश्वर । पहचानें ॥३०॥ मुख्य देव वह कौन । भक्तों के कैसे लक्षण । असत्य त्याग पहचान । सत्य की करें ॥३१॥पहचानें अपने देव को । तब मैं कौन यह देखो । संग त्यागकर रहो । वस्तुरूप ॥३२॥ तोडें बंधन संशय का । करें निश्चय मोक्ष का । देखें अन्वय भूतों का । व्यतिरेक से ॥३३॥ पूर्वपक्ष से सिद्धांत । देखें प्रकृति का अंत । तब पाओगे शांत । निश्चय देव का ॥३४॥ देह के ही योग से संशय । करता समाधान का क्षय । न ढलने दो निश्चय । आत्मत्व का ॥३५॥सिद्ध होने पर आत्मज्ञान । संदेह बढाये देहाभिमान । इसलिये समाधान । आत्मनिश्चय से रखें ॥३६॥ याद आते ही देहबुद्धि । उड़े विवेक की शुद्धि । इस कारण से आत्मबुद्धि । सुदृढ करें ॥ ३७॥ आत्मबुद्धि निश्चय की । वही दशा मोक्षश्री की । 'अहमात्मा' ये कभी भी । न भूलें ॥३८॥ निरूपित किये निश्चय के लक्षण । पर ये न समझे सत्संग बिन । जाने पर संतों के शरण । टूटते संशय ॥३९॥ अस्तु अब रहने दो यह कथन । सुनो सिद्ध के लक्षण । मुख्य निःसंदेहपन । से सिद्ध कहलाये ॥४०॥ सिद्धस्वरूप में नहीं देह । वहां कैसा होगा संदेह । इसलिये सिद्ध देखो वह । निःसंदेह में ॥४१॥ देहसंबंध के गुणों से । लक्षणों की कमी कैसे । देहातीत के लक्षण कैसे । कहें भी तो क्या ॥४२॥ जो लक्ष्य ना आता चक्षु से । उसके लक्षण कहें भी कैसे । निर्मल वस्तु सिद्ध उसे । लक्षण कैसे ॥४३॥लक्षण याने केवल गुण । वस्तु सहज ही निर्गुण । वे ही सिद्ध के लक्षण । वस्तुरूप ॥४४॥ तथापि ज्ञानदशक में कहा । इसलिये वक्तृत्व समाप्त किया । न्यूनपूर्ण करना क्षमा । चाहिये श्रोतां ने ॥४५॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सिद्धलक्षणनाम समास दसवां ॥१०॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP