हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|स्तवणनाम| समास तीसरा शारदास्तवननाम स्तवणनाम समास पहला मंगलाचरण समास दूसरा गणेशस्तवननाम समास तीसरा शारदास्तवननाम सद्गुरुस्तवननाम समास पांचवा संतस्तवननाम समास छठवां श्रोतेस्तवननाम समास सातवा कवीश्वरस्तवननाम समास आठवां सभास्तवननाम समास नववां परमार्थस्तवननाम समास दसवां नरदेहस्तवननिरूपणनाम समास तीसरा शारदास्तवननाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास तीसरा शारदास्तवननाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थः ॥ अब वंदन करुं वेदमाता । श्रीशारदा ब्रह्मसुता । शब्दमूल वाग्देवता । महामाया ॥१॥जो उपजे शब्दांकुर । वैखरी बोले अपार । जो शब्दों का अभ्यंतर । उकलन करे ॥२॥ जो योगियों की समाधि है । जो धीरों की कृतबुद्धि । जो विद्या अविद्या उपाधि । को तोड़े ॥३॥जो महापुरुष की भार्या । अति संलग्न अवस्था तुर्या । जिसके कारण महत्कार्य । प्रवर्तित साधु ॥४॥ जो महतो की शांति । जो ईश्वर की निज शक्ति । जो ज्ञानियों की विरक्ति । नैराष्यशोभा ॥५॥ जो अनंत ब्रह्माण्ड रचती । लीला विनोद से नष्ट करती । स्वयं आदिपुरुष में छुपती । लीन होकर ॥६॥ जो प्रत्यक्ष दृष्टिगत होती । विचार करने पर भी न दिखती । जिसका पार न पाये मति । ब्रह्मादिकों की ॥७॥ जो सर्व नाटक अंतर्कला । ज्ञातृत्व स्फूर्ति निर्मला । जिससे ही स्वानंदोत्सव मेला । ज्ञानशक्ति ॥८॥ जो लावण्यस्वरुप की शोभा । जो परब्रह्मसूर्य की प्रभा । शब्द वदन से सारा । संसार नष्ट करे ॥९॥ जो मोक्षश्रिया महामंगला । जो सत्रहवीं जीवनकला । जो सत्वलीला सुशीत कला । लावण्य की खदान ॥१०॥ जो अव्यक्त पुरुष की व्यक्ति । विस्तार से बढ़ गयी इच्छाशक्ति । जो कलिकाल की नियंति । सद्गुरूकृपा ॥११॥ जो परमार्थ मार्गो का विचार । चुनकर दिखाये सारासार । भवसिंधु का पार । प्राप्त करायें शब्दबल से ॥१२॥ ऐसे बहुवेष से सजी । माया शारदा अकेली । सिद्ध के अंदर में फैली । चतुर्विधा प्रकार से ॥१३॥ तीनों वाचा में अंतर प्रकट । वही वैखरी से किया प्रकट । अतः जितने भी हुये कर्तृत्व । वह शारदा गुण से ॥१४॥ जो ब्रह्मादिकों की जननी । हरिहर जिससे ही । सृष्टि रचना लोक तीनों भी । विस्तार जिसका ॥१५॥जो परमार्थ का मूल । अथवा जो सद्विद्या ही केवल । प्रशांत निर्मल निश्चल । स्वरूपस्थिति ॥१६॥जो योगियों के ध्यान में । जो साधकों के चिंतन में । जो सिद्धों के अंतःकरण में । समाधिरूप में ॥१७॥ जो निर्गुण की पहचान । जो अनुभव के चिन्ह । जो व्यापकता संपूर्ण सर्व घटों में ॥१८॥ शास्त्र पुराण वेद श्रुति ये । अखंड जिसका स्तवन करते । नाना रूप में जिसको भजते । प्राणिमात्र ॥१९॥ जो वेदशास्त्रों की महिमा । जो निरूपम की उपमा । जिसको ही परमात्मा । ऐसे बोलते ॥२०॥ नाना विद्या कला सिद्धि । नाना निश्चय की बुद्धि । जो सूक्ष्म वस्तु की शुद्धि । ज्ञप्तिमात्र ॥२१॥ जो हरीभक्तों की निजभक्ति । अंतरनिष्ठों की अंतरस्थिति । जो जीवनमुक्तों की मुक्ति । सायुज्यता वह ॥२२॥ जो अनंत माया वैष्णवी । न समझ मे आये नाटक चतुराई । जो बड़ो बड़ो को भुलाते आई । ज्ञातृत्व से ॥२३॥ जो जो देखा दृष्टि ने । जो जो शब्दों से पहचाने । जो भास किया मन ने । उतने ही रूप उसके ॥२४॥ स्तवन भजन भक्तिभाव । माया के बिना नहीं उपाय । इस वचन का अभिप्राय । अनुभवी जानते ॥२५॥ इस कारण श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर । जो ईश्र्वरों का भी ईश्र्वर । उसे मेरा नमस्कार. तदंश से ही अब ॥२६॥इति श्रीदासबोधे गुरूशिष्यसंवादे शारदास्तवननाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP