हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|स्तवणनाम| समास दूसरा गणेशस्तवननाम स्तवणनाम समास पहला मंगलाचरण समास दूसरा गणेशस्तवननाम समास तीसरा शारदास्तवननाम सद्गुरुस्तवननाम समास पांचवा संतस्तवननाम समास छठवां श्रोतेस्तवननाम समास सातवा कवीश्वरस्तवननाम समास आठवां सभास्तवननाम समास नववां परमार्थस्तवननाम समास दसवां नरदेहस्तवननिरूपणनाम समास दूसरा गणेशस्तवननाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दूसरा गणेशस्तवननाम Translation - भाषांतर ॥श्रीरामसमर्थ॥ ॐ नमो जी गणनायका । सर्वसिद्धिफलदायका । अज्ञानभ्रांतिछेदका । बोधरूपा ॥१॥मेरे अंतर में समायें । सर्वकाल वास्तव्य करते जायें । मुझ वाक्यशून्य से बोलवायें । कृपा कटाक्ष करके ॥२॥तेरे कृपा के ही बल । से मिटते भ्रांति के पटल । और विश्र्वभक्षक काल । दास्यत्व करे ॥३॥आते ही कृपा की निज उडान । कांपते बेचारे विघ्न । होता उनका देश-पलायन । नाममात्र से ॥४॥इस कारण नाम विघ्नहर । हम अनाथों के नैहर । आदि से हरिहर ॥ अमर वंदन करते ॥५॥वंदन कर मंगलनिधि । कार्य करे तो सर्वसिद्धि । आघात अड़चने उपाधि । बाध सकेना ॥६॥जिसके छबि का करते ही स्मरण । लगे परम समाधान । नेत्रों में प्रविष्ट होकर मन । पंगु होते सर्वांग ॥७॥ सगुण रूप का भंडार । महा लावण्य लाघव । नृत्य करने पर सकल देव । तटस्थ होते ॥८॥ सर्वकाल मदोन्मत्त । डोलते सदा आनंदित । हर्ष-निर्भर मुदित । सुप्रसन्न वदन ॥९॥ भव्यरूप वितंड । भीममूर्ति महा प्रचंड । विस्तीर्ण मस्तकी उदंड। सिंदूर चर्चित ॥१०॥ नाना सुगंध परिमल । रसता टपकता गंडस्थल । वहां आये षट्पदकुल । गुंजन शब्दों से ॥११॥ वक्रमोड शुंडादंड सरल । शोभा दे अभिनव सुंड । लंबे अधरोंसे तीक्ष्ण । टपके क्षण क्षण मंदसत्व ॥१२॥गोसावी चौदह विद्या के । सूक्ष्म लोचन हिलाये । लचीले कोमल फड़फडाये। फड़फड़ कर्णथापा ॥१३॥रत्नखचित मुकुट करे झिलमिल । नाना सुरंग छितराते कील। कुंडल के रत्ननील । उपर जड़े झिलमिलाते ॥१४॥ शुभ्र सदृढ दंत । हेमकड़ा रत्नजड़ित । जिसके तले स्वर्णपत्र सुशोभित । जगमगाये लघु लघु ॥१५॥थुलथुल कर हिले तोंद । वेष्टित कट्ट नागबंध। क्षुद्र घंटिका मंद मंद । बजते झनकार से ॥१६॥ चतुर्भुज लंबोदर । काछा कसे हैं पीतांबर । फडकता तोंद का फणिवर । फुफकार करता ॥१७॥ जिव्हा लवलवाते डोले मस्तक पर । आसन जमाये कुंडली मार । नाभि कमल से उभर कर । टकमक देखे ॥१८॥ कुसुममाला नाना याति । व्यालपर्यंत गले में झूलती । रत्नजड़ित हृदय कमल पर देती । पदक शोभा जैसे ॥१९॥ शोभा दे परशु और कमल । अंकुश में तीक्ष्ण तेज का बल । एक कर में मोदक गोल । उस पर अति प्रीति ॥२०॥ नट नाट्य कला कौशल करे । नाना छंद नृत्य करे । ताल मृदंग के शब्दो से भरे । उमंग से हुंकारे ॥२१॥ स्थिर नहीं एक क्षण । चपलता में अग्रगण्य । सुसज्जित मूर्ति सुलक्षण । लावण्यखाणी ॥२२॥ रून झुन बजते नुपुर । दण्डबंध का ध्वनिगजर । घुंगरूओं की झंकार मनोहर । दोनो पैरों में ॥२३॥ईश्वर सभा में आई शोभा । दिव्यांबर की फैली प्रभा । साहित्य निपुण सुल्लभा । हैं अष्ट नायिका ॥२४॥ ऐसा सर्वांग सुंदर । सकल विद्या के आगर । उन्हें मेरा नमस्कार । साष्टांग भाव से ॥२५॥ ध्यान गणेश का जब वर्णित होता । भ्रांत मतिप्रकाश पाता । गुणानुवाद श्रवण जब होता । प्रसन्न होती सरस्वती ॥२६॥ जिसको ब्रह्मादि भी वंदन करे। वहां मानव क्या बेचारे । प्राणि मतिमंद जो ठहरे । वे भी गणेश चिंतन करें ॥२७॥ जो मूर्ख अवलक्षण । जो हीन से भी हीन । वे ही होते दक्ष प्रवीण । सर्व विषयों में ॥२८॥ ऐसा जो परम समर्थ । पूर्ण करे मनोरथ । सप्रचित भजनस्वार्थ । कलौ चंडीविनायक ॥२९॥ ऐसा गणेश मंगलमूर्ति । उसका मैने किया स्तवन यथामति । रखकर चित्त में वांछा प्रीति । परमार्थ की ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे गणेशस्तवननाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP