हिंदी सूची|पूजा एवं विधी|नित्य कर्म पूजा|अतिथि (मनुष्य)-यज्ञ| भोजनादि शयनान्तविधि अतिथि (मनुष्य)-यज्ञ अतिथि (मनुष्य)-यज्ञ विशेष बातें नित्य-श्राद्ध वार्षिक तिथिपर श्राद्धके निमित्त ब्राह्मण-भोजनका संकल्प भोजनादि शयनान्तविधि भोजनके बादके कृत्य भोजनादि शयनान्तविधि प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे. Tags : devatadevipoojaदेवतादेवीपूजा भोजनादि शयनान्तविधि Translation - भाषांतर भोजनादि शयनान्तविधि भोजन-विधि-भोजनालयमें प्रवेश करनेके पहले हाथ-पाँव धोकर दाँतोंको रगडकर साफ कर ले । फिर कुल्ले कर ‘ॐ भूर्भव: स्व:’ इस मन्त्रसे दो बार आचमन करे । फिर विहित पीढेपर पूरब या उत्तरकी और मुँह कर बैठ जाय । थाल रखनेकी जगहपर थालके बराबर, जलसे दाहिनी ओरसे प्रारम्भ कर चौकोर घेरा बनाये । भगवान्के भोग लगाये अन्नको पात्रमें परोसवाकर (यदि भोग न लगा होत तो भगवान्को निवेदन कर) हाथ जोडकर प्रणाम करे और ‘ॐ अस्माकं नित्यमस्त्वेतत्’ कहकर प्रार्थना करे । फिर हाथमें जल लेकर (दिनमें) ‘सत्यं त्वर्तेन त्वा परिषिञ्चामि’ और (रातमें) ‘ऋतं त्वा सत्येन परिषिञ्चामि’ कहकर प्रोक्षण करे । अब पात्रसे दस या पाँच अंगुल हटकर दाहिनी और पृथ्वीपर जलका आसन देकर निम्नलिखित मन्त्र पढकर तीन ग्रास निकाले -१-ॐ भूपतये स्वाहा ।२-ॐ भुवनपतये स्वाहा ।३-ॐ भूतानां पतये स्वाहा ।इस मन्त्रोंद्वारा पृथ्वी, चौदह भुवनों तथा सम्पूर्ण प्राणियोंके स्वामी परमात्माकी तृप्ति की जाती है, जिससे सबकी तृप्ति स्वत: हो जाती है । ==पञ्च प्राणाहुति-इसकें बाद दाहिने हाथमें किंचित् जल लेकर ‘ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा’ इस मन्त्रसे आचमन करे (अर्थात् भोजनसे पूर्व अमृतरुपी जलका आसन प्रदान करे) । आवाज न हो । इसके बाद मौन होकर बेरके बराबर पाँच ग्रासद्वारा निम्नलिखित मन्त्रोंसे प्राणाहुतियाँ दे ।१-ॐ प्राणाय स्वाहा ।२-ॐ अपानाय स्वाहा ।३-ॐ व्यानाय स्वाहा ।४-ॐ उदानाय स्वाहा ।५-ॐ समानाय स्वाहा ।फिर हाथ धोकर प्रसाद पाये । भगवान्से उपभुक्त होनेके कारण इसके अस्वादनके समय अवश्य उनका प्रेम स्मरण होता रहेगा । जिनके पिता या ज्येष्ठ भाई जीवित हों, उन्हें प्राणाहुतितक ही मौन रखना चाहिये । बचे हुए बेरके बराबर अन्नको दाहिने हाथमें रखकर थोडा जल भी रख ले । इसे निम्नलिखित मन्त्र पढकर बलिस्थानकी और रख दे -अस्मत्कुले मृता ये च पितृलोकविवर्जिता: ।भुञ्जन्तु मम चोच्छिष्टं ...... पात्राच्चैव बहि: क्षिपेत् ॥इसके बाद दाहिने हाथमें जल लेकर निम्नलिखित मन्त्र पढते हुए ॐ अमृतापिधन्म्सि स्वाहा । आधा जल पी ले और बचे हुए आधे जलको निम्न मन्त्र पढते हुए उच्छिष्ट अन्नपर छोड दे -रौरवेऽपुण्यनिलये पद्मार्बुदनिवासिनाम् ।अर्थिनामुदकं दत्तमक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥ (दे०भा०११/२३/३)अब सब बलि-अन्न लेकर आँगनमें आ आय और उसे कौओंको दे दे । हाथ और मुँह धोकर बायीं और सोलह कुल्ले करे । थोडा जल लेकर हथेलीपर रखे और इसे दोनों हथेलियोंसे खूब घिसकर दोनों आँखोंमें अँगूठेकी सहायतासे डाल दे । उस समय निम्नलिखित मन्त्र पढता रहे -शर्यातिं च सुकन्यां च च्यवनं शक्रमश्विनौ ।भोजनान्ते स्मरन्नक्ष्णोरड्गुलाग्राम्बु निक्षिपेत् ॥उचित परिपाकके लिये निम्नलिखित मन्त्र पढते हुए उदरपर तीन बार हाथ फेरे -अगस्त्यं वैनतेयं च शनिं च वडवानलम् ।अन्नस्य परिणामार्थं स्मरेद् भीमं च पञ्चमम् ॥भोजनके बाद भगवान्पर चढी तुलसी, लौंग, इलायची आदि खाये । N/A References : N/A Last Updated : December 02, 2018 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP