सायं-संध्या

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


(प्रात:-संध्याके अनुसार करे)

उत्तराभिमुख हो सूर्य रहते करना उत्तम है। प्राणायामके बाद ’ॐ सूर्यश्च मेति०’ के विनियोग तथा आचमन-मन्त्रके स्थानपर नीचे लिखा विनियोग तथा मन्त्र पढकर आचमन करे।
 
विनियोग-ॐ अग्निश्च मेति रुद्र ऋषि; प्रकृतिश्छ्न्दोऽग्निर्देवता अपामुपस्पर्शने विनियोग:।

आचमन-ॐ अग्निश्च माअ मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्य: पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यदह्ना पापमकार्ष मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्‍भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु। यत्किंच दुरितं मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सत्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।

अर्घ्य-पश्चिमाभिमुख होकर बैठे हुए तीन अर्घ्य दे।

उपस्थान-चित्रके अनुसार दोनों हाथ बंदकर कमलके सदृश करे।

शिवरुपा गायत्रीका ध्यान -
ॐ सायाह्ने शिवरुपां च वृध्दां वृषभवाहिनीम्‍।
सूर्यमण्डलमध्यस्थां सामवेदसमायुताम्॥

सूर्यमण्डलमें स्थित वृध्दारुपा त्रिशूल, डमरु, पाश तथा पात्र लिये वृषबपर बैठी हुई सामवेदस्वरुपा गायत्रीका ध्यान करे।

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Last Updated : November 27, 2018

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